रिपोर्ट: आज़ाद सक्सेना
छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला, खास तौर पर बैलाडीला क्षेत्र, देश की सबसे बड़ी लौह अयस्क खदानों में शुमार होता है। यहाँ से हर साल केंद्र और राज्य सरकार को अरबों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन अफसोसजनक सच्चाई ये है कि इसी समृद्ध क्षेत्र में जब एक गौमाता की जान पर बन आई, तो ज़िले भर में उसके इलाज के लिए ज़रूरी दवा तक नहीं मिली।
करैत सांप के डंसने से गंभीर हुई गौमाता की हालत
बैलाडीला के किरंदुल स्थित गौशाला में एक गौमाता को ज़हरीले करैत सांप ने डस लिया। जैसे ही इस घटना की जानकारी मिली, स्थानीय गोसेवक और सर्पमित्र मौके पर पहुंचे। उन्होंने तत्परता दिखाते हुए सांप को पकड़ तो लिया, लेकिन असली चुनौती उसके बाद सामने आई — पूरे जिले में कहीं भी एंटी-वेनम उपलब्ध नहीं था।
इंसानों के लिए बनी दवा से जान बची
इस विषम परिस्थिति में गोसेवकों को मजबूरी में एनएमडीसी (राष्ट्रीय खनिज विकास निगम) अस्पताल का रुख करना पड़ा। यहां इंसानों के लिए सुरक्षित रखी गई एंटी-वेनम को विशेष अनुमति से गौमाता को दिया गया — वो भी इस शर्त पर कि दवा बाद में वापस करनी होगी। सौभाग्य से समय रहते उपचार मिला और गौमाता की जान बचा ली गई।
ट्रिपल इंजन सरकार में भी लापरवाही क्यों?
इस घटना ने सरकार के दावों और ज़मीनी हकीकत के बीच की खाई को उजागर कर दिया है। एक ओर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार गौसेवा को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल बताती है, वहीं दूसरी ओर ज़िले में पशुओं के लिए ज़रूरी दवाएं तक उपलब्ध नहीं हैं।
गौशालाओं के लिए योजनाएं काग़ज़ों पर सीमित हैं
पशु चिकित्सालयों में न दवाएं हैं, न ही आपातकालीन सुविधाएं
खनिज संपन्न जिला होने के बावजूद बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं नदारद
सरकारी घोषणाएं बनाम जमीनी सच्चाई
सरकार की योजनाएं, घोषणाएं और बजट में गौमाता की सेवा को प्रमुखता जरूर दी जाती है, लेकिन बैलाडीला से सामने आई तस्वीरें एक अलग ही हकीकत बयां कर रही हैं। जहां करोड़ों की खदानें हैं, वहां एक एंटी-वेनम का न होना न केवल प्रशासन की लापरवाही है, बल्कि संवेदनहीनता भी।
जनता का सवाल: क्या यही है गौसेवा?
इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल जिला प्रशासन, बल्कि राज्य सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। जनता अब सवाल कर रही है —
“जब अरबों की कमाई सरकार को हो रही है, तो एक गौमाता के लिए ज़रूरी दवा क्यों नहीं?”