बॉलीवुड अभिनेता अध्ययन सुमन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपने संघर्षों को लेकर खुलकर बात की। जहां कई स्टारकिड्स को नेपोटिज़्म (भाई-भतीजावाद) का फायदा मिला है, वहीं अध्ययन सुमन को इसी ने उनका करियर छीन लिया।
हीरामंडी जैसी सीरीज भी नहीं दिला सकी पहचान
साल 2024 में संजय लीला भंसाली की बहुचर्चित और सुपरहिट वेब सीरीज ‘हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार’ में दमदार अभिनय के बावजूद अध्ययन को कोई नया बड़ा प्रोजेक्ट नहीं मिला। उन्होंने कहा:
“मैंने सोचा था कि अब मेरी किस्मत बदल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ‘हीरामंडी’ के बाद मुझे वह ऑफर्स नहीं मिले जिनकी उम्मीद थी।”
“मैं नेपोटिज़्म का सबसे बड़ा उदाहरण हूं”
अध्ययन ने बेबाकी से कहा कि वह नेपोटिज़्म से पीड़ित कलाकारों में सबसे बड़ा उदाहरण हैं:
“नेपोटिज्म की वजह से मुझे काम नहीं मिला। मैं इसे साबित कर सकता हूं। यह बहस अब केवल एक ‘फैशन कन्वर्सेशन’ बनकर रह गई है।”
वे आगे कहते हैं कि भले ही वह एक प्रसिद्ध अभिनेता शेखर सुमन के बेटे हैं, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें उस तरह से स्वीकार नहीं किया जैसा होना चाहिए था।
संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशक के साथ भी कुछ नहीं बदला
अध्ययन बताते हैं कि उन्हें लंबे समय बाद जब भंसाली जैसे दिग्गज फिल्ममेकर के साथ काम करने का मौका मिला, तो उन्हें लगा कि अब वह सफल हो पाएंगे। लेकिन उम्मीद के उलट उन्हें कोई अगला बड़ा प्रोजेक्ट नहीं मिला।
“मैं सोचता रहा कि क्या मैं खुद को दोष दूं या इस इंडस्ट्री के लोगों को?”
लग्जरी जीवन को बताया “जेल”
अध्ययन सुमन ने बताया कि भले ही वह एक लग्जरी लाइफ जीते हों, लेकिन वह उसके पीछे की असलियत समझते हैं:
“मेरी जिंदगी जितनी बाहर से चमकदार दिखती है, अंदर से उतनी ही खाली है। यह सब मेरे पापा की मेहनत का नतीजा है। लेकिन मेरे पास खुद का कुछ भी नहीं है। एक समय बाद ये सब जेल जैसा महसूस होता है।”
“37 की उम्र में मेरा खुद का घर नहीं है”
इंटरव्यू के दौरान अध्ययन ने खुलासा किया कि अभी तक उनके पास खुद का घर नहीं है:
“37 की उम्र में मेरे पास खुद का घर नहीं है। जो कुछ है, वह पापा का है। मैंने उसका आनंद तो लिया, लेकिन अब लगता है – मेरा क्या?”
2009 के बाद से नहीं मिली हिट
अध्ययन की आखिरी हिट फिल्म ‘राज़ – द मिस्ट्री कंटीन्यूस’ साल 2009 में आई थी। तब से लेकर अब तक न तो उन्हें कोई बड़ी हिट मिली और न ही इंडस्ट्री से स्थाई पहचान।
संघर्ष अभी बाकी है
अध्ययन सुमन की कहानी बताती है कि बॉलीवुड में केवल स्टारकिड होना सफलता की गारंटी नहीं है। नेपोटिज़्म जहां कुछ के लिए वरदान है, वहीं कुछ के लिए अभिशाप भी बन सकता है। ‘हीरामंडी’ जैसी सीरीज में नजर आने के बावजूद अगर प्रतिभावान कलाकार को संघर्ष करना पड़े, तो यह इंडस्ट्री के सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है।