रिपोर्टर: सुधेश पांडेय
पृष्ठभूमि और जांच का वर्तमान स्थिति
मुंगेली जिले में फर्जी दिव्यांग (श्रवण बाधित) प्रमाण पत्र घोटाले का विवाद अब सार्वजनिक और प्रशासनिक स्तर पर गूंज रहा है। कलेक्टर के निर्देश पर कुल 27 सरकारी कर्मचारियों को रायपुर में राज्य मेडिकल बोर्ड की ओर से 18 जुलाई 2025 को वेरिफिकेशन के लिए बुलाया गया था, लेकिन इनमें से 21 अधिकारी व कर्मचारी जांच प्रक्रिया से ही गैरहाज़िर रहे। वही 4 कर्मचारी मेडिकल वेरिफिकेशन पूरी कर चुके हैं, जबकि 2 का स्थानांतरण अन्य जिलों में हो चुका है।
इसके फलस्वरूप, 21 अधिकारी-कर्मचारी कार्यवाही से अभी भी दूर हैं, जिससे जांच प्रक्रिया अधर में लटकी हुई है।
कौन बच रहे जांच से?
इन 21 में से अधिकांश कर्मचारी:
- मेडिकल बोर्ड में नियत दिनांक पर उपस्थित नहीं हुए,
- और कुछ ने बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जांच प्रक्रिया को चुनौती दी है।
यह सत्य है कि जांच के लिए बुलाए गए 27 में से 21 अनुपस्थित रहे, जिससे भ्रष्टाचार की गंभीर आशंका और बढ़ गई है।
प्रशासन का रुख
कलेक्टर कुंदन कुमार के नेतृत्व में प्रशासन ने:
- सभी संबंधित विभागों को तुरंत विभागीय कार्रवाई की रिपोर्ट भेजने के निर्देश जारी किए हैं,
- और साथ ही विभिन्न विभाग प्रमुखों को लिस्ट भेजकर निष्पक्ष जांच व बर्खास्तगी प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
कलेक्टर ने स्पष्ट कहा कि यदि दोषी प्रमाणित होते हैं, तो कठोर कार्रवाई—समेत बर्खास्ती और आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाएगा।
घोटाले की व्यापकता
- कुल 27 फर्जी दिव्यांग कर्मचारी, श्रवण बाधित श्रेणी में नौकरी पा चुके थे, जिनमें:
- 7 डिप्टी कलेक्टर,
- 3 नायब तहसीलदार,
- 3 लेखा अधिकारी,
- 2 सहकारिता निरीक्षक,
- और 3 पशु चिकित्सक शामिल थे।
- इस घोटाले में एक गिरोह सक्रिय पाया गया जिसने सिम्स बिलासपुर और रायपुर से फर्जी प्रमाण पत्र बनवाए एवं नुकसान पहुंचाया।
दिव्यांग सेवा संघ की लड़ाई
छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ लगातार इस घोटाले की गंभीरता की ओर प्रशासन का ध्यान खींच रहा था। संघ ने पूरे मामले को दिव्यांग समुदाय के अधिकारों पर हमला करार दिया है और राज्य स्तरीय मेडिकल जांच का गठन व दोषियों की बर्खास्तगी की मांग की थी।