11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात बम धमाकों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इस आतंकी हमले में 180 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों घायल हुए थे। अब 19 साल बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में दोषी ठहराए गए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है।
सोमवार को कोर्ट के इस फैसले के बाद 8 आरोपियों को जेल से रिहा कर दिया गया, जबकि बाकी 4 की स्थिति अलग-अलग है।
कोर्ट ने क्यों सुनाया बरी का फैसला?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने विशेष मकोका अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए सभी 12 लोगों को यह कहते हुए बरी किया कि अभियोजन पक्ष इन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका। कोर्ट का मानना था कि यह विश्वास करना कठिन है कि ये आरोपी इस गंभीर अपराध में शामिल थे।
किन्हें मिली रिहाई और कौन नहीं छूटा?
कुल 12 में से:
- 8 आरोपियों को रिहा कर दिया गया
- 2 अन्य मामलों के चलते जेल में ही रहना पड़ा
- 1 की मौत हो चुकी है
- 1 आरोपी फिलहाल पैरोल पर है
सभी आरोपियों की वर्तमान स्थिति
अमरावती जेल से रिहा:
- डॉ. तनवीर अहमद अंसारी
- सोहेल महमूद शेख
- ज़मीर अहमद लतीफुर रहमान शेख
- मोहम्मद साजिद मोहम्मद शफी
नागपुर जेल से रिहा:
- मोहम्मद अली आलम शेर शेख
- एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी
येरवडा जेल से रिहा:
- आरिफ खान बशीर खान
नासिक रोड जेल से रिहा:
- मुजम्मिल अतौर रहमान शेख
जिनकी रिहाई नहीं हो सकी
- मोहम्मद फैजल अब्दुल रहमान शेख – अन्य लंबित मामला
- नवीद हुसैन राशिद हुसैन खान – दो अन्य मामलों के चलते
- साजिद मघरूब अंसारी – फिलहाल पैरोल पर
- कमल अंसारी – 2021 में कोरोना से मृत्यु
फैसले का कानूनी और सामाजिक महत्व
यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में “बियॉन्ड रीजनेबल डाउट” यानी संदेह से परे सिद्ध करने की अहमियत को दर्शाता है। हाईकोर्ट का यह निर्णय न्यायिक जांच की मजबूती और निष्पक्षता का प्रतीक है, लेकिन साथ ही यह उन सवालों को भी उठाता है कि क्या 19 साल जेल में बिताने वाले निर्दोषों को न्याय मिल पाया?
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7/11 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में हाईकोर्ट के इस फैसले ने 19 साल पुराने एक दर्दनाक अध्याय को कानूनी रूप से बंद कर दिया है। लेकिन इससे यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच और सुनवाई में तेज़ी और निष्पक्षता कितनी जरूरी है।