भारतीय सेना और केंद्र सरकार अब देश की रक्षा तकनीक को और मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठा रही है। आने वाले महीनों में ऐसा नियम लागू होने जा रहा है जिससे भारत में बनने वाले ड्रोन में किसी भी तरह का चीनी पार्ट इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।
क्यों उठाया गया यह कदम?
भारत और चीन के बीच बीते कुछ वर्षों से सीमा पर लगातार तनाव बना हुआ है। इसके चलते भारतीय सेना अपनी निगरानी प्रणाली और तकनीकी संसाधनों को पूरी तरह आत्मनिर्भर और सुरक्षित बनाना चाहती है।
ड्रोन आज की आधुनिक युद्ध तकनीक में अहम भूमिका निभाते हैं—इनका उपयोग:
- सीमाई इलाकों की निगरानी के लिए
- सामान पहुंचाने के लिए
- सैन्य अभियानों में सहायता के लिए
- टारगेट पर सटीक हमले के लिए
इसलिए, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इन ड्रोन्स में किसी भी प्रकार का स्पाइवेयर या जोखिम भरा हार्डवेयर न हो, जो चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी देश से जुड़ा हो।
क्या है नया नियम?
भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय मिलकर एक नया सख्त प्रोटोकॉल ला रहे हैं, जिसमें:
- ड्रोन निर्माताओं को सभी पार्ट्स की पूरी जानकारी देनी होगी
- यह बताना होगा कि कौन सा पार्ट किस देश से आया है
- किसी भी चीनी पार्ट की पहचान होने पर उसका उपयोग तुरंत रोका जाएगा
- ड्रोन के सॉफ्टवेयर की भी तकनीकी जांच की जाएगी
यह नियम जल्दी ही अनुमोदन के बाद लागू कर दिया जाएगा।
मेजर जनरल सीएस मान का बयान
सेना के वरिष्ठ अधिकारी मेजर जनरल सीएस मान ने जानकारी दी कि यह सुरक्षा नियम अंतिम चरण में है और इसे मंजूरी के लिए भेजा जा चुका है। मंजूरी मिलते ही हर ड्रोन की बारीकी से जांच की जाएगी ताकि देश की सुरक्षा से कोई समझौता न हो।
हालिया सैन्य अभियान में ड्रोन की भूमिका
हाल ही में पाकिस्तान के साथ बढ़े तनाव के बीच ऑपरेशन सिंदूर (7 से 10 मई) चलाया गया था। इस अभियान में ड्रोन का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया गया, जिससे उनकी रणनीतिक उपयोगिता और सुरक्षा की आवश्यकता और अधिक स्पष्ट हो गई।
क्या होगा कंपनियों के लिए जरूरी?
नए नियम के तहत:
- सभी ड्रोन निर्माता कंपनियों को हर एक पार्ट की ओरिजिन रिपोर्ट देनी होगी
- तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की गहन जांच की जाएगी
- किसी भी चीनी पुर्जे की मौजूदगी मिलने पर ड्रोन को अस्वीकार कर दिया जाएगा
यह पूरी प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि देश की सुरक्षा प्रणालियों में कोई भी बाहरी खतरा प्रवेश न कर सके।
क्यों है यह कदम समय की मांग?
ड्रोन का उपयोग सिर्फ सेना ही नहीं, बल्कि नागरिक सेवाओं जैसे:
- एग्रीकल्चर
- डिलीवरी
- आपदा प्रबंधन
- स्मार्ट सिटी निगरानी
में भी बढ़ रहा है। ऐसे में उनका साइबर-सुरक्षित और विश्वसनीय होना जरूरी है।
मोदी सरकार का यह कदम न केवल भारत की रक्षा तकनीक को आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि साइबर सुरक्षा को लेकर भी एक नई मिसाल पेश करेगा। जब हर ड्रोन देशी और सुरक्षित होगा, तभी भारत सशक्त और आत्मनिर्भर बन पाएगा।