BY: Yoganand Shrivastva
पश्चिमी अफ्रीका के माली की तपती रेत और वीरान सड़कों पर अचानक खामोशी टूटती है, जब खबर आती है कि अल-कायदा ने तीन भारतीयों को अगवा कर लिया है। यह एक सीमेंट फैक्ट्री से उठाए गए मजदूर हैं। खबर जैसे ही सामने आती है, भारत समेत पूरी दुनिया सकते में आ जाती है। ये वही अल-कायदा है, जिसे एक समय दुनिया के तमाम देशों ने मिलकर जड़ से मिटाने का प्रयास किया था। लेकिन सवाल अब यह उठ रहा है — क्या अल-कायदा सच में कभी खत्म हुआ था? या ये एक नई शक्ल में कहीं और ज़िंदा रहा?
अल-कायदा की शुरुआत: एक ‘जिहाद’ की नींव
इस कहानी की शुरुआत होती है 1980 के दशक में, जब अफगानिस्तान की वादियों में सोवियत संघ के टैंक घुस चुके थे। अमेरिका ने अफगानिस्तान में सोवियत के खिलाफ मुजाहिदीनों को खड़ा किया, जिसमें सऊदी अरब का एक धनी नौजवान ओसामा बिन लादेन भी शामिल था। उसने हथियार भी उठाया और पैसा भी झोंका। 1988 में उसने एक नेटवर्क खड़ा किया — “अल-कायदा” यानी नींव।
इस संगठन का मकसद था — दुनिया भर के मुस्लिमों को एकजुट कर अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ वैश्विक जिहाद छेड़ना।
9/11 – जब पूरी दुनिया कांप उठी
11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए 9/11 हमले ने पूरी दुनिया को दहला दिया। चार यात्री विमान हाईजैक हुए, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर गिरा दिए गए, हजारों जानें गईं। इस हमले के पीछे अल-कायदा का ही हाथ था। यही वो दिन था जिसने इस संगठन को दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठनों की सूची में सबसे ऊपर ला खड़ा किया।
इसके बाद अमेरिका ने ‘ग्लोबल वॉर ऑन टेरर’ की शुरुआत की। ओसामा बिन लादेन को पकड़ने और अल-कायदा को मिटाने के लिए कई देशों की सेनाएं जुट गईं।
मरता नहीं, बस बदल जाता है: माली में फिर सक्रिय
20 वर्षों की लड़ाई, कई देशों में छापेमारी और ड्रोन हमलों के बावजूद अल-कायदा पूरी तरह मिट नहीं पाया। इसका कारण है – इसका बदलता स्वरूप। अब ये संगठन किसी एक केंद्र से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे स्थानीय आतंकी गुटों के जरिए संचालित होता है।
माली में सक्रिय “अल-कायदा इन द इस्लामिक मगरिब” (AQIM) इसका ताजा उदाहरण है। इस गुट ने ही भारतीय मजदूरों को अगवा किया है। माली जैसे देश, जहां प्रशासन की पकड़ कमजोर है, वहां ये संगठन अपनी जड़ें तेजी से फैला रहा है।
अब आतंक का नया चेहरा: फिरौती, ड्रग्स और स्मगलिंग
पुराने अल-कायदा का ढांचा एक सैनिक संगठन की तरह था। लेकिन अमेरिका की कार्रवाइयों के बाद अब यह एक विकेंद्रित नेटवर्क में बदल चुका है। इसकी फंडिंग के स्रोत भी बदल गए हैं – ड्रग तस्करी, हथियारों की स्मगलिंग, और फिरौती वसूली।
इसके अलावा यह फर्जी चैरिटी संगठनों और जिहाद के नाम पर डोनेशन जुटाकर भी खुद को जीवित रखता है। खाड़ी देशों में इसके गुप्त समर्थक आज भी मौजूद हैं।
राजनीतिक संरक्षण और रहस्यमयी पनाहगाहें
अल-कायदा को लंबे समय तक कई मुस्लिम देशों से गुप्त समर्थन मिला। 9/11 के बाद इसकी छवि को बड़ा धक्का लगा, लेकिन इसके कुछ शीर्ष नेता अभी भी ईरान, पाकिस्तान जैसे देशों में छिपते रहे।
अमेरिकी और इजरायली खुफिया एजेंसियों का दावा है कि ईरान जैसे शिया देश ने भी कभी-कभी रणनीतिक तौर पर इस सुन्नी कट्टरपंथी संगठन को संरक्षण दिया, ताकि वह अमेरिका के खिलाफ दबाव बना सके।
ISIS बनाम अल-कायदा – एक खतरनाक प्रतिद्वंद्विता
2014 में जब इस्लामिक स्टेट (ISIS) उभरा, तो उसने डिजिटल दुनिया के जरिए युवाओं को जोड़ने में अल-कायदा से बाजी मार ली। सीरिया और इराक में विशाल इलाके पर कब्ज़ा कर लिया गया। अल-कायदा थोड़ा पीछे जरूर हुआ, लेकिन कभी खत्म नहीं हुआ।
ISIS की हार के बाद अल-कायदा ने फिर से अपनी जमीन तैयार की और चालाकी से अपने नेटवर्क को मजबूत किया। इसने डिजिटल प्रचार से दूर रहकर स्थानीय जमीनी पकड़ मजबूत की।
अब भारत पर सीधा खतरा?
माली में भारतीयों का अपहरण इस ओर इशारा करता है कि अब अल-कायदा भारत जैसे देशों को सीधे निशाना बना रहा है। पहले यह अमेरिका और यूरोप के खिलाफ सक्रिय था, लेकिन अब यह अपनी गतिविधियों को एशिया और अफ्रीका में फैला रहा है।
भारत सरकार के लिए यह घटना एक कूटनीतिक चुनौती है, क्योंकि भारत अफ्रीकी देशों में अपने निवेश और प्रभाव को बढ़ा रहा है।