मधुपुर: दीपावली के करीब आते ही जब पूरे देश में रौशनी और उत्सव की तैयारी शुरू होती है, तब मधुपुर के कुम्हारों के घरों में भी उम्मीद की लौ जल उठती है। गलियों से आती चाक की घूमती हुई आवाज़ें, मिट्टी की सोंधी महक और दीयों की कतारों में चमकता श्रम — ये सब मिलकर बताते हैं कि त्योहार अब सचमुच दरवाजे पर है। मधुपुर के टिटहिया बांक मोहल्ले में कुम्हारों के घरों में इन दिनों दिन-रात चाक घूम रहे हैं। मिट्टी को पानी से गूंथने से लेकर उसे दीयों और मूर्तियों का आकार देने तक, हर कदम पर मेहनत और कला का सुंदर संगम नजर आता है।
रामेश्वर पंडित, जो इस पेशे से जुड़े एक अनुभवी कारीगर हैं, बताते हैं कि दीपावली से पहले का यह समय उनके लिए साल का सबसे व्यस्त मौसम होता है। “सुबह सूरज निकलने से पहले ही हम काम शुरू कर देते हैं और देर रात तक चाक घूमता रहता है,” वे मुस्कुराते हुए कहते हैं। उनके आंगन में मिट्टी के छोटे-छोटे दीए एक पंक्ति में सजे हैं, जो सूखने के बाद आग में पकाए जाने का इंतजार कर रहे हैं। उनके साथ बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी अपने-अपने हिस्से का काम संभालते हैं — कोई मिट्टी तैयार कर रहा है, कोई दीयों को रंग दे रहा है, तो कोई लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों में अंतिम नक्काशी कर रहा है।
हालांकि, यह मेहनत अब पहले जितनी फलदायी नहीं रही। रामेश्वर बताते हैं, “पहले हर घर में मिट्टी के दीए जलते थे, पर अब बाजार में इलेक्ट्रॉनिक दीए और प्लास्टिक के खिलौने सस्ते और चमकदार विकल्प बन गए हैं। ऐसे में हमारे दीयों की मांग कम हो गई है।” वे कहते हैं कि महंगाई बढ़ने और मिट्टी की उपलब्धता घटने से उनकी लागत बढ़ गई है, पर बिक्री उतनी नहीं हो पाती। मौसम की मार भी उनके काम पर असर डालती है — अगर बारिश लंबी खिंच जाए तो मिट्टी सूख नहीं पाती और चाक ठहर जाता है।
इसके बावजूद, इस कला के प्रति उनका समर्पण अटूट है। “हमने अपने पूर्वजों से यह हुनर सीखा है, और इसे छोड़ना हमारे लिए अपनी पहचान खो देने जैसा होगा,” रामेश्वर पंडित कहते हैं। उनके अनुसार, अगर सरकार पारंपरिक कुम्हारों को आर्थिक सहयोग, प्रशिक्षण और उचित बाजार उपलब्ध कराए, तो यह कला फिर से अपना सुनहरा दौर देख सकती है।
दीपावली केवल रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि उन हाथों की मेहनत का उत्सव भी है जो मिट्टी से उजाला गढ़ते हैं। मधुपुर के ये कुम्हार आज भी अपने चाक के जरिए परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं — ताकि हर घर में दीपावली की रात एक दीया जरूर जल सके, जो न केवल घर को रोशन करे बल्कि उस मिट्टी के कलाकार की जिंदगी में भी उजाला भर दे।