हाल ही में अहमदाबाद एयर इंडिया विमान हादसे ने एक बार फिर से विमान सुरक्षा और तकनीकी जाँच प्रक्रियाओं की ओर ध्यान खींचा है। इस हादसे के बाद सबसे ज्यादा चर्चा ब्लैक बॉक्स को लेकर हो रही है। आम जनता के मन में सवाल है – ब्लैक बॉक्स आखिर होता क्या है? यह कैसे काम करता है? और किसी विमान हादसे के बाद यह इतना महत्वपूर्ण क्यों हो जाता है?
🔍 ब्लैक बॉक्स क्या होता है?
ब्लैक बॉक्स, जिसे तकनीकी भाषा में फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR) कहा जाता है, एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है जो विमान के उड़ान से जुड़ी अहम जानकारी रिकॉर्ड करता है।
यह किसी भी विमान की “याददाश्त” की तरह काम करता है।
ब्लैक बॉक्स का असली रंग काला नहीं होता, बल्कि यह नारंगी (ऑरेंज) रंग का होता है ताकि दुर्घटना स्थल पर यह आसानी से ढूंढा जा सके।
🧠 ब्लैक बॉक्स के दो मुख्य भाग
- Flight Data Recorder (FDR)
- यह उड़ान के दौरान लगभग 88 प्रकार के पैरामीटर रिकॉर्ड करता है। जैसे:
- विमान की गति
- ऊंचाई
- दिशा
- इंजन की स्थिति
- तापमान, दबाव
- लैंडिंग गियर की स्थिति
- यह डेटा सामान्यतः 25 घंटे तक रिकॉर्ड करता है।
- यह उड़ान के दौरान लगभग 88 प्रकार के पैरामीटर रिकॉर्ड करता है। जैसे:
- Cockpit Voice Recorder (CVR)
- यह विमान के कॉकपिट में पायलट और को-पायलट की बातचीत रिकॉर्ड करता है।
- इसमें:
- पायलट की बातचीत
- अलार्म या वार्निंग साउंड
- कॉकपिट की बैकग्राउंड नॉइज़ भी रिकॉर्ड होती है।
- रिकॉर्डिंग क्षमता आमतौर पर 2 घंटे की होती है।
⚙️ ब्लैक बॉक्स कैसे करता है काम?
- ब्लैक बॉक्स को विमान की टेल सेक्शन (पिछला हिस्सा) में लगाया जाता है क्योंकि दुर्घटना में यह हिस्सा अक्सर सबसे कम क्षतिग्रस्त होता है।
- यह उपकरण उच्च तापमान, पानी, आग, और अत्यधिक दबाव को सहन कर सकता है।
- तापमान सहनशक्ति: 1100°C तक
- गहराई: समुद्र में 6000 मीटर तक
- दबाव: 3400 G-force तक
ब्लैक बॉक्स में एक अंडरवाटर लोकटर बीकन (ULB) भी लगा होता है, जो पानी में गिरने की स्थिति में 37.5 kHz की ध्वनि तरंगें छोड़ता है। ये तरंगें करीब 30 दिन तक सक्रिय रहती हैं, जिससे इसे पानी के अंदर से भी ढूंढा जा सके।
✈️ एयर इंडिया हादसे में ब्लैक बॉक्स की भूमिका
अहमदाबाद एयर इंडिया विमान हादसे में, प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक, विमान रनवे से फिसल गया और इंजन में तकनीकी खराबी आई।
ब्लैक बॉक्स की रिकॉर्डिंग्स की मदद से यह पता लगाया जाएगा कि:
- पायलट ने अंतिम क्षणों में क्या कहा?
- इंजन की गति और तापमान क्या था?
- ऑटो-पायलट ऑन था या मैनुअल कंट्रोल?
- क्या कोई चेतावनी (warning signals) पहले से मिली थी?
यह सारी जानकारी जांच एजेंसियों को यह समझने में मदद करती है कि दुर्घटना का मूल कारण क्या था — मानवीय गलती, तकनीकी खराबी या मौसम का असर।
🛡️ क्यों जरूरी है ब्लैक बॉक्स?
- दुर्घटनाओं की निष्पक्ष जांच: यह पायलट की गलती या तकनीकी खामी को निष्पक्ष रूप से उजागर करता है।
- भविष्य की सुरक्षा: पहले की गलतियों से सबक लेकर अगली उड़ानों में सुधार किया जा सकता है।
- लीगल और बीमा प्रक्रियाओं में मदद: पीड़ितों को मुआवजा दिलाने में ब्लैक बॉक्स की रिकॉर्डिंग निर्णायक होती है।
🛠️ ब्लैक बॉक्स कैसे बनाया जाता है?
- इसे टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील जैसी मजबूत धातुओं से तैयार किया जाता है।
- ब्लैक बॉक्स को इम्पैक्ट टेस्ट, फायर टेस्ट, क्रश टेस्ट, डीप वॉटर टेस्ट जैसे कई टेस्टों से गुजरना होता है।
- निर्माण के बाद इसे FAA (Federal Aviation Administration) और अन्य एविशन अथॉरिटी से प्रमाणन मिलता है।
🌐 ब्लैक बॉक्स से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- ब्लैक बॉक्स की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी।
- इसे सबसे पहले ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डेविड वॉरेन ने डिज़ाइन किया था।
- हर व्यावसायिक विमान में ब्लैक बॉक्स लगाना अनिवार्य होता है।
- कुछ देशों में अब ब्लैक बॉक्स के क्लाउड-आधारित वर्जन पर भी काम हो रहा है, जिससे लाइव डेटा ट्रांसफर हो सके।
🤔 क्या ब्लैक बॉक्स को हैक किया जा सकता है?
नहीं। ब्लैक बॉक्स पूरी तरह से एन्क्रिप्टेड और ऑफलाइन होता है। इसे हैक करना या इसमें बदलाव करना असंभव माना जाता है।
📌 निष्कर्ष
ब्लैक बॉक्स किसी भी विमान हादसे के बाद सच्चाई का सबसे बड़ा सूत्रधार होता है। हालिया अहमदाबाद एयर इंडिया हादसे में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। जाँच एजेंसियां ब्लैक बॉक्स की मदद से यह पता लगा पाएंगी कि यह दुर्घटना कैसे और क्यों हुई।
ब्लैक बॉक्स न सिर्फ जवाब देता है, बल्कि भविष्य की उड़ानों को ज्यादा सुरक्षित बनाने में भी अहम भूमिका निभाता है।