ग्वालियर से विशेष रिपोर्ट
संदेहास्पद प्रमाण पत्र पर अब तक मौन प्रशासन
ग्वालियर नगर निगम एक बार फिर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते सुर्खियों में है। हाल ही में एक प्रमुख समाचार पोर्टल द्वारा उजागर की गई रिपोर्ट ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, जिससे मामला और भी संदिग्ध होता जा रहा है।
जाति प्रमाण पत्र विवाद: प्रभुदयाल बाथम पर उठे सवाल
नगर निगम के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी प्रभुदयाल बाथम के जाति प्रमाण पत्र को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सूचना का अधिकार (RTI) के तहत एक पत्रकार द्वारा प्राप्त दस्तावेजों में शैक्षणिक योग्यता और जाति प्रमाण पत्र में गंभीर असंगतियाँ सामने आई हैं। दस्तावेजों के अनुसार, बाथम मूलतः अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंध रखते हैं, लेकिन उन्होंने नौकरी में आरक्षण का लाभ लेने के लिए अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है।
आरटीआई द्वारा प्राप्त दस्तावेज़

भ्रष्टाचार के घेरे में अधिकारी
इस पूरे मामले में प्रशासनिक निष्क्रियता सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गई है। संबंधित विभागों और अधिकारियों की चुप्पी से यह अंदेशा गहरा गया है कि कहीं इस फर्जीवाड़े में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं है। यदि यह सत्य है, तो यह मामला सिर्फ एक कर्मचारी द्वारा किए गए धोखाधड़ी का नहीं, बल्कि एक संगठित भ्रष्टाचार तंत्र का है, जिसमें बड़े अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।
जांच या समझौता?
अब सवाल यह है कि क्या इस मामले में निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी या फिर इसे ‘ऊपर से दबा देने’ की कोशिश की जाएगी? ग्वालियर नगर निगम में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक सुस्पष्ट प्रमाण पत्र घोटाले पर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
आम जनता में रोष
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं में इस मामले को लेकर गहरा आक्रोश है। वे मांग कर रहे हैं कि इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से सरकारी सेवा में प्रवेश न कर सके।
ग्वालियर नगर निगम में पारदर्शिता और जवाबदेही की सख्त आवश्यकता है। यदि इस प्रकरण को नजरअंदाज किया गया, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था और सामाजिक न्याय की मूल भावना पर कुठाराघात होगा।