BY: Yoganand Shrivastava
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक और ऐतिहासिक उड़ान भरने जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आज भारतीय नौसेना के लिए विकसित किए गए GSAT-7R (CMS-03) संचार उपग्रह का प्रक्षेपण करने जा रहा है। यह उपग्रह भारतीय नौसेना की अंतरिक्ष-आधारित संचार व्यवस्था और समुद्री निगरानी क्षमता को और अधिक मजबूत बनाएगा।
‘बाहुबली’ रॉकेट से होगा प्रक्षेपण
लगभग 4,410 किलोग्राम वजनी यह सैटेलाइट भारत से अब तक छोड़ा गया सबसे भारी संचार उपग्रह होगा। इसे श्रीहरिकोटा से LVM3-M5 रॉकेट के जरिये लॉन्च किया जाएगा — इसी रॉकेट को इसकी जबरदस्त क्षमता के कारण ‘बाहुबली’ नाम दिया गया है। ISRO के अनुसार, यह रॉकेट 43.5 मीटर लंबा है और 4,000 किलोग्राम तक पेलोड को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में स्थापित करने में सक्षम है। लॉन्चिंग रविवार शाम 5:26 बजे तय की गई है।
तीन चरणों में पूरी होगी उड़ान
LVM3 एक तीन चरणों वाला रॉकेट है, जिसमें दो शक्तिशाली ठोस बूस्टर (S200), एक लिक्विड फ्यूल कोर स्टेज (L110), और एक उन्नत क्रायोजेनिक इंजन (C25) शामिल है। यह संरचना इसरो को भारी सैटेलाइट्स को स्वदेशी रूप से जीटीओ तक पहुंचाने की पूर्ण क्षमता देती है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि इस उपग्रह का उपयोग सैन्य संचार और निगरानी उद्देश्यों के लिए भी हो सकता है, लेकिन इसरो की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
LVM3-M5 की पांचवीं अभियानगत उड़ान
यह मिशन LVM3 रॉकेट की पांचवीं अभियानगत उड़ान है। इससे पहले ISRO ने दिसंबर 2018 में एरियन-5 रॉकेट के जरिए फ्रेंच गुयाना से GSAT-11 को लॉन्च किया था, जो लगभग 5,854 किलोग्राम वजनी था और अब तक इसरो का सबसे भारी सैटेलाइट माना जाता है।
चंद्रयान-3 वाला रॉकेट फिर करेगा कमाल
LVM3 रॉकेट वही प्रक्षेपण यान है जिसने चंद्रयान-3 को अंतरिक्ष में भेजा था। इसी मिशन के जरिए भारत 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश बना था। LVM3 अपने शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजन की मदद से 4,000 किलोग्राम पेलोड को GTO और 8,000 किलोग्राम तक पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) तक ले जाने की क्षमता रखता है।
नौसेना के लिए नई संचार शक्ति
GSAT-7R (CMS-03) उपग्रह भारतीय नौसेना के लिए एक रणनीतिक संपत्ति साबित होगा। यह न केवल समुद्री क्षेत्र में सुरक्षित और तेज़ संचार को संभव बनाएगा, बल्कि भारत की समुद्री जागरूकता और नेटवर्क-आधारित ऑपरेशन क्षमता को भी बढ़ाएगा।





