Report: Rinku suman
सिरोंज: क्षेत्र में एक दुर्लभ प्रजाति का यूरेशियन गिद्ध घायल अवस्था में पाया गया, जिसे वन विभाग की टीम सुरक्षित रेंजर कार्यालय लेकर पहुंची। रेंजर ने बताया कि गिद्ध के जबड़े के पास खरोंच के निशान पाए गए हैं। यह ब्लैक वल्चर प्रजाति का किशोर अवस्था का प्रवासी पक्षी है। प्राथमिक उपचार के दौरान उसे खाना-पानी दिया गया, जिससे उसकी हालत में सुधार देखा गया। बेहतर इलाज के लिए गिद्ध को वन विहार, भोपाल भेजा गया, जहां डॉक्टरों ने परीक्षण के बाद उसकी स्थिति को सामान्य और स्थिर बताया है। अधिकारियों के अनुसार, कुछ दिनों तक बल्चर सेंटर में निगरानी में रखने के बाद इसे प्राकृतिक वातावरण में मुक्त कर दिया जाएगा।
भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां मौजूद, घटती संख्या बना रही है चिंता का विषय
भारत में गिद्धों को पर्यावरण का सफाईकर्मी कहा जाता है, लेकिन बीते दो दशकों में इनकी संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। कभी गांव-कस्बों में आसानी से दिखने वाले गिद्ध अब दुर्लभ होते जा रहे हैं। वर्तमान समय में भारत में कुल 9 प्रजातियों के गिद्ध पाए जाते हैं, जिनमें से अधिकतर संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल हैं। ये गिद्ध देश की पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ये मृत पशुओं के शवों को खाकर संक्रमण फैलने से रोकते हैं।
भारत में पाई जाने वाली प्रमुख गिद्ध प्रजातियों में सफेद पीठ वाला गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध, पतली चोंच वाला गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध, हिमालयी गिद्ध, यूरेशियन गिद्ध, मिस्र गिद्ध, दाढ़ी वाला गिद्ध और सिनेरियस गिद्ध शामिल हैं। इनमें से सफेद पीठ वाला, लंबी चोंच वाला और पतली चोंच वाला गिद्ध सबसे ज्यादा संकट में माने जाते हैं। एक समय इनकी आबादी करोड़ों में थी, लेकिन अब यह संख्या सिमटकर कुछ हजार तक रह गई है।
विशेषज्ञों के अनुसार गिद्धों की मौत का सबसे बड़ा कारण पशुओं के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनाक रही है। यह दवा जब गिद्ध मृत पशुओं के शरीर के साथ उनके शरीर में पहुंचती है, तो उनके गुर्दे खराब हो जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है। हालांकि सरकार ने इस दवा पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन इसके बावजूद गिद्धों की संख्या अभी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं मानी जा सकती।
गिद्ध संरक्षण के लिए देश के कई हिस्सों में गिद्ध पुनर्वास केंद्र और संरक्षण परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और असम जैसे राज्यों में विशेष गिद्ध संरक्षण क्षेत्र बनाए गए हैं। वन विभाग और पर्यावरण संगठन मिलकर इनके प्रजनन और सुरक्षित वातावरण पर लगातार काम कर रहे हैं।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि यदि गिद्ध पूरी तरह खत्म हो गए तो पर्यावरण असंतुलन के साथ-साथ कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाएगा। इसलिए गिद्धों का संरक्षण केवल वन विभाग की नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। जागरूकता, सख्त कानून और सुरक्षित दवाओं के उपयोग से ही भारत में गिद्धों की घटती संख्या को फिर से बढ़ाया जा सकता है।





