मध्य प्रदेश के भोपाल में पुलिस भर्ती परीक्षा के दौरान बड़ा घोटाला सामने आया है। 22 उम्मीदवारों पर आरोप है कि उन्होंने अपने आधार कार्ड में छेड़छाड़ कर परीक्षा में किसी और को बिठाया। यह फर्जीवाड़ा फिजिकल वेरिफिकेशन के समय उजागर हुआ जब असली और परीक्षा में शामिल व्यक्ति अलग निकले।
इस मामले में पुलिस ने जांच के बाद सभी 22 अभ्यर्थियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर लिया है।
कैसे खुला फर्जीवाड़े का राज?
शुरुआती जांच में सब कुछ ठीक लगा…
- परीक्षा के रिकॉर्ड और दस्तावेजों की जांच में कोई खामी नजर नहीं आई।
- लेकिन जब परीक्षा के समय लिए गए फिंगरप्रिंट और आधार कार्ड का मिलान किया गया, तो गड़बड़ी सामने आई।
- कई अभ्यर्थियों के फिंगरप्रिंट मैच नहीं हुए, जिससे शक और मजबूत हुआ।
आधार में हेराफेरी की चाल
- अभ्यर्थियों ने परीक्षा से पहले आधार अपडेट करवा कर नए फिंगरप्रिंट डलवाए।
- ये फिंगरप्रिंट संभवतः सॉल्वर (नकल देने वाला) के थे, जिन्होंने परीक्षा दी।
- परीक्षा पास करने के बाद, अभ्यर्थियों ने फिर से अपना आधार कार्ड अपडेट कर असली फिंगरप्रिंट डलवाए ताकि वे फिजिकल वेरिफिकेशन में पकड़े न जाएं।
IG अंशुमान सिंह ने दी जानकारी
22 उम्मीदवार फर्जी पाए गए
आईजी अंशुमान सिंह ने बताया:
- फिजिकल टेस्ट के दौरान 22 उम्मीदवारों के फर्जी आधार कार्ड पकड़े गए।
- ये सभी उम्मीदवार MP पुलिस कांस्टेबल, जीडी और रेडियो पदों के लिए हुए थे।
आधार कार्ड वेंडर की भी संलिप्तता
- 5 उम्मीदवारों के फर्जी आधार कार्ड मिलने के बाद जांच में कई जिलों में गड़बड़ियां सामने आईं।
- आधार वेंडर ने अभ्यर्थियों की पहचान ठीक से सत्यापित नहीं की और अधूरी जानकारी के आधार पर अपडेट कर दिया।
- इस घोटाले में आधार कार्ड वेंडर भी आरोपी बनाए गए हैं।
क्या हैं कानूनी आरोप?
22 उम्मीदवारों पर निम्नलिखित गंभीर आरोप लगाए गए हैं:
- आधार कार्ड में जानबूझकर फिंगरप्रिंट बदलना
- परीक्षा में किसी अन्य व्यक्ति (सॉल्वर) को बैठाना
- सरकारी दस्तावेजों के साथ धोखाधड़ी करना
- चयन प्रक्रिया को प्रभावित करना
इस मामले में अब तक 21 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं, और जांच आगे भी जारी है।
मुख्यमंत्री का सख्त रुख
सीएम मोहन यादव ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए:
- सभी आरोपियों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
- अधिकारियों से भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने को कहा है।
भोपाल में पुलिस भर्ती घोटाले ने यह साफ कर दिया है कि तकनीकी व्यवस्था का दुरुपयोग कर चयन प्रक्रिया को कैसे प्रभावित किया जा सकता है।
यह मामला न सिर्फ भ्रष्टाचार की गहराई को दर्शाता है, बल्कि भर्ती प्रक्रियाओं में डेटा सत्यापन की अहमियत को भी उजागर करता है।