BY: Yoganand shrivastva
जयपुर: राजस्थान पुलिस अकादमी (RPA) में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां बिना किसी चयन प्रक्रिया, परीक्षा या औपचारिक नियुक्ति के एक महिला ने पूरे दो वर्षों तक खुद को सब-इंस्पेक्टर बताकर प्रशिक्षण प्राप्त किया। असली नाम मोना बुगालिया है, लेकिन उसने खुद को “मूली देवी” नाम से खेल कोटे की अभ्यर्थी बताकर पेश किया था। वह पुलिस वर्दी में परेड में हिस्सा लेती रही और अफसरों के साथ सार्वजनिक मंच साझा करती रही।
कैसे हुआ भंडाफोड़?
मोना बुगालिया नागौर जिले के निंबा के बास गांव की निवासी है। वर्ष 2021 में उसने सब-इंस्पेक्टर की परीक्षा दी थी, लेकिन चयन नहीं हो सका। इसके बावजूद उसने फर्जी दस्तावेजों के जरिए अपने चयन की झूठी घोषणा सोशल मीडिया पर की और खुद को खेल कोटे की अभ्यर्थी बताते हुए RPA में दाखिल हो गई।
वह प्रशिक्षण प्राप्त कर रही एसआई अभ्यर्थियों के व्हाट्सएप ग्रुप में भी शामिल हो गई और RPA में पुराने खेल कोटे की बैच के साथ पूरी तरह घुल-मिल गई। वर्दी पहनकर वह नियमित रूप से परेड में भाग लेती थी और सोशल मीडिया पर एक पुलिस अधिकारी के रूप में खुद को पेश कर रही थी।
क्या-क्या बरामद हुआ?
मोना की गिरफ्तारी के बाद उसके किराए के कमरे की तलाशी ली गई, जहां से चौंकाने वाली चीजें बरामद हुईं:
- ₹7 लाख नकद
- 3 पुलिस यूनिफॉर्म
- पुलिस ट्रेनिंग से जुड़ी सामग्री
- कई फर्जी दस्तावेज
उसने सोशल मीडिया पर मोटिवेशनल वीडियो भी बनाए थे जिनमें वह पुलिस अधिकारी की तरह नजर आती थी। यहां तक कि वह एक समारोह में मंच पर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ खड़ी होकर अपने करियर पर भाषण देती भी देखी गई।
कब और कैसे हुआ संदेह?
कुछ प्रशिक्षु सब-इंस्पेक्टर्स को उसकी गतिविधियों पर शक हुआ, जिसके बाद उन्होंने उच्च अधिकारियों को इस बारे में सूचित किया। जांच के दौरान मोना ने अपनी असली पहचान और सच्चाई स्वीकार कर ली। पूछताछ में उसने बताया कि वह परिवार और समाज के सामने खुद को सफल और प्रभावशाली दिखाना चाहती थी, इसलिए यह कदम उठाया।
क्या बोले सामाजिक कार्यकर्ता?
समाजिक कार्यकर्ता विजय कुंभारे ने इस घटना को “संस्थागत विफलता” करार दिया है। उनका कहना है कि इस तरह बिना किसी वैरिफिकेशन के अकादमी जैसी संवेदनशील संस्था में किसी बाहरी व्यक्ति का घुसपैठ करना प्रशासनिक लापरवाही और गहराई से जमी व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है।
अब आगे क्या?
पुलिस इस पूरे मामले की गहराई से जांच कर रही है। अब यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इतनी सख्त प्रक्रिया और दस्तावेज सत्यापन के बावजूद एक फर्जी अभ्यर्थी दो साल तक अकादमी में कैसे बनी रही।
यह घटना न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाती है, बल्कि प्रशासनिक तंत्र में गहरे सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करती है।