भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौते (Trade Deal) को लेकर गतिरोध गहराता जा रहा है। अमेरिका ने 8 जुलाई 2025 तक की डेडलाइन तय कर दी है, लेकिन भारत की सख्त नीति के कारण वार्ता अब तक नतीजे पर नहीं पहुंची है। अगर तय समय में समझौता नहीं हुआ तो अमेरिका भारत पर भारी टैक्स (टैरिफ) लगाने की तैयारी में है, जिससे भारतीय उद्योगों को बड़ा झटका लग सकता है।
अमेरिका की मांगें, भारत की सख्ती
अमेरिका चाहता है कि भारत मक्का, सोयाबीन, डेयरी उत्पाद, सेब और सूखे मेवों पर आयात शुल्क (Import Duty) में छूट दे। लेकिन मोदी सरकार इस मांग को मानने को तैयार नहीं है। इसका कारण है:
- इन उत्पादों से देश के करोड़ों छोटे किसान जुड़े हुए हैं।
- कृषि और डेयरी सेक्टर में रियायत से किसानों की आजीविका पर असर पड़ेगा।
- राजनीतिक रूप से भी सरकार के लिए यह जोखिम भरा हो सकता है।
भारत ने पहले भी ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूरोपीय यूनियन के साथ हुए समझौतों में कृषि और डेयरी सेक्टर को बाहर रखा था।
डेयरी और GM फसलों पर भारत का सख्त रुख
भारत, विशेष रूप से डेयरी और आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहता। सरकार का मानना है कि इससे स्थानीय किसानों और उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुंचेगा।
अमेरिका की दो टूक- कृषि उत्पादों के बिना डील नहीं
अमेरिका ने साफ कर दिया है कि अगर भारत कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क नहीं घटाता, भले ही सीमित मात्रा (Quota) में ही क्यों न हो, तब तक व्यापार समझौता संभव नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि टैरिफ पर रोक को आगे बढ़ाने की संभावना बेहद कम है।
अगर डील नहीं होती, तो भारत से अमेरिका भेजे जाने वाले ऑटो पार्ट्स, लोहा और एल्युमिनियम पर 25% से 50% तक अतिरिक्त टैक्स लग सकता है। इससे भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान हो सकता है।
भारतीय उद्योगों की चिंता: ‘एकतरफा डील’ नहीं चाहिए
भारतीय उद्योग जगत का कहना है कि अमेरिका जो रियायतें दे रहा है, जैसे कि ऑटोमोबाइल और व्हिस्की सेक्टर में, उसके बदले भारत को वस्त्र, होम टेक्सटाइल, चमड़ा, फुटवियर, इंजीनियरिंग उत्पाद और ऑटो कंपोनेंट्स जैसे क्षेत्रों में पर्याप्त फायदा नहीं मिल रहा।
भारतीय उत्पादों पर पहले से ही भारी टैक्स:
- ऑटो पार्ट्स: 25% तक अतिरिक्त शुल्क
- लोहा और एल्युमिनियम: 50% तक अतिरिक्त शुल्क
उद्योग जगत का मानना है कि भारत को ‘वन-साइडेड डील’ से बचना चाहिए।
‘मिनी डील’ की उम्मीद अभी बाकी
हालांकि वार्ता मुश्किल दौर में है, लेकिन दोनों देश सितंबर-अक्टूबर में होने वाले बड़े व्यापार समझौते से पहले एक ‘मिनी डील’ पर काम कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भी हाल ही में संकेत दिए हैं कि कुछ सेक्टर्स को बाद में जोड़ा जा सकता है।
ट्रंप को भी डील की जरूरत
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पहले ही चीन के साथ समझौता कर चुके हैं और भारत के साथ ‘बड़ी डील’ का दावा कर रहे हैं। अमेरिका के लिए यह दिखाना जरूरी है कि वह भारत, चीन और ब्रिटेन जैसे बड़े देशों के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्ते बना रहा है।
8 जुलाई को तय होगी भारत-अमेरिका व्यापार रिश्तों की दिशा
अब सभी की नजरें 8 जुलाई पर टिकी हैं। अगर डील होती है तो दोनों देशों के लिए राहत होगी। लेकिन अगर समझौता नहीं हुआ, तो भारतीय उत्पादों पर अमेरिका में भारी टैक्स लगना तय है, जिससे भारतीय निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
निष्कर्ष: भारत अपने किसानों के हित में झुकने को तैयार नहीं
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने छोटे किसानों, डेयरी उद्योग और घरेलू बाजार की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा। अमेरिका दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भारत फिलहाल किसी भी कीमत पर कृषि और डेयरी सेक्टर से समझौता नहीं करना चाहता।