भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए 1988 के एक दुष्कर्म मामले में दोषी करार दिए गए 53 वर्षीय व्यक्ति को किशोर न्याय अधिनियम के तहत सज़ा देने का आदेश दिया है। यह फैसला न केवल कानून की व्याख्या को नई दिशा देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि juvenility की दलील कभी भी उठाई जा सकती है — भले ही मामला कितने भी साल पुराना हो।
मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- मामला राजस्थान का है, जहां 1988 में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार हुआ था।
- आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने 7 साल की सख्त सजा सुनाई थी।
- इस सजा को राजस्थान हाईकोर्ट ने 2024 में बरकरार रखा।
- लेकिन 2025 में आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और खुद को अपराध के समय नाबालिग बताया।
आरोपी को किशोर मानने के पीछे क्या था आधार?
- आरोपी ने अपने स्कूल प्रमाणपत्र पेश किए, जिसमें उसकी जन्म तिथि 1 जुलाई 1972 दर्ज थी।
- इस आधार पर उसकी उम्र अपराध के समय 16 वर्ष थी — यानी वह कानूनी रूप से juvenile (नाबालिग) था।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस साक्ष्य को विश्वसनीय मानते हुए किशोर न्याय अधिनियम के तहत छूट दी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
- न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि:
- “Juvenility की दलील कभी भी दी जा सकती है, भले ही मुकदमा समाप्त हो चुका हो।”
- आरोपी को अब किशोर न्याय बोर्ड (JJB) अजमेर के सामने पेश किया जाएगा।
- पूर्व में दी गई 7 साल की सजा अब न्यायोचित नहीं मानी जा सकती।
आगे क्या हो सकता है?
- किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार, यदि आरोपी को दोषी पाया जाता है तो:
- उसे juvenile home में अधिकतम 3 साल तक रखा जा सकता है।
- उसे आजीवन कारावास या फांसी जैसी वयस्क सज़ाएं नहीं दी जा सकतीं।
भारत का Juvenile Justice Act: इस केस में क्यों बना आधार?
- Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015 के अनुसार:
- अपराध के समय यदि उम्र 18 वर्ष से कम है, तो आरोपी को किशोर माना जाएगा।
- ऐसे मामलों में ट्रायल किशोर न्याय बोर्ड करता है, न कि सामान्य अदालत।
- सजा का उद्देश्य सुधारात्मक और पुनर्वास होता है, न कि कठोर दंड देना।
1988 में हालांकि, Juvenile Justice Act, 1986 लागू था जिसमें लड़कों के लिए उम्र सीमा 16 साल और लड़कियों के लिए 18 साल थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2015 अधिनियम की लाभकारी धाराओं को पूर्वलाभ (retrospective benefit) के तौर पर लागू किया।
यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?
- यह फैसला स्पष्ट करता है कि:
- Juvenility की दलील कभी भी दी जा सकती है, चाहे आरोपी की वर्तमान उम्र कुछ भी हो।
- यह किशोर अपराधियों के प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण को सुदृढ़ करता है।
- साथ ही यह न्यायपालिका द्वारा मानवाधिकारों की रक्षा की मिसाल भी पेश करता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से ऐतिहासिक है, बल्कि यह देश की juvenile justice प्रणाली की संवेदनशीलता और निष्पक्षता को भी दर्शाता है। यह निर्णय भविष्य के उन मामलों के लिए भी एक नज़ीर बनेगा, जहां अपराध के समय उम्र पर सवाल उठते हैं।