रिपोर्टर: जावेद खान
छत्तीसगढ़ में नया शैक्षणिक सत्र 16 जून से शुरू हो चुका है और स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति भी अब तेजी से बढ़ रही है। लेकिन शासकीय स्कूलों में पढ़ाई सुचारु रूप से शुरू नहीं हो पा रही है, क्योंकि छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल अब तक पुस्तकों की आपूर्ति नहीं कर सका है। इससे छात्र-छात्राएं और शिक्षक दोनों परेशान हैं।
स्कूलों में खाली हाथ पहुंचे छात्र, शिक्षा पर पड़ा असर
राज्य के अधिकांश शासकीय स्कूलों में अब तक विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। शिक्षकों का कहना है कि सिर्फ प्रवेश और उपस्थिति की औपचारिकता हो रही है, जबकि पढ़ाई पूरी तरह से रुकी हुई है।
विद्यार्थियों ने कहा –
“स्कूल तो आ रहे हैं, लेकिन किताबें नहीं हैं तो क्या पढ़ें? दिन भर खाली बैठना पड़ता है।”
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में हुए पुस्तक घोटाले की मार
सूत्रों के अनुसार, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुए कथित पुस्तक घोटाले के कारण शिक्षा विभाग इस बार सावधानी बरत रहा है। बताया जा रहा है कि सरकारी पुस्तकों को रद्दी के भाव बेच दिया गया था, जिसके चलते इस बार सभी कक्षाओं की पुस्तकों में बारकोड और स्कैनिंग प्रक्रिया लागू की जा रही है। इसका उद्देश्य है कि हर पुस्तक का हिसाब शिक्षा विभाग के पास रिकॉर्ड में रहे।
हालांकि यह व्यवस्था पारदर्शिता की दिशा में जरूरी कदम है, लेकिन इसकी तैयारी समय रहते नहीं की गई, जिससे स्कूलों तक किताबें नहीं पहुंच पाईं।
PM श्री स्कूलों में सिलेबस बदलाव से और बढ़ी मुश्किल
PM श्री स्कूल, जो पहले स्वामी आत्मानंद स्कूल के नाम से जाने जाते थे, उनमें पढ़ रहे बच्चों के सामने एक और बड़ी समस्या है।
इंग्लिश मीडियम और हिंदी मीडियम दोनों के सिलेबस में बदलाव किया गया है, जिसकी जानकारी भी स्पष्ट नहीं दी गई है। ऐसे में छात्र बाजार से भी किताबें नहीं खरीद सकते, क्योंकि नए सिलेबस की पुस्तकें अभी तक छपी ही नहीं हैं या वितरण के लिए उपलब्ध नहीं हैं।
बच्चे इंतजार में – कब आएंगी पुस्तकें, कब शुरू होगी पढ़ाई?
शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों की ओर से पुस्तक वितरण में तेजी लाने की मांग की जा रही है।
अन्तागढ़ के स्कूलों में खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र इस संकट से जूझ रहे हैं, जहां वैकल्पिक संसाधनों की भी कमी है।
“सरकार से अपील है कि जल्द से जल्द पुस्तकें भेजें, ताकि बच्चों की पढ़ाई पटरी पर लौट सके,” – एक शिक्षक ने कहा।
क्या कहता है शिक्षा विभाग?
अब नजरें शिक्षा विभाग पर टिकी हैं, जो बारकोडिंग और स्कैनिंग के जरिए पारदर्शी वितरण की बात तो कर रहा है, लेकिन विलंब की जिम्मेदारी लेने से बच रहा है। यदि जल्दी समाधान नहीं निकाला गया, तो पूरे शैक्षणिक सत्र की गुणवत्ता पर सवाल उठ सकते हैं।