BY: Yoganand Shrivastva
कोच्चि : एक खुफिया लिस्ट, जिसमें एक-दो नहीं, पूरे 972 नाम दर्ज थे। नाम ही नहीं, उनके चेहरे, पते, उम्र, पद और दिनचर्या तक का ब्योरा। और ये सब किसी सामाजिक संगठन ने नहीं, बल्कि प्रतिबंधित आतंकी संगठन PFI (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) ने तैयार किया था।
अब NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) ने जो दस्तावेज अदालत में पेश किए हैं, उन्होंने साफ कर दिया है कि PFI की जड़ें कितनी गहरी और साजिशें कितनी खतरनाक थीं।
किसने बनाए थे निशाने?
केरल के एक पूर्व जिला न्यायाधीश, RSS नेताओं, समाजसेवियों और अन्य समुदायों के प्रभावशाली लोगों को भी इस लिस्ट में जगह दी गई थी।
यह लिस्ट PFI की अंदरूनी विंग — ‘रिपोर्टर्स विंग’ ने तैयार की थी। ये लोग दिन-रात समाज के अलग-अलग तबकों के लोगों पर नजर रखते थे, उनकी दिनचर्या, आदतें, रिश्तेदार और आने-जाने के रूट तक की जानकारी इकट्ठा करते थे।
तीन खतरनाक यूनिट: रिपोर्टर्स, ट्रेनिंग, हिट टीम
NIA ने बताया कि PFI की तीन प्रमुख इकाइयां थीं:
- Reporters Wing: जो टारगेट्स की पूरी जानकारी जुटाती थी
- Physical & Arms Training Wing: जो हमलावरों को फिजिकल ट्रेनिंग और हथियार चलाना सिखाती थी
- Service Wing (Hit Teams): जो प्लानिंग को एक्शन में बदलती थी
यानी एक मिनी मिलिट्री ऑपरेशन सिस्टम, जो देश के अंदर ही पल रहा था।
डेटा कैसे इकट्ठा किया गया?
जांच एजेंसी के मुताबिक, PFI के पास एक ऐसा नेटवर्क था जो जिला स्तर तक फैला हुआ था। ये लोग अपने ज़ोन के अंदर टारगेट का डेटा इकट्ठा करते, और फिर उसे राज्य पदाधिकारियों को सौंपते थे। उस डेटा को समय-समय पर अपडेट भी किया जाता था ताकि निशाना कभी चूके नहीं।
श्रीनिवासन मर्डर केस और 972 की लिस्ट
NIA ने यह खुलासा उस केस के दौरान किया जिसमें RSS नेता एस. के. श्रीनिवासन की हत्या हुई थी।
16 अप्रैल 2022, श्रीनिवासन को उनकी दुकान पर ही चाकू मारकर मौत के घाट उतार दिया गया था।
NIA ने अब अदालत में कहा है कि जिन आरोपियों को पकड़ा गया है, उनके पास से बरामद दस्तावेजों में ये 972 लोगों की लिस्ट पाई गई — और इसी लिस्ट में श्रीनिवासन का नाम भी था।
क्या है PFI और क्यों हुआ प्रतिबंध?
PFI (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) की स्थापना 22 नवंबर 2006 को तीन दक्षिण भारतीय संगठनों के विलय से हुई थी —
- केरल का NDF (नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट)
- कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (KFD)
- तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई
हालांकि खुद को सामाजिक संगठन बताने वाला PFI धीरे-धीरे कट्टरपंथ, प्रशिक्षण कैंप, और आतंकी संगठनों से संबंध के आरोपों में घिर गया। 2022 में केंद्र सरकार ने इसे UAPA (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत 5 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया।
किन आरोपों के कारण लगा बैन?
सरकार ने जो कारण गिनाए, उनमें प्रमुख थे:
- ISIS और SIMI जैसे संगठनों से संपर्क
- गुप्त ट्रैनिंग कैम्प
- धार्मिक उन्माद फैलाना
- संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों को कमजोर करना
15 राज्यों में एक साथ छापेमारी में 100 से ज्यादा PFI सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था।
NIA की रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि PFI सिर्फ एक सामाजिक आंदोलन नहीं था — बल्कि एक गहरी साजिश का हिस्सा था, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोगों की हत्या की योजना तैयार की गई थी।
अब सवाल ये उठता है —
क्या और कितने ऐसे संगठन भारत की जड़ों को खोखला करने में लगे हैं?
और क्या उन सभी पर समय रहते शिकंजा कसा जा सकेगा?