BY: Yoganand Shrivastva
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस विवादित फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि “नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा खोलना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता।”
सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले को बेहद गंभीर और असंवेदनशील बताया। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, “यह निर्णय न्यायाधीश की संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है, जिससे हमें गहरा दुख हुआ है।”
यूपी सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। अदालत ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल से इस मामले में कानूनी सहायता देने को कहा है।
फैसले के खिलाफ स्वतः संज्ञान
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला स्वतः संज्ञान में लिया गया है। कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में दिए गए पैराग्राफ 24, 25 और 26 को असंवेदनशील बताते हुए कहा कि यह फैसला चार महीने के विचार-विमर्श के बाद दिया गया, जो न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता पर सवाल उठाता है।
पीड़िता की मां ने भी दाखिल की याचिका
इसके अलावा, पीड़िता की मां ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि उनकी याचिका को भी इस मामले में शामिल किया जाए।
इस फैसले पर रोक लगाने के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया है कि महिलाओं और नाबालिगों के प्रति असंवेदनशीलता को न्यायिक प्रक्रिया में कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए
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