भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए राज्य स्वामित्व वाली कंपनी IREL (India) Limited को निर्देश दिया है कि वह 13 साल पुराने दुर्लभ पृथ्वी खनिज (Rare Earth Elements) निर्यात समझौते को जापान के साथ निलंबित कर दे। यह निर्णय चीन के बढ़ते वर्चस्व को संतुलित करने और भारत की घरेलू आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने के लिए लिया गया है।
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🇮🇳 घरेलू संसाधनों को सुरक्षित रखने की रणनीति
- यह निर्णय प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के निर्देश पर लिया गया है।
- IREL को दुर्लभ खनिजों की घरेलू प्रोसेसिंग क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य सौंपा गया है।
- नेओडिमियम (Neodymium) जैसे महत्वपूर्ण खनिजों की घरेलू मांग को प्राथमिकता दी जा रही है, जो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) के मोटर्स में उपयोग होते हैं।
🇯🇵 जापान के साथ पुराना समझौता और हालिया बदलाव
- वर्ष 2012 में IREL और Toyota Tsusho की भारतीय इकाई Toyotsu Rare Earths India के बीच एक द्विपक्षीय समझौता हुआ था।
- इस समझौते के तहत भारत से संसाधित दुर्लभ खनिज जापान को भेजे जाते थे, जहां उनका उपयोग इंडस्ट्रियल मैग्नेट्स के निर्माण में होता था।
- 2024 में, जापान को 1,000 मीट्रिक टन से अधिक दुर्लभ खनिज भेजे गए, जो IREL की कुल उत्पादन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा था।
🌏 वैश्विक परिदृश्य: चीन का प्रभुत्व और भारत की चुनौती
- चीन वर्तमान में वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का 90% हिस्सा नियंत्रित करता है और उसके पास रिफाइनिंग की एकाधिकार स्थिति है।
- हाल ही में चीन ने 7 दुर्लभ खनिजों और उनसे बने मैग्नेट्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, जो अमेरिका और अन्य देशों के लिए चिंता का कारण बना।
- भारत का उद्देश्य अब इन खनिजों की प्रोसेसिंग में आत्मनिर्भर बनना है।
🇮🇳📈 IREL की योजना और विस्तार
- IREL अब चार नई खदानों की मंजूरी का इंतजार कर रहा है, जिससे घरेलू उत्पादन और प्रोसेसिंग को बढ़ावा मिलेगा।
- वर्तमान में भारत में दुर्लभ खनिजों की प्रोसेसिंग क्षमता सीमित है, जिसकी वजह से पहले इन्हें निर्यात किया जाता था।
⚠️ अंतर-सरकारी समझौते में कानूनी अड़चन
- विशेषज्ञों का मानना है कि भारत तुरंत इस निर्यात को पूरी तरह रोक नहीं पाएगा, क्योंकि यह एक बाइंडिंग इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट के तहत आता है।
- लेकिन भारत ने संकेत दे दिया है कि आने वाले समय में वह घरेलू उपयोग को प्राथमिकता देगा।
🌐 अमेरिका-चीन व्यापार समझौता और उसका असर
- पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया था कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार समझौता “पूरा हो गया है”।
- इसके तहत चीन अमेरिका को फिर से आवश्यक मैग्नेट्स और दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति शुरू करेगा।
- हालांकि, चीन के निर्यात प्रतिबंधों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को अस्थिर किया है, जिससे भारत जैसे देश अब रणनीतिक रूप से सोचने लगे हैं।
🔚 निष्कर्ष: आत्मनिर्भरता की ओर भारत का कदम
भारत का यह फैसला सिर्फ जापान के साथ समझौते को निलंबित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी रणनीतिक दिशा को दर्शाता है—भारत अब दुर्लभ खनिजों में आत्मनिर्भर बनने की राह पर है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में स्थायित्व और घरेलू उद्योगों की जरूरतों को देखते हुए, यह निर्णय आने वाले वर्षों में भारत के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
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