Isa Ahmad
REPORT- SANDEEP JAISWAL
पूरे गांव की आंखें हुईं नम
कुशीनगर ज़िले के खड्डा ब्लॉक का सिसवा गोपाल गांव बुधवार की सुबह एक भावुक कहानी का गवाह बना। यहां वह बेटा लौटा, जिसकी प्रतीक्षा घरवालों और गांव वालों ने 45 लंबे सालों तक की थी। यह सिर्फ एक घर वापसी नहीं थी, बल्कि उन यादों की वापसी थी जो 1980 में बिछड़ गई थीं।
1980 में नाराज़ होकर छोड़ा था घर
तैयब अंसारी, जो 1980 में परिवार के बीच किसी बात को लेकर नाराज़ होकर घर से निकल गए थे, आज करीब चार दशक बाद वापस लौटे। घर छोड़ने के बाद पहले पंजाब पहुंचे, फिर राजस्थान, गुजरात और अंत में यूपी के शामली में जाकर बस गए। वहां उन्होंने शादी की, दो बच्चे हुए और किराए के एक छोटे से मकान में जिंदगी के लंबे साल गुज़ार दिए।
लेकिन मन के एक कोने में गांव की मिट्टी, घर की चौखट और अपने लोग हमेशा बसे रहे।
SIR फॉर्म बना घर वापसी का रास्ता
किस्मत ने वापसी का एक अनोखा रास्ता बनाया- SIR फॉर्म।
तैयब अंसारी के पिता का 2003 में बना पुराना SIR रिकॉर्ड और उस समय की मतदाता सूची से उनका नाम जुड़ा हुआ था। SIR प्रक्रिया के दौरान जब यह रिकॉर्ड सामने आया, तो उन्हें गांव में दस्तावेज़ सत्यापन के लिए आना पड़ा।
और बस, इसी बहाने से वह कदम जो 45 साल पहले घर से बाहर निकला था… आज वापस अपने आंगन में आ गया।
45 साल बाद गांव पहुंचते ही ठहर गया माहौल
जैसे ही तैयब गांव पहुंचे, सिसवा गोपाल जैसे ठहर गया। गांव के बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं—हर कोई उस पल का साक्षी बनना चाहता था। पूरा माहौल भावुक हो उठा।
घरवालों ने गले लगाकर उन खोए वर्षों की भरपाई करने की कोशिश की, आंखों में खुशी और इंतज़ार के आंसू थे। यह सिर्फ एक व्यक्ति का घर लौटना नहीं था, बल्कि उन उम्मीदों का लौटना था, जो वर्षों से धुंधली होती जा रही थीं।
तैयब अंसारी ने कहा— “SIR ने मुझे मेरा घर लौटा दिया”
पुरनी यादों को अपने हाथों में समेटते हुए तैयब अंसारी ने कहा—
“SIR प्रक्रिया की वजह से ही मैं अपने गांव और परिवार से दोबारा जुड़ पाया। भले ही वजह छोटी थी, लेकिन इसी के बहाने मुझे अपना घर, अपनी मिट्टी और अपने लोग वापस मिल गए।”
उन्होंने भारत सरकार और SIR प्रक्रिया के लिए आभार व्यक्त किया और कहा कि कभी-कभी एक सरकारी प्रक्रिया भी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी बन जाती है।
एक कहानी जो उम्मीद देती है
यह कहानी सिर्फ एक बेटे की घर वापसी नहीं है, बल्कि यह बताती है कि तकदीर कब और कैसे मोड़ ले लेती है।
45 साल का इंतज़ार, बेशुमार यादें, अधूरी बातें… और अंत में वह मिलन जो पूरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल बन गया।
कुशीनगर के इस गांव में आज वाकई सिर्फ एक शख्स नहीं लौटा-
बल्कि लौटा है एक बेटा, एक उम्मीद और एक कहानी जो हर दिल को छू लेती है।





