रीवा वन विभाग इस समय एक नई और उन्नत तकनीक का उपयोग कर रहा है, जो ड्रोन के माध्यम से हवाई सीडिंग (एरियल सीडिंग) की प्रक्रिया है। यह प्रयोग रीवा जिले के विभिन्न स्थानों पर किया जा रहा है, जिसमें विशेष रूप से गंगेव के हिनौती गांव और रायपुर कर्चुलियान की भलुआ पहाड़ी शामिल हैं।
हवाई सीडिंग की प्रक्रिया
ड्रोन के माध्यम से बीजों का छिड़काव: ड्रोन का उपयोग करके बीजों को ऊँचाई से वन क्षेत्रों में छिड़काव किया जा रहा है। इस तकनीक के द्वारा, घास और अन्य पौधों की प्रजातियों के बीजों को ऐसे स्थानों पर वितरित किया जा सकता है, जहां पहुंचना कठिन होता है। ड्रोन के माध्यम से बीजों को फैलाने से न केवल समय की बचत होती है बल्कि दुर्गम और अवरोधित क्षेत्रों में भी तेजी से वनस्पति का विकास हो सकता है।
प्रयोग की शुरुआत
पृष्ठभूमि और प्रेरणा: डीएफओ अनुपम शर्मा के अनुसार, हाल ही में डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने हिनौती के गौवंश विहार के लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान वन विभाग को निर्देश दिए थे कि नजदीकी वन क्षेत्रों में चारागाह विकसित किया जाए। इसके अंतर्गत, वन विभाग ने तय किया कि ड्रोन के माध्यम से घास और अन्य पौधों के बीजों का छिड़काव शुरू किया जाएगा।
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गंगेव के हिनौती गांव: यहाँ पर बीजों का छिड़काव गौधाम के पास किया गया है, जहां चारागाह भूमि के विकास की आवश्यकता है।
उपयोग के स्थान
रायपुर कर्चुलियान की भलुआ पहाड़ी: यहाँ सीडिंग का काम जिला प्रशासन के सुझाव पर किया गया है। इस क्षेत्र में ड्रोन के माध्यम से बीजों का छिड़काव करके बीजारोपण की प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है।
उद्देश्य और लाभ
आवारा पशुओं की समस्या: रीवा जिले में आवारा पशु किसानों और आम लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बने हुए हैं, जो खेतों और सड़कों पर घूमते रहते हैं। इन पशुओं को नियंत्रित करने के लिए किसान कलेक्टर को लिखित पत्र भी सौंप चुके हैं।
चारागाह भूमि का विकास: गौवंश की सुरक्षा और उनकी भोजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए गंगेव जनपद पंचायत के हिनौती गांव में 147.14 लाख रुपये की लागत से 1303 एकड़ में गौवंश वन्य विहार विकसित किया जा रहा है। इसके लिए पर्याप्त चारागाह भूमि की आवश्यकता है, जिसे पूरा करने का जिम्मा वन विभाग को सौंपा गया है।
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तकनीकी लाभ
तेजी और प्रभावशीलता: ड्रोन के माध्यम से हवाई सीडिंग का प्रयोग उन क्षेत्रों में भी बीजारोपण को संभव बनाता है, जहां मैनपावर की सहायता से यह कार्य कठिन और समय-consuming हो सकता है। विशेषकर दुर्गम क्षेत्रों में, ड्रोन तेजी से बीजों को फैलाने में सक्षम होता है।
भविष्य की योजनाएँ
परिणाम और विस्तारीकरण: हवाई सीडिंग के परिणाम अगस्त में देखे जाएंगे। अगर बीजों का 2-3 प्रतिशत भी अंकुरण होता है, तो इसे सकारात्मक माना जाएगा। यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो भविष्य में रीवा वन मंडल के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
अन्य राज्यों में उपयोग: इस तकनीक का पहले से ही राजस्थान और उत्तराखंड में उपयोग किया जा चुका है। यह मध्यप्रदेश में पहली बार प्रयोग की जा रही है।
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वर्तमान स्थिति
बीज का छिड़काव: वर्तमान में स्टाइलो और दीनानाथ घास पर ध्यान केंद्रित किया गया है, और आवंला तथा नीम के बीजों का भी ड्रोन के माध्यम से छिड़काव किया गया है। एक हेक्टेयर में लगभग 5 किलो बीजों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे बीजारोपण की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
इस नए प्रयोग से वन विभाग को यह उम्मीद है कि यह तकनीक पर्यावरण संरक्षण और वनस्पति विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान देगी।