रिपोर्ट- रुपेश सोनी
हजारीबाग – जब देश में धर्म के नाम पर खाईयां गहरी हो रही हों, तब हजारीबाग के अंतू साव जैसे लोग समाज को इंसानियत का आईना दिखा रहे हैं। एक हिंदू होकर मोहर्रम में ताजिया उठाना, वह भी पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ, कोई सामान्य बात नहीं — ये है गंगा-जमुनी तहज़ीब की जीवंत मिसाल।
तीन पीढ़ियों से निभा रहे सौहार्द की परंपरा
जलम गांव निवासी अंतू साव का परिवार तीन पीढ़ियों से मोहर्रम के मौके पर ताजिया बनवाता आ रहा है।
हर साल वे छड़वा मैदान के ऐतिहासिक मोहर्रम मेले में ताजिया लेकर पहुंचते हैं, जहां हिंदू और मुसलमान मिलकर इस परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं।
“धर्म बांटने का नहीं, जोड़ने का जरिया होना चाहिए,”
कहते हैं अंतू साव, जिनकी उम्र अब ढलान पर है, लेकिन भाईचारे का जज़्बा आज भी जवान है।
ताजिया बना मोहब्बत और मेलजोल की पहचान
हर साल अंतू साव का ताजिया अपनी खूबसूरत बनावट और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक बनता है।
हजारों की भीड़ तब उमड़ पड़ती है, जब एक हिंदू पूरे सम्मान से ताजिया अपने कंधों पर उठाए निकलता है — यह दृश्य आज के समय में किसी प्रेरणा से कम नहीं।
सवाल उठे, मगर इरादा अडिग रहा
कुछ कट्टरपंथी जब सवाल उठाते हैं, तब अंतू साव मुस्कुराकर कहते हैं:
“अगर मेरी वजह से दिलों में मोहब्बत बढ़ती है, तो मैं हर साल ताजिया उठाऊंगा।”
उनके लिए धर्म कोई दीवार नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाला पुल है।
उनका मानना है कि परंपरा वहीं पवित्र होती है जो लोगों को साथ लाए, न कि तोड़े।