NGOs और विदेशी फंडिंग: सरकार ने लगाया सख्त नियम, जानिए पूरी कहानी

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विदेशी फंडिंग नियम

हाल ही में भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने उन गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के लिए नए निर्देश जारी किए हैं जो विदेशी फंडिंग प्राप्त करते हैं। इन नए नियमों के तहत, विदेशी फंडिंग लेने वाले NGOs अब कोई भी समाचार सामग्री या न्यूजलेटर प्रकाशित नहीं कर पाएंगे। इसके लिए उन्हें Registrar of Newspapers for India (RNI) से प्रमाणपत्र लेना होगा कि वे कोई समाचार सामग्री प्रकाशित नहीं करते हैं।

यह लेख इन नए नियमों की मुख्य बातें, उनके प्रभाव और भारत में विदेशी फंडिंग से जुड़ी कानूनी प्रक्रिया को विस्तार से समझाता है।


विदेशी फंडिंग पाने वाले NGOs के लिए क्या हैं नए नियम?

गृह मंत्रालय ने Foreign Contribution Regulation Rules (FCRR) में संशोधन करते हुए विदेशी फंडिंग प्राप्त करने वाले NGOs पर सख्त नियंत्रण लागू किया है। इन नियमों की खास बातें हैं:

  • समाचार सामग्री पर पाबंदी: विदेशी फंडिंग लेने वाले NGOs अब न्यूजलेटर या कोई भी समाचार सामग्री प्रकाशित नहीं कर सकते।
  • RNI से प्रमाणपत्र: उन्हें “Not a Newspaper” प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा, जो साबित करता है कि वे समाचार सामग्री प्रकाशित नहीं करते।
  • FATF के नियमों का पालन: फंडिंग के लिए आवेदन करते समय NGOs को Financial Action Task Force (FATF) के गाइडलाइंस का पालन करने का आश्वासन देना होगा। FATF आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने वाली विश्व स्तर की संस्था है।
  • वित्तीय पारदर्शिता: NGOs को पिछले तीन वित्तीय वर्षों के वित्तीय विवरण और ऑडिट रिपोर्ट जमा करनी होगी, जिनमें शामिल हैं:
    • संपत्तियों और देनदारियों का विवरण
    • प्राप्तियों और भुगतान का लेखा-जोखा
    • आय और व्यय का लेखा
  • गतिविधि रिपोर्ट: NGOs को पिछले तीन वर्षों की वार्षिक गतिविधि रिपोर्ट भी प्रदान करनी होगी।

ये बदलाव क्यों महत्वपूर्ण हैं?

2020 में Foreign Contribution (Regulation) Act में हुए संशोधनों ने सरकार को विदेशी फंडिंग प्राप्त NGOs पर अधिक कड़ी नजर रखने का अधिकार दिया। नए नियम:

  • NGOs की सार्वजनिक संवाद और सूचना साझा करने की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।
  • फंडिंग के उपयोग की पारदर्शिता बढ़ाते हैं।
  • सरकार की इच्छा को दर्शाते हैं कि विदेशी फंडिंग का अधिक प्रभावी निरीक्षण हो।

NGOs और नागरिक समाज पर प्रभाव

2020 के बाद से कई NGOs, विशेषकर मानवाधिकार, सामाजिक न्याय और नीति शोध के क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों ने विदेशी फंडिंग लाइसेंस हासिल करने में बाधाओं का सामना किया है। कुछ प्रमुख NGOs जैसे Oxfam India, Commonwealth Human Rights Initiative, और Centre for Policy Research के FCRA लाइसेंस निरस्त या नवीकरण से वंचित किए गए हैं।

आलोचकों का मानना है कि ये नियम:

  • NGOs की कार्यक्षमता और आवाज़ को दबाते हैं।
  • सरकार की आलोचना करने वाले संगठनों को निशाना बनाते हैं।
  • ज़मीनी स्तर पर महत्वपूर्ण सामाजिक सेवाओं और पहलों को प्रभावित करते हैं।

वहीं, समर्थकों का तर्क है कि ये नियम पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं ताकि विदेशी फंड का दुरुपयोग रोका जा सके।


भविष्य में NGOs के लिए क्या मायने रखता है?

विदेशी फंडिंग के लिए आवेदन करने वाले NGOs को अब:

  • समाचार सामग्री प्रकाशित करने से पहले उचित प्रमाणपत्र लेना होगा।
  • FATF के नियमों का कड़ाई से पालन करना होगा।
  • वित्तीय और गतिविधि रिकॉर्ड को पूरी पारदर्शिता के साथ रखना होगा।
  • सरकारी निगरानी के लिए तैयार रहना होगा।

Also Read: वीर सावरकर जयंती 2025: भारत के विवादित स्वतंत्रता सेनानी की पूरी कहानी


निष्कर्ष: विदेशी फंडिंग के नए नियमों के बीच NGOs का रास्ता

भारत में विदेशी फंडिंग पर नए नियम NGOs के लिए एक चुनौती बनकर आए हैं। जहां सरकार की मंशा पारदर्शिता और सुरक्षा को बढ़ाना है, वहीं ये बदलाव NGOs की स्वतंत्रता और कामकाज पर प्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए NGOs को इन नियमों को अच्छी तरह समझकर अपने संचालन और रणनीति को नए कानून के अनुरूप बनाना होगा।

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