बांग्लादेश एक बार फिर गंभीर सियासी संकट के दौर से गुजर रहा है। मौजूदा सरकार, सेना और विपक्ष के बीच टकराव इस कदर बढ़ चुका है कि देश में जल्द ही बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिल सकता है। सवाल साफ है — क्या बांग्लादेश में सेना तख्तापलट करेगी या फिर देश में लोकतांत्रिक चुनाव कराए जाएंगे?
मोहम्मद यूनुस पर मंडरा रहा सत्ता संकट
अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है। सत्ता में आने के बाद से ही यूनुस लगातार विवादों में रहे हैं। ताजा हालात यह संकेत दे रहे हैं कि सेना, विपक्ष और छात्र संगठनों के बढ़ते दबाव के चलते यूनुस कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं।
खुद यूनुस भी मीडिया से बातचीत में यह संकेत दे चुके हैं कि वो काम नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें पद छोड़ने पर गंभीरता से विचार करना पड़ रहा है।
सेना और सरकार के बीच तनाव क्यों?
- सेना प्रमुख वकार उज जमान, जो पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के रिश्तेदार भी हैं, ने यूनुस सरकार के कई फैसलों पर नाराजगी जताई है।
- यूनुस ने कई बड़े फैसले सेना को विश्वास में लिए बिना लिए, जिससे सेना में असंतोष गहराता गया।
- खासतौर पर रखाइन क्षेत्र और रोहिंग्या शरणार्थी संकट पर सरकार के रुख को लेकर सेना बेहद नाराज है।
- सेना का स्पष्ट संदेश है — “सरकार अपने काम करे, सेना के मामलों में दखल न दे।”
छात्र संगठनों की नाराजगी भी बनी बड़ी चुनौती
मोहम्मद यूनुस की सत्ता में चढ़ाई का रास्ता छात्र आंदोलनों से होकर निकला था। लेकिन अब वही छात्र नेता और संगठन उनके खिलाफ खड़े हो गए हैं। यूनुस पर आरोप है कि वो रिफॉर्म के नाम पर सत्ता में बने रहने का प्रयास कर रहे हैं और वास्तविक चुनाव टाल रहे हैं।
छात्र संगठनों का मानना है कि अगर लोकतांत्रिक चुनाव नहीं कराए जाते, तो बांग्लादेश में एक बार फिर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो सकते हैं।
विपक्ष ने भी तेज किया हमला
शेख हसीना की कट्टर प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया और अन्य विपक्षी दल यूनुस सरकार पर चुनाव टालने और जनता को धोखा देने के आरोप लगा रहे हैं। हाल ही में विपक्ष ने सेना से खुलेआम अपील की कि देश में जल्द से जल्द निष्पक्ष चुनाव कराए जाएं।
क्या है सेना का अगला कदम?
सेना ने मोहम्मद यूनुस को साफ अल्टीमेटम दे दिया है:
- दिसंबर 2025 तक देश में चुनाव कराना जरूरी है।
- यदि तय समय सीमा में चुनाव नहीं कराए गए, तो सेना खुद हस्तक्षेप कर सकती है।
- ऐसी स्थिति में सैन्य तख्तापलट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
भारत और अराकान आर्मी पर उठ रहे सवाल
इस पूरे संकट में भारत की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। बांग्लादेश के कुछ राजनीतिक हलकों का दावा है कि भारत समर्थित अराकान आर्मी को देश में अस्थिरता फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
- अराकान आर्मी म्यांमार आधारित एक उग्रवादी संगठन है, जो बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए चिंता का कारण बन सकता है।
- कहा जा रहा है कि अगर बांग्लादेश भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो भारत भी अराकान आर्मी के जरिए जवाब दे सकता है।
हालांकि भारत ने आधिकारिक रूप से ऐसी किसी योजना से इनकार किया है।
अगले 2 महीने होंगे बेहद अहम
बांग्लादेश में आगामी दो महीने राजनीतिक दृष्टि से बेहद निर्णायक होंगे। अगर:
- दिसंबर तक चुनाव की घोषणा होती है, तो देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल रहेगी।
- यदि सरकार टालमटोल करती रही, तो सेना हस्तक्षेप कर सकती है।
- ऐसे में या तो मोहम्मद यूनुस इस्तीफा देंगे या सेना खुद सत्ता संभालेगी।
निष्कर्ष: क्या बांग्लादेश फिर से उथल-पुथल की ओर?
बांग्लादेश की राजनीति फिलहाल बेहद नाजुक मोड़ पर है। सेना, विपक्ष और छात्रों का दबाव यूनुस सरकार को घेर चुका है। अब देखना यह है कि देश में लोकतंत्र मजबूत होता है या फिर एक बार फिर सेना की दखलअंदाजी से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है।
आपको क्या लगता है? क्या मोहम्मद यूनुस इस्तीफा देंगे? क्या देश में चुनाव होंगे या सेना सत्ता अपने हाथ में ले लेगी? अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर साझा करें।