BY: Yoganand Shrivastva
Nepal: कुछ ही महीनों पहले हुए राजनीतिक उथल-पुथल और अंतरिम सरकार के गठन के बाद लोग बदलाव की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन 100 दिन पूरे होने के बाद भी जनता खासकर जेनजी (GenZ) युवाओं में असंतोष और गुस्सा जस का तस है। जिस व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन करके तख्तापलट की जमीन तैयार हुई, वही व्यवस्था अब फिर धीरे-धीरे हावी होती दिखाई दे रही है। यही कारण है कि नेपाल एक बार फिर हिंसक प्रदर्शनों की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।
जेनजी नेताओं का आरोप— “सरकार बदली, लेकिन सिस्टम नहीं”
जेनजी आंदोलन का सक्रिय चेहरा रहे टंका धामी खुलकर मानते हैं कि उनकी उम्मीदें टूट रही हैं। वे कहते हैं—
“इंटरिम सरकार सुशीला कार्की के नेतृत्व में बनी, लेकिन संरचना बिल्कुल वैसी ही है जैसी पहले थी। सलाहकार पुराने सिस्टम की सोच के हैं और युवाओं की बात सुनने को तैयार नहीं। ब्यूरोक्रेसी और न्यायपालिका भी पहले जैसा ही ढांचा लिए हुए है। ऐसे में असली बदलाव कैसे होगा?”
धामी का मानना है कि आंदोलन के वक्त जो कठोर कदम उठाए जाने चाहिए थे, वे नहीं उठाए गए। उनका कहना है कि ओली सरकार और पुरानी राजनीतिक विचारधारा को कमजोर करने का मौका हाथ से निकल गया और अब उसी व्यवस्था की पकड़ फिर मजबूत हो चुकी है।
अंतरिम सरकार का आधा कार्यकाल बीता, लेकिन जमीनी बदलाव नहीं
8 सितंबर 2025 को जेनजी आंदोलन के बाद देश में नई अंतरिम सरकार बनी। लक्ष्य था भ्रष्टाचार खत्म करना, राजनीतिक सुधार करना और युवाओं को सत्ता में भागीदारी देना। लेकिन तीन महीने में केवल एक बड़ा भ्रष्टाचार केस दर्ज हुआ— पोखरा एयरपोर्ट घोटाले में 55 लोगों पर मामला दर्ज। कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी।
जनता का कहना है कि:
- महंगाई कम नहीं हुई
- बेरोजगारी जस की तस है
- सरकारी दफ्तरों में वही पुराने अफसर और उसी तरह की कार्यशैली
- हिंसा और विरोध प्रदर्शनों में आई गिरावट दोबारा बढ़ने लगी है
इंटरिम सरकार चुनाव की तैयारियों में व्यस्त है। 5 मार्च 2026 चुनाव की तारीख तय हो चुकी है, लेकिन उससे पहले देश में स्थिरता बनाना सरकार के लिए चुनौती बन गया है।
बारा जिला फिर बना टकराव का केंद्र
22 नवंबर को बारा जिले में जेनजी समर्थक और CPN (UML) नेताओं के बीच तनाव बढ़ गया। UML के नेता शंकर पोखरेल और महेश बसनेत काठमांडू से सिमारा पहुंचे ही थे कि स्थानीय जेनजी समूहों ने उनके विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिया। देखते ही देखते स्थिति हिंसक हुई और पुलिस को कर्फ्यू लगाना पड़ा।
इस घटना ने साफ कर दिया कि आंदोलन की आग अभी पूरी तरह बुझी नहीं है। जेनजी लगातार सत्ता पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
जेनजी नेताओं की शिकायत— “युवाओं को राजनीतिक ज्ञान नहीं दिया गया”
धामी मानते हैं कि आंदोलन की सबसे बड़ी कमजोरी यही रही कि युवाओं को न राजनीति की समझ थी और न चुनाव प्रक्रिया का अनुभव। उनके मुताबिक—
- युवाओं को संगठित नहीं किया गया
- राजनीतिक रणनीति तैयार नहीं हुई
- संस्थागत सुधार शुरू नहीं किए गए
इस वजह से इंटरिम सरकार तो बनी, पर पुराने सिस्टम के सामने वह कमजोर पड़ गई।
युवाओं में बढ़ता गुस्सा और मीडिया पर आरोप
धामी का दावा है कि नेपाल का पारंपरिक मीडिया जेनजी सरकार को बदनाम करने में जुटा है और लगातार प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा है। उनका कहना है कि युवाओं की आवाज दबाई जा रही है और विरोध प्रदर्शनों को अपराध बताकर दिखाया जा रहा है।
क्यों बढ़ रहा है असंतोष?
- सरकार की धीमी गति से कार्रवाई
- भ्रष्टाचार के मामलों में ठोस कदम नहीं
- पुरानी व्यवस्था के अधिकारियों का ज्यादा प्रभाव
- जेनजी नेताओं की बात न सुनी जाना
- युवाओं में राजनीतिक नेतृत्व की कमी
क्या नेपाल में फिर भड़केगा बड़ा आंदोलन?
स्थिति लगातार तनावपूर्ण है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सुधार तेज गति से नहीं हुए, तो नेपाल एक बार फिर बड़े आंदोलन की गिरफ्त में आ सकता है।
जेनजी का साफ संदेश है—
“100 दिन में कुछ नहीं बदला। हमने बदलाव के लिए लड़ाई शुरू की थी, और अगर जरूरत पड़ी तो फिर सड़कों पर उतरेंगे।”





