BY: Vijay Nandan, Editor, Digital
आज का दौर डिजिटल क्रांति का है। इंटरनेट के विस्तार और स्मार्टफोन की सहज उपलब्धता ने आम लोगों को अभिव्यक्ति का एक ऐसा मंच दिया है, जिसने न केवल उनके जीवन को बदल दिया है बल्कि समाज की संरचना, पारिवारिक रिश्तों और सामूहिक सोच को भी गहराई से प्रभावित किया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, टि्वटर (अब एक्स), स्नैपचैट और अब तो रील्स एवं शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म जैसे Moj, Josh, Chingari जैसे एप्स ने कंटेंट क्रिएटर्स की एक पूरी पीढ़ी तैयार कर दी है। ये लोग अब केवल मनोरंजन या जानकारियाँ साझा नहीं कर रहे, बल्कि खुद एक “सेलिब्रिटी ब्रांड” में तब्दील हो गए हैं। लेकिन इस नई पहचान और लोकप्रियता की चकाचौंध के पीछे कई सामाजिक, मानसिक और पारिवारिक बदलाव भी छिपे हुए हैं जो बहस और विचार का विषय हैं।
डिजिटल शोहरत: एक क्लिक से स्टारडम
पहले जहां फिल्मों, टीवी या मॉडलिंग जैसे परंपरागत माध्यमों से ही लोकप्रियता मिलती थी, वहीं अब एक स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन के सहारे कोई भी व्यक्ति वायरल हो सकता है। गांव की गली से लेकर महानगरों तक, हर जगह से कंटेंट क्रिएटर्स उभर रहे हैं। लोग उन्हें फॉलो करते हैं, ब्रांड्स उनसे विज्ञापन करवाते हैं और उन्हें लाखों-करोड़ों की आमदनी होती है। लेकिन इसी लोकप्रियता ने एक नई तरह की सामाजिक संरचना और सोच को जन्म दिया है, जहां आभासी दुनिया ही असली लगने लगी है।

परिवार से दूरी: ‘कंटेंट’ बन गया रिश्ता
कई कंटेंट क्रिएटर्स अपने जीवन के हर पल को कंटेंट में बदल देते हैं। खाना खाते हुए, यात्रा करते हुए, बच्चों के साथ खेलते हुए या बीमार माता-पिता की सेवा करते हुए भी। हर पल कैमरे के सामने होता है। इससे एक ओर जहां दर्शकों को ‘रियल-लाइफ कनेक्शन’ लगता है, वहीं परिवार के अन्य सदस्य कैमरे और पब्लिक ओपिनियन से थक भी जाते हैं। बच्चों की निजता, रिश्तों की गरिमा और परिवार की आत्मिक गोपनीयता धीरे-धीरे कम हो रही है। कई बार पति-पत्नी या माता-पिता-बच्चों के बीच खटास भी इसलिए बढ़ती है क्योंकि निजी पल भी ‘कंटेंट’ बन जाते हैं।
सामाजिक संबंधों में दरार और जोड़
एक ओर जहां कंटेंट क्रिएटर्स को देश-दुनिया से पहचान और संबंध मिलते हैं, वहीं पारंपरिक सामाजिक रिश्तों से दूरी बनती जा रही है। मोहल्ला, पड़ोस, रिश्तेदार अब धीरे-धीरे ‘व्यूज’ और ‘लाइक’ से प्रतिस्थापित हो रहे हैं। वहीं, कई बार ये प्लेटफॉर्म नए संबंध भी जोड़ते हैं। समझने वाले फॉलोअर्स, सपोर्टिव कम्युनिटी, और कभी-कभी लव रिलेशनशिप भी। लेकिन यह संबंध अस्थायी, व्यावसायिक और कई बार नकली भी होते हैं, जो असली जीवन में असुरक्षा की भावना बढ़ा सकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर असर
सोशल मीडिया की दुनिया निरंतर प्रतिस्पर्धा की मांग करती है। हर दिन कुछ नया, कुछ ज्यादा ट्रेंडिंग, कुछ ज्यादा एंगेजिंग। यह दबाव इतना बढ़ जाता है कि क्रिएटर्स अपनी नींद, खानपान और मानसिक संतुलन तक को नजरअंदाज करने लगते हैं। यदि कोई पोस्ट कम लाइक आए तो आत्मविश्वास हिल जाता है। कभी-कभी नफरत भरे कमेंट्स या ट्रोलिंग डिप्रेशन तक ले जा सकती है। इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन की यह संस्कृति धैर्य, संतुलन और आत्मचिंतन को खत्म कर रही है।
आर्थिक बदलाव: आमदनी बढ़ी, खर्च भी
निश्चित रूप से सोशल मीडिया ने कई क्रिएटर्स को आत्मनिर्भर बनाया है। कई लोग आज लाखों रुपए महीना कमा रहे हैं। ब्रांड डील, एफिलिएट मार्केटिंग, लाइव सेशन और गिफ्टिंग के जरिए एक स्थायी आय स्रोत बन चुका है। इससे पहले बेरोजगार माने जाने वाले युवा अब “डिजिटल आंत्रप्रेन्योर” बन चुके हैं। लेकिन इस आमदनी के साथ दिखावे का दबाव भी बढ़ा है। महंगे कपड़े, यात्रा, गैजेट्स, फैंसी शूट्स। इन सबमें भारी निवेश होता है, जिससे आर्थिक अस्थिरता का खतरा भी बना रहता है।
सांस्कृतिक बदलाव: नई पीढ़ी की प्राथमिकताएं
सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर न केवल मनोरंजन देते हैं, बल्कि फैशन, भाषा, सोच, संबंध और जीवनशैली की प्रेरणा भी बनते हैं। इसका असर खासकर युवा वर्ग पर स्पष्ट है। उनकी प्राथमिकताएं अब तेजी से बदल रही हैं। पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, सेवा जैसे पारंपरिक विकल्पों की जगह ‘क्रिएटर बनना’ अब करियर ऑप्शन बन चुका है। इससे समाज की दिशा भी बदल रही है। एक ओर आत्मनिर्भरता बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर गहराई, अध्ययन और जिम्मेदार सोच में कमी भी महसूस की जा रही है।
एक संतुलन की आवश्यकता
इस पूरे परिदृश्य में न तो सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर को दोषी ठहराया जा सकता है और न ही उनके दर्शकों को। यह एक बदलाव का दौर है, जिसमें समाज को नए संदर्भों में खुद को ढालना पड़ेगा। जरूरी यह है कि कंटेंट क्रिएशन एक पेशा बने, लेकिन निजी जीवन और सामाजिक जिम्मेदारियों के संतुलन के साथ। परिवार को साथ लेकर, रिश्तों को सहेजकर, आत्मचिंतन को महत्व देकर ही यह यात्रा सार्थक हो सकती है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने आम इंसान को असाधारण बनने का मौका दिया है। यह लोकतंत्र की तरह है—जहां हर आवाज मायने रखती है। लेकिन इस शोहरत और कमाई के साथ जो सामाजिक परिवर्तन आ रहे हैं, उन्हें समझना और संभालना भी जरूरी है। अगर संतुलन और संवेदना बरकरार रही तो यह डिजिटल क्रांति समाज के लिए वरदान बन सकती है, वरना यह अकेलेपन और विघटन का कारण भी बन सकती है।
शोहरत के साथ जो आता है वो केवल कैमरा और लाइक नहीं होता… अक्सर रिश्तों की खामोशी भी उसमें दर्ज होती है।