BY: Yoganand Shrivastva
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। अक्टूबर-नवंबर में 243 सीटों पर होने वाले महासंग्राम के लिए राजनीतिक दल अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। इस बार मुकाबला सीधे तौर पर NDA (भाजपा+जदयू) और महागठबंधन (राजद+कांग्रेस) के बीच होने जा रहा है, जबकि प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ पार्टी तीसरे विकल्प के तौर पर उभर रही है। सियासी माहौल गर्म है और मुद्दों की भरमार है — लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा एक बार फिर NDA को सत्ता दिला पाएगा?
बिहार में चुनावी पारा चढ़ा, ये हैं सबसे गर्म मुद्दे
कानून व्यवस्था
बिहार में बढ़ते अपराध ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हत्या, लूट और अपहरण की घटनाएं आम हो गई हैं। पटना जैसे बड़े शहरों में हुए ताबड़तोड़ वारदातों ने जनता को डरा दिया है। विपक्ष इसे ‘जंगल राज 2.0’ बताकर निशाना साध रहा है। हालांकि नीतीश कुमार दावा करते हैं कि उन्होंने बिहार को अपराध से मुक्ति दिलाई, लेकिन आंकड़े और जनता की नाराजगी कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।
वोटर लिस्ट विवाद
वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी का आरोप है कि गरीबों और दलितों के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं। चुनाव आयोग सफाई दे रहा है कि प्रक्रिया पारदर्शी और डिजिटल है, लेकिन इस पर सियासी आरोप-प्रत्यारोप लगातार जारी हैं।
नीतीश कुमार की सेहत और उम्र
74 वर्षीय नीतीश कुमार की सेहत अब राजनीतिक बहस का मुद्दा बन चुकी है। हाल ही में राष्ट्रगान के दौरान उनकी हरकतों को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए थे। नीतीश की ‘प्रगति यात्रा’ भी स्वास्थ्य कारणों से टल चुकी है। अगर नीतीश खुद को फ्रंटफुट पर नहीं रख पाते तो भाजपा को नया चेहरा खोजना पड़ेगा, जो आसान नहीं होगा।
बेरोजगारी और पलायन
बेरोजगारी और पलायन बिहार की सबसे जटिल समस्याएं हैं। हर साल लाखों लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करते हैं। नीतीश सरकार ने 1 करोड़ नौकरियों का दावा किया है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे उलट नजर आ रही है। तेजस्वी यादव युवाओं के बीच बेरोजगारी के मुद्दे को खूब भुना रहे हैं।
जातीय जनगणना और आरक्षण
जातीय जनगणना ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। सामाजिक न्याय की मांग और आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग जोर पकड़ रही है। नीतीश कुमार ने पिछड़ों और अति पिछड़ों को आरक्षण दिया, लेकिन अब जाति आधारित राजनीति और भी धार पकड़ रही है, जिससे भाजपा को भी सतर्क रहना होगा।
क्या पीएम मोदी बदल सकते हैं सियासी खेल?
प्रधानमंत्री मोदी आज भी एनडीए के सबसे बड़े ‘पोस्टर बॉय’ हैं। बिहार में उनकी पकड़ मज़बूत है और जनसभाओं में उनकी मौजूदगी भीड़ खींचती है। हाल ही में उनकी रैलियों ने माहौल को नया मोड़ दिया है। नीतीश के साथ मिलकर भाजपा ने सवर्ण, ओबीसी और दलित वोटर्स को जोड़ने की प्लानिंग की है। महिलाओं और युवाओं के लिए विशेष योजनाएं लॉन्च कर उन्हें लुभाने की कोशिश जारी है।
लेकिन पीएम मोदी को भी कई मोर्चों पर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है — खासकर तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर की बढ़ती लोकप्रियता से।
बिहार का मौजूदा सियासी समीकरण
- एनडीए (भाजपा + जदयू): नीतीश कुमार के अनुभव और मोदी के करिश्मे पर दांव
- महागठबंधन (राजद + कांग्रेस): तेजस्वी यादव के नेतृत्व में युवा और मुस्लिम-यादव वोट बैंक पर फोकस
- जन सुराज पार्टी (प्रशांत किशोर): महिलाओं और पढ़े-लिखे युवाओं को लक्ष्य बनाकर नई राजनीति की पेशकश
सियासी गणित को देखें तो अगर मोदी-नीतीश का गठजोड़ जातीय संतुलन के साथ कल्याणकारी योजनाओं का सही कार्ड खेलता है, तो एनडीए को फायदा हो सकता है। लेकिन अगर अपराध, बेरोजगारी और एंटी-इनकंबेंसी जैसे मुद्दे हावी रहे, तो यह समीकरण पलट भी सकता है।
नतीजा क्या होगा?
बिहार चुनाव 2025 पूरी तरह मुद्दों और चेहरों की टक्कर बन चुका है। नीतीश की थकावट बनाम तेजस्वी की ऊर्जा, मोदी का करिश्मा बनाम जनता का मूड, जातिगत आंकड़े बनाम कल्याणकारी योजनाएं — यह मुकाबला आसान नहीं होने वाला। अंतिम फैसला जनता के मिजाज और ग्राउंड लेवल पर काम के आधार पर ही होगा। पर इतना तय है कि इस बार बिहार की लड़ाई दिलचस्प और निर्णायक होने वाली है।