रिपोर्ट- लोकेश सिन्हा
पांच साल से पेड़ के नीचे चल रही है बच्चों की पाठशाला
गरियाबंद। जहां सरकार जनजातीय समुदायों के उत्थान और बच्चों की शिक्षा के लिए बड़े-बड़े दावे कर रही है, वहीं गरियाबंद जिले के पंडरीपानी प्राथमिक स्कूल की तस्वीर इन दावों की पोल खोल रही है। यहां बच्चे बरामदे और पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं, और बारिश होते ही कक्षाएं रद्द कर दी जाती हैं।
22 बच्चों में सिर्फ 13 जाते हैं स्कूल
गांव में कुल 32 परिवार रहते हैं और इनमें से 22 से ज्यादा बच्चे स्कूल जाने की उम्र के हैं। लेकिन डर और अव्यवस्था के कारण सिर्फ 13 बच्चे ही नियमित रूप से स्कूल पहुंचते हैं। उनकी कक्षाएं भी स्कूल भवन में नहीं बल्कि बरामदे और पेड़ के नीचे लगती हैं।
जर्जर हो चुका है 20 साल पुराना भवन
गांव का यह प्राथमिक स्कूल भवन करीब 20 साल पुराना है। अब इसकी हालत इतनी खराब हो चुकी है कि दीवारों में गहरी दरारें पड़ गई हैं। छत से प्लास्टर झड़ रहा है और लोहे में जंग लग चुका है।
ग्रामीणों का कहना है कि बरसात के मौसम में भवन कभी भी ढह सकता है। यही कारण है कि कई अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं।
योजनाओं से नहीं जुड़ा गांव
ग्राम कमार, जो भुजिया बाहुल्य क्षेत्र है, जन मन योजना से अब तक नहीं जुड़ा है। यहां का स्कूल मुख्यमंत्री जतन योजना से भी वंचित है। इस वजह से भवन की मरम्मत और रखरखाव के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।
आंदोलन की तैयारी
स्थिति बिगड़ने पर ग्रामीण अब अपने जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम के साथ मिलकर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं। हालांकि प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि स्कूल को अतिरिक्त भवन की मंजूरी के लिए सूची में शामिल किया गया है।
सवालों के घेरे में प्रशासन
यह तस्वीर साफ दिखाती है कि शिक्षा के बुनियादी ढांचे में लापरवाही किस हद तक है। बरसात में बच्चों की पढ़ाई ठप हो जाना ग्रामीणों के भविष्य पर गहरी चोट है। अब देखना होगा कि प्रशासन अपने वादों को कब और कैसे पूरा करता है।