1975 की इमरजेंसी: देश बचाने का फैसला या सत्ता बचाने की चाल?

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1975 की इमरजेंसी

साल 1975, भारतीय राजनीति में ऐसा तूफान आया जिसने देश के लोकतंत्र की जड़ों को हिला कर रख दिया। 25 जून 1975 को उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर दी। इसके साथ ही भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए और लोकतंत्र की जगह तानाशाही ने ले ली।

करीब 21 महीने तक देश में ऐसा माहौल रहा, जिसे आज भी भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दौर माना जाता है। लेकिन सवाल ये है कि उस वक्त वास्तव में हुआ क्या था? इमरजेंसी लगाने की असली वजह क्या थी? क्या देश की सुरक्षा वाकई खतरे में थी या फिर ये सिर्फ सत्ता बचाने का एक तरीका था? आइए, जानते हैं पूरी सच्चाई।


क्या होता है राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency)?

राष्ट्रीय आपातकाल, यानी देश में ऐसी स्थिति जब नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर रोक लग जाती है और लोकतांत्रिक व्यवस्था अस्थायी रूप से खत्म हो जाती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत, अगर देश की सुरक्षा, शांति, स्थिरता या शासन व्यवस्था पर गंभीर खतरा मंडराता है, तो राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर सकते हैं।

आपातकाल तीन कारणों से लगाया जा सकता है:

  • युद्ध (War)
  • बाहरी आक्रमण (External Aggression)
  • आंतरिक अशांति या विद्रोह (Internal Disturbance)

भारत में इससे पहले भी लग चुका था आपातकाल

1975 से पहले भी भारत में दो बार आपातकाल लागू हो चुका था:

  1. 1962 – चीन युद्ध के दौरान
    प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत-चीन युद्ध के चलते आपातकाल लागू किया। युद्ध खत्म होने के बावजूद, यह आपातकाल करीब 5.5 साल तक जारी रहा।
  2. 1971 – भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान
    प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत-पाक युद्ध के दौरान दूसरी बार आपातकाल लगाया। युद्ध तो दो हफ्ते में खत्म हो गया, लेकिन आपातकाल 1977 तक जारी रहा।

लेकिन 1975 का तीसरा आपातकाल, इन दोनों से बिल्कुल अलग था। पहले दो आपातकाल बाहरी युद्ध के कारण थे, जबकि तीसरा आपातकाल पूरी तरह से राजनीतिक कारणों से लगाया गया था।


1975 में आपातकाल लगाने की असली वजह क्या थी?

सारी कहानी शुरू होती है 1971 के लोकसभा चुनाव से। उस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की, कुल 518 में से 352 सीटें हासिल कीं। खुद इंदिरा गांधी ने अपने प्रतिद्वंदी राज नारायण को 1 लाख 10 हजार वोटों से हराया।

लेकिन हारने के बाद राज नारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी की जीत को चुनौती देते हुए चुनाव याचिका (Election Petition) दायर की।

आरोप क्या थे?

राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर कई अनियमितताओं के आरोप लगाए। हालांकि, हाईकोर्ट ने अधिकतर आरोप खारिज कर दिए, लेकिन दो गंभीर मामलों में इंदिरा गांधी को दोषी पाया:

  1. सरकारी संसाधनों का चुनाव प्रचार में इस्तेमाल
    इंदिरा गांधी के चुनाव प्रचार में स्टेज, लाउडस्पीकर, बैरिकेड्स और पुलिस की तैनाती सरकारी अधिकारियों की मदद से की गई, जो कानून का उल्लंघन था।
  2. सरकारी अधिकारी को चुनाव एजेंट बनाना
    इंदिरा गांधी के चुनाव एजेंट यशपाल कपूर सरकारी अधिकारी थे। उन्होंने इस्तीफा देने से पहले ही इंदिरा गांधी के लिए प्रचार शुरू कर दिया था, जो नियमों के खिलाफ था।

नतीजा?

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया और उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही, प्रधानमंत्री पद से हटने का आदेश दिया गया।


सुप्रीम कोर्ट में अपील और आपातकाल की घोषणा

इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। कोर्ट ने आंशिक राहत देते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं, लेकिन सांसद के रूप में संसद की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले सकतीं।

हालांकि, इंदिरा गांधी इससे संतुष्ट नहीं थीं। उन्हें डर था कि अगर केस हार गईं तो प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा। इसलिए उन्होंने सीधे राष्ट्रपति फ़खरुद्दीन अली अहमद को पत्र लिखकर आपातकाल लगाने की सिफारिश की।

25 जून 1975 की रात, राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी।


आपातकाल के बाद क्या हुआ?

  • विपक्ष के बड़े नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • अखबारों की बिजली काट दी गई ताकि सुबह जनता को खबर न मिल सके।
  • रेडियो पर इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की।
  • देशभर में असहमति जताने वाले हजारों लोगों को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया।
    अनुमान है कि करीब 1 लाख लोग गिरफ्तार किए गए।

संजय गांधी और जबरन नसबंदी कांड

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने अपनी ताकत का खुलकर दुरुपयोग किया। उनकी अगुवाई में:

  • दिल्ली की झुग्गियों को जबरन तोड़ा गया।
  • पूरे देश में जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया।
  • 81 लाख लोगों की नसबंदी की गई, जिसमें कई लोगों की मौत भी हुई।
  • महिलाओं को भी जबरन क्यूबेक्टॉमी (गर्भनिरोधक सर्जरी) करवाई गई।

इमरजेंसी का अंत और जनता का फैसला

लगभग 21 महीनों तक आपातकाल लागू रहा। आखिरकार, 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा लिया गया। उसी साल हुए आम चुनाव में:

  • इंदिरा गांधी और संजय गांधी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
  • जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
  • देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।

निष्कर्ष: लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इंदिरा गांधी की लोकतंत्र विरोधी सोच की आलोचना करते हुए कहा था कि उन्हें लोकतंत्र से कभी लगाव नहीं था।

इंदिरा गांधी ने विदेश नीति और युद्ध के मोर्चे पर कई साहसिक फैसले लिए, लेकिन 1975 की इमरजेंसी न केवल उनके राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा धब्बा बनी, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र पर भी गहरा काला निशान छोड़ गई।


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

Q. इमरजेंसी कब लागू हुई थी?
25 जून 1975 को।

Q. इमरजेंसी कितने समय तक लागू रही?
करीब 21 महीने, 21 मार्च 1977 तक।

Q. इमरजेंसी क्यों लगाई गई थी?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से प्रधानमंत्री पद खोने के डर से।

Q. इमरजेंसी में क्या-क्या हुआ?
मौलिक अधिकारों पर रोक, विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी, मीडिया पर सेंसरशिप, जबरन नसबंदी आदि।


अंतिम विचार

1975 की इमरजेंसी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की सबसे बड़ी चेतावनी है कि सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेही से ऊपर नहीं रखा जा सकता। यह घटना आज भी हमें लोकतंत्र, संविधान और नागरिक स्वतंत्रता की कीमत याद दिलाती है।

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