ये तारीख जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ एक और भयावह आतंकी हमला याद दिलाती है। ये हमला न सिर्फ़ पर्यटकों को निशाना बनाने वाला था, बल्कि इंसानियत पर एक सीधा वार था। कुल 26 लोगों की जानें चली गईं, जिनमें दो विदेशी नागरिक भी शामिल थे – एक यूएई से और दूसरा नेपाल से। इसके अलावा कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए।
अब बात करते हैं सरकार की प्रतिक्रिया की।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने इस हमले की निंदा करते हुए एक बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि मृतकों के परिवारों को ₹10 लाख की आर्थिक मदद दी जाएगी। इसके साथ ही जो लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं, उन्हें ₹2 लाख और जिन्हें मामूली चोटें आई हैं, उन्हें ₹1 लाख की सहायता राशि मिलेगी।
“हम जानते हैं कि किसी की जान की कीमत नहीं लगाई जा सकती, लेकिन ये एक कोशिश है – उनका साथ देने की, जिनकी दुनिया इस हमले में उजड़ गई,” – ओमर अब्दुल्ला।
उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि मृतकों के शवों को सम्मानपूर्वक उनके घर तक पहुँचाया जाएगा और घायलों को बेहतर से बेहतर इलाज मुहैया कराया जाएगा।
अब बात करते हैं असली मुद्दे की – आखिर ये हमले कब रुकेंगे?
हम सालों से ये सुनते आ रहे हैं – “आतंकवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस”, “कड़ी कार्रवाई की जाएगी”, “देश झुकेगा नहीं”… लेकिन आम नागरिक, वो मासूम पर्यटक जो ताजमहल नहीं, कश्मीर की खूबसूरती देखने आए थे, उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
सरकार चाहे कोई भी हो, पार्टी कोई भी हो – आतंकवाद को सिर्फ निंदा से नहीं, ठोस कार्रवाई से खत्म किया जा सकता है।
और सबसे ज़रूरी बात – ये कोई कश्मीर या दिल्ली की समस्या नहीं है, ये हम सबकी साझा लड़ाई है।
हमारे जवान सीमा पर जान दे रहे हैं, और हम यहां केवल न्यूज़ देख कर आगे बढ़ जा रहे हैं। ज़रूरत है जागरूकता की, एकजुटता की और असली देशभक्ति की।
आज जिन परिवारों ने अपने अपनों को खोया है, उनके लिए हमारी संवेदनाएं हैं। लेकिन कल हमारी बारी न आ जाए, इसके लिए हमें सवाल उठाने होंगे – सरकार से, सिस्टम से और सबसे ज़्यादा – अपने आप से।
पहलगाम हमला: टीआरएफ क्या है और कश्मीर में आतंक क्यों फैला रहा है?