BY: Yoganand Shrivastva
सादा जीवन, असाधारण संघर्ष
साल था 1944। झारखंड की माटी में, एक आदिवासी परिवार में जन्म हुआ उस बालक का, जो आने वाले दशकों में झारखंड की पहचान और आत्मा बन जाएगा। नाम रखा गया शिबू सोरेन।
जब 10 साल के थे, तब पिता सोबरन सोरेन की हत्या कर दी गई। वजह? उन्होंने जंगल माफिया और ज़मींदारों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। उस एक घटना ने बालक शिबू के दिल में आग जला दी – अन्याय के खिलाफ एक ज़िंदगी भर की लड़ाई की आग।
आंदोलन का जन्म
1960 और 70 के दशक में जब आदिवासी इलाकों का शोषण चरम पर था, शिबू सोरेन ने अपने गांव-दर-गांव दौरों से जन-जागरण शुरू किया। उन्होंने “संथाल परगना” में आदिवासियों को संगठित करना शुरू किया और स्थानीय साहूकारों, ठेकेदारों और भू-माफियाओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इसी दौरान उन्होंने अपने संघर्ष को नाम दिया – “झारखंड आंदोलन”।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की नींव रखी गई। यह कोई पार्टी नहीं, एक जन-चेतना थी। एक सपना था – एक अलग झारखंड राज्य का, जो आदिवासियों, वंचितों और मेहनतकश लोगों की आवाज़ बने।
शिबू सोरेन इस आंदोलन के “दिशोम गुरु” यानी जनजातीय समुदाय के मार्गदर्शक बन गए।
संसद से जेल तक का सफर
शिबू सोरेन ने पहली बार 1980 में लोकसभा चुनाव जीता। इसके बाद वे कई बार सांसद बने। वे कोयला मंत्री भी रहे। लेकिन उनका सफर सिर्फ सत्ता का नहीं था, संघर्ष और विवादों से भी भरा था।
2004 में उन्हें झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई, लेकिन 10 दिन में ही पद छोड़ना पड़ा क्योंकि उन पर हत्या के एक पुराने केस में गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी।
बाद में वे निर्दोष साबित हुए, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने उनके राजनीतिक जीवन को झकझोर दिया।
झारखंड का सपना पूरा होता है
15 नवंबर 2000 – झारखंड को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया। यह शिबू सोरेन के दशकों के संघर्ष का परिणाम था। हालांकि वे उस समय मुख्यमंत्री नहीं बने, लेकिन उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
वे बाद में दो बार मुख्यमंत्री बने – 2005 और फिर 2009 में। उनकी सरकारें लंबे समय तक नहीं चलीं, लेकिन उनके प्रभाव और संघर्ष की गूंज सत्ता से बहुत आगे तक फैली रही।
विरासत के वारिस
जब उम्र ने कदमों को धीमा किया, तब उन्होंने कमान अपने बेटे हेमंत सोरेन को सौंप दी। हेमंत आज झारखंड के मुख्यमंत्री हैं, और अपने पिता के विचारों की मशाल लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
शिबू सोरेन भले ही अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन झारखंड की धरती, उसकी नदियाँ, उसकी जनजातियाँ – आज भी दिशोम गुरु की कहानियाँ सुनाती हैं।
“दिशोम गुरु की कहानी” – शिबू सोरेन: एक नेता, एक आंदोलन, एक युग