एक समय था जब भारत के टैलेंटेड युवा बेहतर भविष्य की तलाश में विदेशों की ओर रुख कर रहे थे — इसे ‘ब्रेन ड्रेन’ कहा गया। लेकिन 21वीं सदी की शुरुआत में यह ट्रेंड पलटता दिखा, जिसे ‘ब्रेन गेन’ कहा गया। क्या इसका बीज राजीव गांधी की दूरदर्शी नीतियों में छिपा था?
राजीव गांधी को टेक्नोलॉजी, शिक्षा और युवाओं के लिए क्रांतिकारी दृष्टिकोण रखने वाला नेता माना जाता है। इस लेख में हम यह विश्लेषण करेंगे कि क्या राजीव गांधी ने भारतीय टैलेंट को विदेश से वापस लाने की नींव रखी थी? और आज का भारत कैसे उस सोच का परिणाम है।
📦 ब्रेन ड्रेन: भारत का टैलेंट क्यों छोड़ रहा था देश?
1950 के दशक से लेकर 1980 के अंत तक, भारत में योग्य इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक बड़ी संख्या में अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों में बसने लगे। कारण थे:
- 🇮🇳 भारत में सीमित अवसर और संसाधन
- 💸 कम वेतन और रिसर्च में निवेश की कमी
- 🌐 विदेशों में उच्च वेतन, बेहतर जीवनशैली और रिसर्च के अवसर
इस परिदृश्य ने भारत को “श्रम देने वाला देश” बना दिया।
👨💻 राजीव गांधी की सोच: टेक्नोलॉजी + टैलेंट = नया भारत
1984 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, राजीव गांधी ने तकनीक, शिक्षा और आधुनिक सोच को भारत की रीढ़ बनाने का बीड़ा उठाया। उनके कुछ क्रांतिकारी फैसले:
💡 1. सूचना प्रौद्योगिकी का प्रारंभिक बुनियादी ढांचा
राजीव गांधी ने कंप्यूटर और टेली-कॉम क्षेत्र को न सिर्फ खोला, बल्कि उसे बढ़ावा भी दिया। उस समय कंप्यूटर का विरोध “बेरोजगारी बढ़ाने वाला उपकरण” कहकर होता था, लेकिन राजीव ने लंबी सोच के तहत इसे आगे बढ़ाया।
🎓 2. उच्च शिक्षा संस्थानों का सशक्तिकरण
उन्होंने IITs, IIMs और अन्य तकनीकी संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के रिसर्च व शिक्षा केंद्रों में बदलने की कोशिश की। इससे भारतीय छात्रों को भरोसा मिला कि देश में भी वैश्विक स्तर की शिक्षा संभव है।
🔬 3. NRIs को जोड़ने की पहल
राजीव गांधी पहले नेता थे जिन्होंने विदेश में बसे भारतीयों (NRIs) को सिर्फ आर्थिक स्रोत नहीं, बल्कि देश की विकास प्रक्रिया का भागीदार समझा।
🧲 प्रवासी भारतीयों की वापसी: नींव कब और कैसे रखी गई?
🌍 1987: ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ का विचार
राजीव गांधी ने प्रवासी भारतीयों को भारत की प्रगति से जोड़ने के लिए संवाद प्रारंभ किया। वे मानते थे कि यह समुदाय सिर्फ विदेशी मुद्रा का स्त्रोत नहीं, बल्कि नॉलेज और इनोवेशन का पुल हो सकता है।
🔁 “रिवर्स माइग्रेशन” का संकेत
हालांकि तब तक बड़े पैमाने पर ‘ब्रेन गेन’ नहीं हुआ था, लेकिन राजीव गांधी ने ऐसी नीतियां शुरू कीं जिनका उद्देश्य था:
- रिसर्च को बढ़ावा देना
- भारतीय कंपनियों को टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाना
- विदेश में बसे वैज्ञानिकों को भारत में रिसर्च के लिए आमंत्रित करना
🛤️ आगे की राह: 90 के दशक और उदारीकरण
राजीव गांधी की नीतियों का असली प्रभाव तब दिखा जब 1991 में भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई। मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गई नई आर्थिक दिशा में राजीव गांधी की तकनीकी सोच और युवा नीति का स्पष्ट प्रभाव दिखता है।
इसके बाद:
- सिलिकॉन वैली में बसे हजारों भारतीय भारत लौटे
- बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे जैसे शहर आईटी हब बने
- स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसी पहलें शुरू हुईं
📊 आंकड़े क्या कहते हैं?
साल | विदेश में बसे भारतीय प्रोफेशनल्स | भारत लौटे प्रवासी |
---|---|---|
1985 | लगभग 8 लाख | 10,000 से भी कम |
2000 | 20 लाख+ | लगभग 75,000 |
2020 | 32 लाख+ | 5 लाख से अधिक |
यह आंकड़े दर्शाते हैं कि 1990 के बाद ब्रेन गेन तेजी से बढ़ा, जिसकी नींव 80 के दशक के अंत में ही तैयार की जा चुकी थी।
🧭 निष्कर्ष: क्या राजीव गांधी ब्रेन गेन के शिल्पकार थे?
- ✅ राजीव गांधी ने माइग्रेशन को प्रॉब्लम नहीं, अवसर के रूप में देखा
- ✅ उन्होंने तकनीक और शिक्षा में निवेश कर देश को प्रवासी टैलेंट के लिए आकर्षक बनाया
- ✅ उन्होंने प्रवासी भारतीयों को ‘भारत के एंबेसडर’ के रूप में मान्यता दी
इसलिए कहा जा सकता है कि राजीव गांधी ने ही वह नींव रखी, जिससे भारत ने ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन में बदलने की यात्रा शुरू की।