BY: Yoganand Shrivastva
शहडोल, मध्यप्रदेश। राज्य के शिक्षा विभाग से जुड़ा एक हैरान कर देने वाला घोटाला सामने आया है, जिसने सरकारी कामकाज की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला शहडोल जिले के ब्यौहारी विकासखंड के दो शासकीय स्कूलों—हाईस्कूल संकदी और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय निपनिया—से जुड़ा है, जहां मरम्मत और रंगाई-पुताई के नाम पर हजारों नहीं, बल्कि लाखों रुपये खर्च दिखाए गए हैं।
24 लीटर पेंट के लिए 3 लाख रुपये!
मामले का खुलासा तब हुआ जब सोशल मीडिया पर वायरल एक बिल ने अफसरों की नींद उड़ा दी। वायरल हुए दस्तावेजों के अनुसार, सिर्फ 24 लीटर पेंट के काम में पूरे 3 लाख रुपये खर्च दिखाए गए हैं। यही नहीं, संबंधित जिम्मेदारों द्वारा इस बिल को पास करवा कर सरकारी खजाने से रकम निकाल भी ली गई।
इस पूरे मामले की खबर जैसे ही कलेक्टर डॉ. केदार सिंह के पास पहुंची, उन्होंने तत्काल एक्शन लेते हुए जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मारपाची को नोटिस जारी किया और पूरे प्रकरण पर स्पष्टीकरण मांगा।
जवाब नहीं, अब होगी वसूली
कलेक्टर ने निर्देश दिए हैं कि संबंधित स्कूलों के प्रभारी अधिकारियों से इस घोटाले में खर्च की गई राशि की वसूली की जाए। इसके साथ ही उन्होंने व्यापक स्तर पर जांच के आदेश देते हुए कहा है कि जिले के जिन भी स्कूलों में रंगाई-पुताई या मरम्मत के नाम पर राशि खर्च की गई है, सभी मामलों की गहन जांच की जाएगी।
कानूनी कार्रवाई की चेतावनी
कलेक्टर ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी भी मामले में अनियमितता पाई जाती है, तो दोषी अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त वैधानिक कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश विभागीय गड़बड़ियों पर अंकुश लगाने के लिए एक सख्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
यह क्यों है बड़ा मामला?
- 24 लीटर पेंट की कीमत बाजार में अधिकतम ₹10,000 तक होती है, जबकि यहां ₹3 लाख का भुगतान हुआ।
- शासकीय स्कूलों में मरम्मत और रंगाई के नाम पर इस तरह के खर्च अक्सर बिना निगरानी के किए जाते हैं।
- सोशल मीडिया पर बिल वायरल न होता तो यह घोटाला कभी सामने नहीं आता।
- यह मामला शिक्षा विभाग में रूटीन में हो रही वित्तीय अनियमितताओं की ओर भी संकेत करता है।
क्या कहते हैं जानकार?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घोटाला फर्जी बिलिंग और सरकारी धन की बंदरबांट का क्लासिक उदाहरण है। अगर इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच होती है तो कई और स्कूलों में ऐसे मामले सामने आ सकते हैं।
सोशल मीडिया की ताकत और जनता की निगरानी
यह मामला एक बार फिर दिखाता है कि सोशल मीडिया आज भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत हथियार बन चुका है। आम जनता द्वारा पोस्ट किए गए एक बिल ने पूरे सिस्टम को हिला दिया।
अब देखने वाली बात यह होगी कि प्रशासन इस मामले में कितनी गंभीरता से कार्रवाई करता है और भविष्य में इस तरह की वित्तीय लापरवाही पर कैसे रोक लगाई जाती है।