बदलते वैश्विक रिश्ते और भारत का संतुलित रुख
BY: VIJAY NANDAN
दुनिया के बड़े देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते समय-समय पर करवट लेते रहते हैं। अमेरिका, जो लंबे समय से भारत का रणनीतिक साझेदार रहा है, अब व्यापारिक मामलों में कुछ हद तक टकराव की स्थिति में नजर आ रहा है। खासकर ट्रंप प्रशासन के “अमेरिका फर्स्ट” रुख ने भारत-अमेरिका ट्रेड डील को प्रभावित किया है।
परंतु भारत भी चुप नहीं बैठा है, उसने अपनी रणनीति में लचीलापन दिखाते हुए यूरोप, ब्रिटेन, रूस और यहां तक कि चीन के साथ भी रिश्तों को मज़बूती देना शुरू कर दिया है।
अमेरिका से टकराव की वजह क्या है?
- कृषि आधारित व्यापार पर विवाद
अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि बाजार को और अधिक खोले, जिससे अमेरिकी उत्पाद भारत में आसानी से बिक सकें। लेकिन भारत अपने किसानों और घरेलू उद्योग की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। - टैरिफ और धमकी की राजनीति
डोनाल्ड ट्रंप खुले मंचों से बार-बार टैरिफ (शुल्क) लगाने की धमकी देते हैं, जिससे भारत समेत कई देशों में असंतोष है। ये धमकियां कूटनीतिक शिष्टाचार के विपरीत मानी जाती हैं। - भारतीयों को निशाना बनाना
हाल ही में ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों को निर्देश दिए कि वे भारतीयों को शीर्ष पदों पर नियुक्त न करें। इससे साफ है कि वह अमेरिका में विदेशी प्रतिभा को सीमित करना चाहते हैं।
भारत का जवाब, वैकल्पिक रास्तों पर तेज़ी से कदम
1. ब्रिटेन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट
ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन नए व्यापारिक सहयोगी खोज रहा है, और भारत ने इस मौके को शानदार ढंग से भुनाया है। दोनों देशों के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) की दिशा में तेज़ी से प्रगति हो रही है।

2. यूरोप के साथ मज़बूत होते रिश्ते
भारत अब यूरोपीय यूनियन के साथ व्यापक व्यापार सहयोग की ओर बढ़ रहा है। ये साझेदारी अमेरिका को यह संकेत देती है कि भारत के पास विकल्पों की कोई कमी नहीं है।
3. रूस – एक पुराना भरोसेमंद साथी
भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने हैं। हथियार, तेल और अन्य क्षेत्रों में व्यापार लगातार बढ़ रहा है। यह संबंध भारत को सामरिक ताकत भी देता है।
4. चीन के साथ संतुलन की कोशिश
हालांकि भारत और चीन के रिश्तों में उतार-चढ़ाव रहा है, लेकिन हाल ही में भारत ने चीनी नागरिकों के लिए वीज़ा सुविधा फिर से शुरू की है। यह कदम बताता है कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ भी सामान्य संबंध चाहता है, बशर्ते आपसी सम्मान बना रहे।

क्या यह रणनीति ट्रंप को जवाब देने का तरीका है?
भारत की कूटनीति स्पष्ट है, सम्मान के साथ व्यापार, लेकिन किसी भी दबाव के आगे झुकाव नहीं। भारत ने अमेरिका को ये संकेत दिया है कि अगर वहां की नीति केवल एकतरफा लाभ की हो, तो भारत के पास अन्य बेहतर विकल्प भी मौजूद हैं।
भारत के ये कदम सिर्फ एक जवाब नहीं, बल्कि एक वैश्विक संतुलन की नीति हैं। जहां ट्रंप “अमेरिका फर्स्ट” की बात करते हैं, वहीं भारत “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना से, सबके साथ लेकिन शर्तों पर चलने को तैयार है।
भारत बनाम ट्रंप, मजबूरी नहीं, मजबूती की नीति
भारत अब दुनिया की पुरानी व्यवस्था का मोहताज नहीं है। वह न तो धमकियों से डरता है और न ही किसी के कहने पर अपनी नीति बदलता है। अमेरिका हो या चीन, भारत अब अपने हित और सम्मान के आधार पर फैसले ले रहा है। ट्रंप की धमकी भरी व्यापार नीति के बीच भारत ने अपनी वैकल्पिक रणनीति से न सिर्फ दबाव बनाया है, बल्कि खुद को एक आत्मनिर्भर और विश्वसनीय व्यापारिक शक्ति के रूप में पेश किया है।
भारत की “मल्टी-अलाइनमेंट” नीति
आज का भारत न किसी एक गुट में शामिल है और न ही किसी देश के आगे झुकने को तैयार। भारत की नीति अब “मल्टी-अलाइनमेंट” की है यानी वो अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और एशिया-पैसिफिक जैसे सभी क्षेत्रों के साथ संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है। इससे भारत की वैश्विक स्वीकार्यता और कूटनीतिक ताकत लगातार बढ़ रही है।
व्यापार और सुरक्षा को साथ साधने की नीति
भारत अब ऐसे व्यापार समझौते कर रहा है, जिनमें न सिर्फ आर्थिक लाभ है, बल्कि सामरिक और तकनीकी सहयोग भी शामिल होता है। इससे वो महज ग्राहक न रहकर साझेदार की भूमिका निभा रहा है।
घरेलू नीति से जुड़ा असर, आत्मनिर्भर भारत का प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब आयात पर निर्भर नहीं रहना चाहता। चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक्स हो, रक्षा उपकरण या कृषि उत्पाद भारत घरेलू उत्पादन को प्राथमिकता दे रहा है।
तकनीकी क्षेत्र में स्वावलंबन
अमेरिका की IT कंपनियों द्वारा भारतीयों को निशाना बनाए जाने के बावजूद भारत ने खुद की टेक्नोलॉजी कंपनियों और स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूत किया है। अब भारत वैश्विक इनोवेशन में अहम भूमिका निभा रहा है।
क्या यह सब ट्रंप के लिए संदेश है?
बिलकुल। भारत ने ये दिखा दिया है कि वह किसी के दबाव में नहीं, बल्कि विकल्पों की शक्ति से चलता है। ट्रंप की धमकियों और संरक्षणवादी नीति के जवाब में भारत ने व्यावहारिक और आत्मविश्वास से भरी विदेश नीति अपनाई है। भारत यह बताने में सफल रहा है कि अगर अमेरिका साथ नहीं दे, तो भारत अकेला भी आगे बढ़ सकता है और दूसरों के साथ बेहतर संबंध बना सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के बीच भारत ने न सिर्फ अपनी संप्रभुता को बनाए रखा है, बल्कि एक संतुलित, परिपक्व और बहुपक्षीय कूटनीति के ज़रिए यह संदेश भी दिया है कि आज का भारत वैश्विक ताकतों के साथ अपनी शर्तों पर खड़ा हो सकता है। यह रणनीति न सिर्फ ट्रंप को जवाब है, बल्कि आने वाले समय में दुनिया के लिए यह भारत की विदेश नीति का एक नया मानक भी बन सकती है।