BY: Yoganand Shrivastva
आज से 51 साल पहले भारत ने एक ऐसा साहसिक कदम उठाया जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। यह कदम था भारत का पहला परमाणु परीक्षण—जिसे “ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा” नाम दिया गया। यह परीक्षण 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण रेगिस्तान में सफलतापूर्वक किया गया था।
बुद्ध पूर्णिमा पर हुआ था परीक्षण
इस ऐतिहासिक परीक्षण के दिन बुद्ध पूर्णिमा थी, इसीलिए इसे “स्माइलिंग बुद्धा” कहा गया। बुद्ध का नाम शांति का प्रतीक है, और भारत ने यह परीक्षण किसी हमलावर नीयत से नहीं बल्कि अपनी रक्षा क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए किया था। यही कारण है कि वैज्ञानिकों ने इस ऑपरेशन को यह प्रतीकात्मक नाम दिया।
वैश्विक मंच पर भारत की एंट्री
उस समय तक केवल पांच देश—अमेरिका, रूस (तत्कालीन सोवियत संघ), चीन, फ्रांस और ब्रिटेन—ही परमाणु परीक्षण कर चुके थे। भारत इस सूची में छठवां देश बना, जिसने दुनिया को यह स्पष्ट संदेश दिया कि वह न केवल आत्मनिर्भर है बल्कि वैश्विक ताकत बनने की राह पर अग्रसर भी है।
परीक्षण की गोपनीयता
यह परीक्षण अत्यंत गोपनीय तरीके से किया गया था। जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री के अलावा कुछ चुनिंदा वैज्ञानिक ही इससे अवगत थे। तत्कालीन रक्षा मंत्री को भी परीक्षण के बाद इसकी जानकारी दी गई थी। इस मिशन की अगुवाई कर रहे थे डॉ. राजा रमन्ना, और बम को डिजाइन करने का श्रेय जाता है डॉ. पी. के. अयंगर को। इस पूरे कार्यक्रम की नींव महान वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने रखी थी, जिन्हें भारतीय परमाणु कार्यक्रम का जनक माना जाता है।
परीक्षण का समय और नामकरण
यह परीक्षण सुबह 8:05 बजे किया गया और इसे तीन नामों से पहचाना गया:
- वैज्ञानिकों द्वारा: ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा
- भारतीय सेना द्वारा: हैप्पी कृष्णा
- आधिकारिक दस्तावेज़ों में: पोखरण-1
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं और भारत पर प्रतिबंध
भारत के इस कदम ने वैश्विक स्तर पर हलचल मचा दी। विशेष रूप से अमेरिका ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और भारत पर कई आर्थिक व तकनीकी प्रतिबंध लगा दिए। इसके बावजूद भारत ने दुनिया को यह स्पष्ट कर दिया कि यह परीक्षण सिर्फ रक्षा-संतुलन बनाने और अपनी संप्रभुता की सुरक्षा के लिए किया गया है, किसी भी देश के विरुद्ध आक्रामक नीति का हिस्सा नहीं है।