बलूचिस्तान बना पाकिस्तान की नई मुश्किल,सेना फिर दोहरा रही 1971 की गलती?
By: Vijay Nandan
इस्लामाबाद: पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर एक बार फिर अपने विवादित बयानों को लेकर चर्चा में हैं। बुधवार को इस्लामाबाद में आयोजित प्रवासी पाकिस्तानी सम्मेलन में उन्होंने बलूचिस्तान में जारी स्वतंत्रता आंदोलन को हल्के में लेते हुए कहा कि “1500 लोग बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग नहीं कर सकते।” उनके इस बयान ने 1970 के याह्या खान के उस चर्चित वक्तव्य की याद दिला दी, जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में स्वतंत्रता की मांग को भी इसी तरह खारिज कर दिया गया था।
मुनीर ने अपने संबोधन में कहा, “हर पाकिस्तानी को अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह जरूर बताना चाहिए कि इस देश की नींव कैसे रखी गई। पाकिस्तान की कहानी को भुलाया नहीं जाना चाहिए।” उन्होंने बलूच आंदोलन को नकारते हुए उसे अफवाह और सीमित लोगों की मांग बताया।

याह्या खान की तरह सोच?
1970 में तत्कालीन सैन्य शासक याह्या खान ने पूर्वी पाकिस्तान के आंदोलन को “अफवाह” करार दिया था। उन्होंने कहा था कि पूर्वी पाकिस्तान के लोग पश्चिमी पाकिस्तान से अलग नहीं होना चाहते। लेकिन एक साल के अंदर ही पाकिस्तान का विभाजन हो गया और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
अब, जनरल असीम मुनीर के ताजा बयान को लेकर बलूच नेताओं और आम लोगों में भारी रोष है। बलूच नेताओं का कहना है कि सेना अभी भी 1971 वाली मानसिकता से बाहर नहीं निकली है। बलूच नेता शाहीन बलूच ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यही सोच थी जिसने पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया था और यही सोच अब बलूचिस्तान के साथ दोहराई जा रही है।”
अलग-अलग मोर्चों पर बगावत
पाकिस्तान इन दिनों कई अंदरूनी संकटों से जूझ रहा है। बलूचिस्तान के अलावा खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) सक्रिय है और वहां सेना पर लगातार हमले हो रहे हैं। सिंध में भी अलगाववादी सुर बुलंद हैं। विश्लेषकों का मानना है कि अगर हालात इसी तरह रहे, तो पाकिस्तान को एक और विभाजन झेलना पड़ सकता है।
क्या पाकिस्तान फिर उसी राह पर?
पाकिस्तानी सेना पर आरोप है कि वह लगातार बलूच आंदोलन को दबाने के लिए हिंसक तरीकों का इस्तेमाल कर रही है। सैकड़ों लोगों के लापता होने की खबरें हैं, तो कई बार मानवाधिकार उल्लंघन के मामले भी सामने आए हैं। जानकारों का कहना है कि यदि सेना ने आंदोलनकारियों की बात नहीं सुनी, तो इतिहास खुद को दोहरा सकता है। जनरल मुनीर का बयान एक बार फिर दर्शाता है कि पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व अभी भी जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है। जिस तरह 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को लेकर यथार्थ को नकारा गया था, उसी तरह अब बलूचिस्तान में हो रही घटनाओं को भी अनदेखा किया जा रहा है। यह लापरवाही पाकिस्तान को कितनी महंगी पड़ेगी, इसका अंदाज़ा शायद अभी किसी को नहीं है।
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