क्या ठाकरे ब्रदर्स का ‘मराठी टूलकिट‘ चलेगा?
रिपोर्ट: विजय नंदन, एडिटर, डिजिटल
एक ऐसा मुद्दा, जो सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश की सामाजिक एकता और राजनीतिक समझ पर सवाल खड़ा करता है। हिंदी का बहिष्कार या सियासी औजार? क्या मराठी अस्मिता के नाम पर छेड़ी गई ये मुहिम सच में भाषाई अधिकारों की लड़ाई है, या फिर चुनावी हार के बाद राजनीतिक अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद? कभी एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अब एक मंच पर साथ नज़र आ रहे हैं। सवाल ये उठता है कि क्या ये ‘मराठी एकता’ दिल से है, या फिर ज़मीन खिसकने का डर.. इन भाइयों को मजबूरी में एक कर रहा है? एमएनएस कार्यकर्ताओं द्वारा गैर-मराठी लोगों की पिटाई के वायरल वीडियो ने इस बहस को और भी गर्मा दिया है। क्या भाषा के नाम पर हिंसा जायज़ है? क्या लोकतंत्र में असहमति का ये तरीका स्वीकार्य है? और सबसे बड़ा सवाल क्या हम भाषाओं को जोड़ने के बजाय तोड़ने का ज़रिया बना रहे हैं? इन तमाम सवालों के जवाब जानने पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट.
You must speak Marathi if you want to work here — a sweet shop owner in Mira Road was allegedly assaulted by 7 unidentified men, suspected MNS workers, for not speaking in Marathi. A case has been registered.#MiraRoad #MNS #Marathi #LanguagePolitics #MumbaiNews pic.twitter.com/JgVaeUDYcF
— Arush Sharma (@Deararush9354) July 3, 2025
ये वीडियो बहुत कुछ कह जाते हैं…यानि महाराष्ट्र में एक बार फिर मराठी बनाम हिंदी को लेकर सियासी कुरुक्षेत्र तैयार हो रहा है. सवाल ये है कि क्या ये हथियार खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस दिलाने की कवायद है या फिर मराठी मानुष के खुशहाल जीवन की लड़ाई ..इस भाषाई विवाद के बीच उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने ‘मराठी एकता‘ को लेकर मुंबई में रैली निकाली. एक मंच से मराठी का नारा बुलंद किया..कभी एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाने वाले राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने कुछ ही दिनों पहले एक दूसरे से हाथ मिलाया है. 20 साल पहले राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए थे, उनका ख्बाव अपने चाचा बाला साहेब ठाकरे की तरह किंगमेकर बनना था, लेकिन वे महाराष्ट्र में ना तो किंग बन पाए और ना ही किंगमेकर..उनकी पार्टी गठन के बाद से ही राज्य की राजनीतिक बिसात पर घिसट-घिसट कर चल रही है..2024 के चुनाव में तो उनका खाता भी नहीं खुला..उधर शिवसेना के विखंडन के बाद उद्ध ठाकरे को भी अपनी राजनीति जमीन खिसकते दिख रही है..पिछले चुनाव में उनकी पार्टी 10 सीटों पर सिमट गई. इन हालातों को देखकर तो यही लगता है कि दोनों भाइयों को मजबूरी में साथ आना पड़ा.
#WATCH | Mumbai: Brothers, Uddhav Thackeray and Raj Thackeray share a hug as Shiv Sena (UBT) and Maharashtra Navnirman Sena (MNS) are holding a joint rally as the Maharashtra government scrapped two GRs to introduce Hindi as the third language.
— ANI (@ANI) July 5, 2025
(Source: Shiv Sena-UBT) pic.twitter.com/nSRrZV2cHT
महाराष्ट्र में भाषाई राजनीति नई नहीं है..1966 के आस पास मुंबई की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में महाराष्ट्रियों का घटता महत्व गंभीर चिंता का विषय था, इसी आधार पर शिवसेना का जन्म हुआ. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि महाराष्ट्र में ही भाषाई राजनीति होती है.. दक्षिण भारत में भी जब-जब चुनाव आते हैं हिंदी विरोध से राजनीति चमकती रही है. धरती पुत्र कहने जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने तो अंग्रेजी पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके पीछे उनके अपने तर्क थे.. उधर बीजेपी हिंदी हिंदू हिंदुस्तान की बात करती है. लेकिन पिछले समय गृहमंत्री अमित शाह भी अंग्रेजी को लेकर एक विवादित बयान दे चुके हैं..हालांकि बाद में उन्होंने सुधार कर लिया. लेकिन महाराष्ट्र अब ठाकरे ब्रदर्स के उदय ने राज्य सरकार के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है..खासतौर पर उनके उग्र आंदोलन और गैर मराठी के साथ मारपीट को लेकर..
मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मराठी भाषा का अभिमान रखना गलत नहीं है। लेकिन भाषा के नाम पर गुंडागर्दी और मारपीट को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
— Devendra Fadnavis (@Dev_Fadnavis) July 4, 2025
( मुंबई | 4-7-2025)#Maharashtra #Mumbai pic.twitter.com/CdBbfmOeWK
मुख्यमंत्री फडण्वीस ने कहा- मैं स्पष्ट शब्दों में बताना चाहता हूं महाराष्ट्र में मराठी भाषा पर गर्व करने में कोई गलत बात नहीं है, लेकिन भाषा के चलते अगर कोई गुंडागर्दी करेगा तो इसे हम सहन नहीं करेंगे। कोई अगर भाषा के आधार पर मारपीट करेगा तो यह सहन नहीं किया जाएगा। जिस प्रकार की घटना हुई है, उस पर पुलिस ने कार्रवाई भी की है और आगे भी अगर कोई इस तरह भाषा को लेकर विवाद करेगा तो उस पर कार्रवाई होगी।
उधर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नितेश राणे ने भी एमएनएस कार्यकर्ताओं द्वारा गैरमराठी की पिटाई को लेकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पर जमकर निशाना साधा है।
गरीब हिंदुओं पर हाथ उठाने वालोंने नलबजार और मोहम्मद अली रोड पर जाकर जिहादियों को पीटने की भी हिम्मत दिखानी चाहिए! क्योंकि उनके मुंह से कभी मराठी सुनने में नहीं आती ! pic.twitter.com/0rgQSSQtv4
— Nitesh Rane (@NiteshNRane) July 3, 2025
भाषा, संस्कृति और पहचान के नाम पर शुरू हुआ ये विवाद अब सियासी ध्रुवीकरण की ओर बढ़ता दिख रहा है। सवाल सिर्फ मराठी बनाम हिंदी का नहीं है, बल्कि उस राजनीति का है जो जनता के असली मुद्दों—रोजगार, महंगाई, कानून-व्यवस्था—से ध्यान भटकाकर भावनाओं को भुनाने में लगी है। आज जब देश एक भारत-श्रेष्ठ भारत की बात कर रहा है, तब महाराष्ट्र की सड़कों पर भाषा के नाम पर मारपीट और नफरत चिंता का विषय है। राजनीति में असहमति हो सकती है, पर सामाजिक एकता के ताने-बाने को तोड़ना किसी भी दल के लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है। क्या ठाकरे बंधुओं की ये ‘मराठी एकता’ वाकई भाषा और संस्कृति की रक्षा है, या फिर सियासी ज़मीन तलाशने की आखिरी कोशिश है? ये आने वाला वक्त बताएगा… लेकिन एक बात तय है—महाराष्ट्र की आत्मा को भाषाई विभाजन नहीं, बल्कि समावेशी सोच ही बचा सकती है।