युधरा फिल्म की कहानी एक गुस्सैल युवक युधरा (सिद्धांत चतुर्वेदी) की है, जो अपने पिता के कातिलों से बदला लेने की कोशिश करता है। बचपन में अपने माता-पिता को एक ड्रग माफिया से खोने के बाद, युधरा को अपने गुस्से को नियंत्रित करने और देश की सेवा करने के लिए प्रेरित किया जाता है। हालांकि, फिल्म का प्लॉट कई जगहों पर कमजोर लगता है और यह बहुत सारी फिल्मों की याद दिलाता है।
कमजोर कहानी और ढीला लेखन
श्रीधर राघवन द्वारा लिखित युधरा की कहानी में नयापन नहीं है। बहुत से मोड़ पहले से ही अनुमानित हैं और दर्शकों को कुछ खास नहीं देते। फिल्म का प्लॉट डॉन (1976) और एनिमल (2023) जैसी फिल्मों से प्रेरित लगता है। यह फिल्म वही पुरानी प्रतिशोध की कहानी पेश करती है, जिसमें कुछ विशेष ट्विस्ट या गहराई की कमी है।
अभिनय और निर्देशन
सिद्धांत चतुर्वेदी ने युधरा के रूप में अच्छा अभिनय किया है। उनके एक्शन सीन्स प्रभावशाली हैं और वे अपने किरदार के गुस्से और भावनाओं को बखूबी पेश करते हैं। मालविका मोहनन ने भी निखत के रूप में सशक्त परफॉर्मेंस दी है। उनके और सिद्धांत के बीच की केमिस्ट्री अच्छी है, लेकिन फिल्म का कमजोर लेखन उनकी परफॉर्मेंस को पूरी तरह उभार नहीं पाता।
रवि उदयवार का निर्देशन स्टाइलिश है। पुर्तगाल में फिल्माया गया पीछा करने वाला सीन और म्यूजिक शॉप में एक्शन दृश्य बहुत अच्छे हैं। हालांकि, कहानी और पटकथा की कमी के कारण, उनका निर्देशन फिल्म को पूरी तरह बचा नहीं पाता।
युधरा के अन्य पहलू
संगीत:
फिल्म का संगीत काफी औसत है। ‘सोहनी लगदी’ और ‘हट जा बाजू’ जैसे गाने प्रभावित नहीं कर पाए। बैकग्राउंड स्कोर हालांकि अच्छा है और फिल्म की टेंशन को बनाए रखता है।
सिनेमैटोग्राफी:
जय पिनाक ओझा की सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है। पुर्तगाल के दृश्य खूबसूरती से फिल्माए गए हैं।
एक्शन:
फेडेरिको कुएवा और सुनील रोड्रिग्स का एक्शन बेवजह खूनी है, जो सभी दर्शकों को पसंद नहीं आएगा।
क्यों देखें युधरा?
युधरा को देखने का एक मुख्य कारण इसका स्टाइलिश निर्देशन और एक्शन है। यदि आप सिद्धांत चतुर्वेदी के फैन हैं या फिर स्टाइलिश एक्शन ड्रामा पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपको आकर्षित कर सकती है। लेकिन अगर आप एक मजबूत कहानी और पटकथा की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म थोड़ी निराश कर सकती है।