BY: Yoganand Shrivastva
झांसी। यूपी के झांसी ज़िले से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। लगभग 49 साल पुराने चोरी के केस में आखिरी जीवित आरोपी ने आखिरकार अदालत में अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसने कहा कि अब वह उम्र और बीमारी के कारण थक चुका है और और केस लड़ने की ताकत नहीं बची।
27 मार्च 1976 को टहरौली क्षेत्र की एक वृहद सहकारी समिति में घड़ी और रसीद पुस्तिका चोरी का मामला दर्ज हुआ था। तत्कालीन सचिव बिहारी लाल गौतम ने शिकायत में आरोप लगाया था कि समिति में तैनात चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कन्हैया लाल ने 150 रुपये की घड़ी और एक सरकारी रसीद पुस्तिका चुराई थी। आरोप यह भी था कि उसने जाली हस्ताक्षर कर 14 हजार रुपये से अधिक की हेराफेरी की। इस मामले में दो अन्य आरोपी लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ भी शामिल थे, लेकिन सुनवाई लंबी खिंचने के दौरान उनकी मौत हो गई।
करीब 46 साल बाद 23 दिसंबर 2022 को कन्हैया लाल पर आरोप तय हुए। इसके बाद 3 अगस्त 2025 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुन्ना लाल की अदालत में पेश होकर 68 वर्षीय कन्हैया लाल ने जुर्म स्वीकार कर लिया। उसने कहा—
“हाँ, यह अपराध मैंने ही किया था। लेकिन लगातार तारीखों पर आते-आते थक गया हूँ। अब उम्र और बीमारी की वजह से केस लड़ने की ताकत नहीं है।”
कोर्ट ने उसकी स्वीकारोक्ति मानते हुए IPC की धारा 380 (चोरी), 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात), 467, 468 (जालसाजी), 457 (सेंधमारी) और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत दोषी करार दिया। अदालत ने मुकदमे की अवधि में काटी गई 6 महीने की जेल को सजा में शामिल कर लिया और कन्हैया लाल पर ₹2000 का जुर्माना लगाया। जुर्माना न भरने की स्थिति में उसे 3 दिन की अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी।
यह केस भारतीय न्याय व्यवस्था की धीमी गति और लंबे मुकदमों की हकीकत को उजागर करता है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या न्याय में इतनी देरी भी अन्याय के बराबर नहीं है?