by: vijay nandan
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बुढ़ाना गांव में जून 2024 का महीना उत्सव के रंग में रंग गया था। ऐसा माहौल इस छोटे से गांव में पहले कभी नहीं देखा गया। कारण थीं पूजा तोमर, जिन्होंने अल्टीमेट फाइटिंग चैंपियनशिप (UFC) में जीत हासिल कर देश का नाम रोशन किया। पूजा ने ब्राजील की फाइटर रेयान अमांडा डोस सैंटोस को हराकर UFC बाउट जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनने का गौरव हासिल किया। गांव में उनका स्वागत किसी चैंपियन की तरह हुआ—फूलों की माला, तालियों की गड़गड़ाहट और लोगों की भीड़ उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने को बेताब।
लेकिन पूजा की यह जीत सिर्फ रिंग तक सीमित नहीं थी। यह उस संघर्ष की जीत थी, जो उन्होंने अपने जन्म से शुरू किया था। एक ऐसी लड़ाई, जिसमें वह समाज की रूढ़ियों और परिवार की उम्मीदों को चुनौती देती आईं।
जन्म से शुरू हुआ संघर्ष
पूजा का जन्म मुजफ्फरनगर के एक साधारण परिवार में हुआ। उनके घर में पहले से दो बेटियाँ, अंजलि और अनु, मौजूद थीं। जब तीसरी बेटी के रूप में पूजा का जन्म हुआ, तो यह खबर सुनते ही उनके पिता सदमे में बेहोश हो गए। उस समय बेटियों को बोझ मानने की मानसिकता के चलते उनके पिता ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पूजा को मरने के लिए एक बर्तन में छोड़ दिया गया था, लेकिन उनकी माँ ने ममता के बल पर उन्हें बचा लिया। आज पूजा ने अपनी मेहनत से यह साबित कर दिखाया कि बेटियाँ बोझ नहीं, बल्कि गर्व का प्रतीक होती हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में पूजा ने कहा, “मेरे जन्म के समय मेरे पिता ने मुझे पालने से मना कर दिया था। मुझे मरने के लिए छोड़ दिया गया, लेकिन मैंने ठान लिया था कि मुझे दुनिया को दिखाना है कि एक लड़की कमजोर नहीं होती।”

जैकी चैन से प्रेरणा, कराटे से शुरुआत
पूजा की जिंदगी में बदलाव तब आया जब उन्होंने बचपन में जैकी चैन की एक वीडियो देखी। उस वीडियो ने उनके मन में एक सपना जगा दिया—वह भी ऐसी ही फाइटर बनेंगी। महज सात साल की उम्र में उन्होंने स्कूल में कराटे सीखना शुरू किया। एक बार कराटे के दौरान उन्होंने एक लड़के को इतनी जोर से मारा कि वह बेहोश हो गया। पूजा हँसते हुए कहती हैं, “मैंने लड़कों को हराने के लिए कराटे शुरू किया था, लेकिन बाद में समझ आया कि यह एक बेहतरीन खेल है, जिसमें मैं कुछ बड़ा कर सकती हूँ।”
SAI सेंटर से MMA तक का सफर
कराटे में अपनी पहचान बनाने के बाद पूजा को अपने चाचा की मदद से भोपाल के SAI (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) सेंटर में ट्रेनिंग का मौका मिला। सालों की कड़ी मेहनत के बाद उन्हें कांस्टेबल की नौकरी का प्रस्ताव मिला, लेकिन पूजा ने इसे ठुकरा दिया। उनका कहना था, “इतनी मेहनत के बाद सिर्फ कांस्टेबल की नौकरी? यह मेरे लिए स्वीकार्य नहीं था।” इसी दौरान उन्हें मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स (MMA) के बारे में पता चला और उन्होंने इसमें कदम रखने का फैसला किया।
MMA में शुरुआत आसान नहीं थी। न कोई कॉन्ट्रैक्ट था, न ही पैसों का कोई बड़ा स्रोत। जो थोड़े-बहुत पैसे मिलते, उसे वह अपनी ट्रेनिंग में लगातीं। लेकिन उनकी लगन रंग लाई। धीरे-धीरे उन्हें पहचान मिली, स्पॉन्सरशिप मिलने लगी और आखिरकार जून 2024 में UFC में जीत ने उनके सपनों को सच कर दिखाया। उनकी अगली बड़ी फाइट 22 मार्च 2025 को ब्रिटेन की शाउना बैनन के खिलाफ होने वाली है।
रिंग से बाहर एक अलग पूजा
रिंग में तूफान मचाने वाली पूजा का एक दूसरा पहलू भी है। उन्हें स्केचिंग का शौक है। उनके घर की दीवारें उनकी बनाई तस्वीरों और शिल्पकला से सजी हैं। पूजा कहती हैं, “लड़ाई मेरा जुनून है, लेकिन स्केचिंग मुझे सुकून देती है। यह मुझे जमीन से जोड़े रखती है।”
एक प्रेरणा का प्रतीक
पूजा तोमर की कहानी सिर्फ एक फाइटर की नहीं, बल्कि एक ऐसी महिला की है, जिसने हर मुश्किल को चुनौती दी और अपने दम पर इतिहास रच दिया। वह उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं, जो अपने सपनों को सच करने की हिम्मत रखती हैं। आज बुढ़ाना का वह छोटा सा गांव गर्व से कहता है—यह हमारी पूजा है, भारत की पहली UFC चैंपियन।
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