BY: Yoganand Shrivastva
खटीमा, उत्तराखंड | उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बार फिर जनसेवा और जमीनी जुड़ाव की मिसाल पेश की है। शनिवार को सीएम धामी ने उधम सिंह नगर जिले के खटीमा क्षेत्र के नगरा तराई गांव में धान की रोपाई कर अपने किसान रूप को फिर से जीवंत किया। खास बात यह रही कि उन्होंने पारंपरिक लोकसंस्कृति के संरक्षण की दिशा में भी कदम बढ़ाया और ‘हुड़किया बौल’ के माध्यम से भूमि, जल और मेघ देवताओं का आह्वान कर उत्तराखंड की सांस्कृतिक आत्मा को छूने की कोशिश की।
खेतों में उतरे मुख्यमंत्री, कहा – “यादें ताजा हो गईं”
धान रोपते समय मिट्टी से सने हाथ और धूप में चमकता पसीना… जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री खुद खेत में हल की जगह किसानों के साथ रोपाई करते नजर आए, तो वहां मौजूद हर कोई आश्चर्यचकित था। सीएम धामी ने कहा,
“खेत में उतरते ही बचपन और युवावस्था के दिन याद आ गए। यह धरती और यह मिट्टी हमारे अस्तित्व की जड़ है।”
उन्होंने किसानों के परिश्रम को राष्ट्र निर्माण की सबसे मजबूत नींव बताते हुए उन्हें “अन्नदाता” नहीं बल्कि “संस्कृति के संवाहक” कहा।
‘हुड़किया बौल’ से जोड़ी परंपरा और लोक चेतना
मुख्यमंत्री की इस पहल में केवल खेती नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश भी छुपा था। रोपाई के दौरान पारंपरिक ‘हुड़किया बौल’ की गूंज सुनाई दी। सीएम ने स्वयं भी इस लोकगीत को लेकर श्रद्धा व्यक्त की और भूमि के देवता ‘भूमियां’, जल के देवता ‘इंद्र’ और मेघ देवता ‘घन’ की वंदना की।
क्या है हुड़किया बौल?
यह उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की पारंपरिक लोकगायन विधा है, जिसे महिलाएं धान की रोपाई के दौरान गाती हैं। साथ में पुरुष हुड़का नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं। यह केवल गीत नहीं, बल्कि खेतों में सामूहिक श्रम का उत्सव है।
सोशल मीडिया पर भी दी झलक, किसानों को बताया ‘देश का गौरव’
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस पूरी प्रक्रिया की तस्वीरें और अनुभव सोशल मीडिया पर साझा किए। उन्होंने लिखा:
“किसानों की मेहनत, त्याग और समर्पण को कोटिश: नमन करता हूं। खेतों में उनके साथ कुछ समय बिताना मेरे लिए सौभाग्य की बात रही।”
उनकी पोस्ट पर लाखों लोगों ने प्रतिक्रिया दी, और इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि “धामी जी जैसे नेता ही असली भारत की आत्मा से जुड़े हुए हैं।”
ग्रामीण संस्कृति से दूर होते युवाओं को संदेश
उत्तराखंड की पारंपरिक लोकसंस्कृति धीरे-धीरे नए दौर के प्रभाव में फीकी पड़ती जा रही है। सीएम धामी की यह पहल केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि एक गहरा सामाजिक संदेश भी देती है – “जड़ों से जुड़े रहो, परंपराओं को जियो और सहेजो।”
उनका यह कदम ग्रामीण युवाओं को अपने संस्कृति से जुड़ने की प्रेरणा भी दे रहा है। एक वरिष्ठ नागरिक ने कहा,
“पिछली बार किसी मुख्यमंत्री को खेत में काम करते देखा था, जब नारायण दत्त तिवारी गांव आए थे। धामी जी ने हमारी मिट्टी से रिश्ते को फिर से जीवंत कर दिया।”
🔍 राजनीति से परे, मानवता का संदेश
सीएम धामी की यह गतिविधि केवल राजनीति तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसने यह संदेश भी दिया कि राजनेताओं को अपने लोगों के बीच जाकर उनके दुख-दर्द, श्रम और जीवन को समझना चाहिए। मुख्यमंत्री का यह व्यवहार आमजन के लिए प्रेरक है।