इन दिनों अनूपपुर जिले के आंचलिक क्षेत्रों में सैकड़ों वर्ष पुराने फलदार पेड़ों की बेरहमी से कटाई की जा रही है। आम, जामुन, साल, तेंदू, खैर और चार जैसे बहुमूल्य पेड़ अब वन माफियाओं की कमाई का जरिया बन गए हैं। दुखद यह है कि इस अवैध गतिविधि में राजस्व और वन विभाग के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत भी सामने आ रही है।
₹200 से ₹500 में बिक रहे सैकड़ों साल पुराने पेड़
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, दलाल गांवों में घूम-घूम कर आदिवासी परिवारों से फलदार पेड़ मात्र ₹200, ₹300 या ₹500 में खरीद लेते हैं। भोले-भाले ग्रामीण थोड़े से पैसे के लालच में अपने पुश्तैनी वृक्षों को काटने की अनुमति दे देते हैं। फिर इन्हीं पेड़ों की लकड़ी को माफिया लाखों रुपये में बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
वन विभाग-राजस्व विभाग का जिम्मेदारी टालू रवैया
जब इस अवैध कटाई की शिकायतें उठती हैं तो वन विभाग इसे “राजस्व भूमि का मामला” बताता है, जबकि राजस्व विभाग इसे “वन क्षेत्र” कहकर अपना पल्ला झाड़ लेता है।
इस विभागीय भ्रम का फायदा उठाकर माफिया टीपी (ट्रांजिट पास) बनवा लेते हैं और फिर बिना रोक-टोक के वर्षों पुराने पेड़ ट्रकों में भरकर बाहर भेज देते हैं।
“हर पेड़ मां के नाम” अभियान की असलियत?
एक तरफ भारत सरकार “हर पेड़ मां के नाम” जैसे भावनात्मक अभियान चला रही है, दूसरी ओर उसी सरकार के मातहत अधिकारी पेड़ों की कटाई को अनदेखा कर रहे हैं।
ग्राम पंचायत बोदा और सराफा के बघाड़ क्षेत्र, जो कभी हरियाली और जैव विविधता से भरपूर था, अब उजड़ता जा रहा है। यहां का सघन वन अब ठूंठों में बदल रहा है — गिरे हुए पत्ते और कटे तने हर पेड़ की पीड़ा बयां कर रहे हैं।
वन अधिकार पत्र बना माफियाओं के लिए वरदान?
पहले ये क्षेत्र पूरी तरह वन विभाग के अधीन थे, लेकिन वन अधिकार कानून के तहत जमीनें राजस्व श्रेणी में आने लगीं। इसका लाभ उठाकर माफिया इन क्षेत्रों में धड़ल्ले से पेड़ों की कटाई करवा रहे हैं।
ग्रामीणों को थोड़ा पैसा देकर पेड़ कटवाए जा रहे हैं और राजस्व व वन विभाग की खामोशी ने इस तबाही को और आसान बना दिया है।
अब सवाल ये उठते हैं…
- क्या फलदार और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण पेड़ इतने सस्ते हो गए हैं?
- क्या विभागों की चुप्पी किसी गहरी साठगांठ की ओर इशारा नहीं करती?
- अगर यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ियों को छांव कहां मिलेगी?
ज़रूरत है सख्त कार्रवाई की
अब समय आ गया है कि प्रशासन इस पर सख्त रुख अपनाए।
- पेड़ों की अवैध कटाई करने वालों पर कठोर कानूनी कार्रवाई हो।
- राजस्व और वन विभाग के बीच स्पष्ट समन्वय स्थापित हो।
- स्थानीय लोगों को पेड़ संरक्षण के लिए जागरूक किया जाए।
प्राकृतिक संसाधनों की इस बर्बादी पर अब चुप रहना भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।