सनातन संस्कृति एवं विकसित राष्ट्र पर पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी की व्यापक दृष्टि

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लेखक: डॉ. राकेश मिश्र



25 दिसंबर भारतीय राजनीति के लिए अविस्मरणीय दिन है, जिस दिन भारतीय राजनीति के आदर्श पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी का अवतरण हुआ था। ईमानदारी, शालीनता एवं सादगी के प्रतीक भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में शुचिता, सरकार में सुशासन और संसदीय व्यवस्था में सर्वमान्य सांसद के रूप में स्थापित व्यक्तित्व के रूप में आज तक जीवंत हैं। अजातशत्रु अटल बिहारी बाजपेयी जी देश के दिल में सदा-सर्वदा स्मरणीय रहेंगे। यशस्वी प्रधानमंत्री के रूप में देश के आर्थिक विकास और लोगों के सामाजिक कल्याण के लिए उनका किया हुआ योगदान 21वीं सदी के भारत को राह दिखाने वाला रहा। उसी राह को मूर्त रूप देते हुए हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी समृद्ध और समर्थ भारत का निर्माण कर रहे हैं। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी सच्चे मायने में भारत के रत्न थे। उन्होंने जमीन से जुड़े रहकर राजनीति की और लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई थी। आज उनके विचार और देश के विकास की प्रवाह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं।
भारत की राजनीति में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले राजनेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी समर्थकों में समर्पण भाव पैदा करने तथा विरोधियों का दिल जीतने के लिए आज भी देश के मानस पटल पर विराजमान हैं। बेदाग और साफ सुथरा सार्वजनिक जीवन के कारण अटल बिहारी वाजपेयी जी का हर कोई सम्मान करता था। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। राष्ट्रहित को सदा सर्वोपरि माननेवाले अटल बिहारी वाजपेयी जी जब भी संसद में अपनी बात रखते थे तो उनके विरोधी भी कुछ नहीं बोल पाता था। वहीं एक संवेदनशील कवि के रूप में अपनी कविताओं के माध्यम से अटल जी हमेशा सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते रहे।
पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय राजनीति के ऐसे मनीषी थे, जिनकी दृष्टि सत्ता केंद्रित न होकर सांस्कृतिक, नैतिक और मानवीय मूल्यों पर आधारित थी। वे कवि-हृदय, प्रखर वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे। सनातन संस्कृति को वे किसी संकीर्ण धार्मिक पहचान के रूप में नहीं, बल्कि भारत की आत्मा एक शाश्वत जीवन-दृष्टि के रूप में देखते थे। उनके विचारों में सनातन संस्कृति परंपरा और प्रगति के संतुलन का मार्ग प्रशस्त करती है।

अटल जी के अनुसार सनातन संस्कृति का मूल तत्व मानवता है। वे बार-बार कहते थे कि भारत की संस्कृति ने कभी भेदभाव नहीं सिखाया, बल्कि “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की भावना से विश्व-कल्याण का मार्ग दिखाया। उनके लिए सनातनता का अर्थ था—समय के साथ चलने की क्षमता रखते हुए भी मूल्यों में अडिग रहना। यही कारण है कि वे आधुनिक विज्ञान, तकनीक और वैश्वीकरण के समर्थक होते हुए भी भारतीय सांस्कृतिक चेतना को सर्वोपरि मानते थे।

अटल जी की दृष्टि में धर्म किसी पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं था। वे धर्म को कर्तव्य, नैतिकता और लोकमंगल से जोड़कर देखते थे। उनका मानना था कि राजनीति यदि नैतिक मूल्यों से विमुख हो जाए तो वह सत्ता का संघर्ष बनकर रह जाती है। सनातन संस्कृति से प्रेरित होकर वे राजनीति में शुचिता, संवाद और सहमति पर बल देते थे। “राजनीति में विरोध हो, वैर नहीं” यह कथन उनकी सांस्कृतिक समझ का प्रतिफल था।
सनातन संस्कृति की समावेशिता अटल जी के विचारों का केंद्रबिंदु थी। वे मानते थे कि भारत की शक्ति उसकी विविधता में निहित है। भाषा, पंथ, वेश-भूषा और परंपराओं की बहुलता भारत को कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत बनाती है। यह दृष्टि उन्हें विभाजनकारी राजनीति से दूर रखती थी। वे राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक आत्मगौरव से जोड़ते थे, न कि किसी एक मत या समुदाय के वर्चस्व से।
अटल जी वसुधैव कुटुम्बकम् के प्रबल पक्षधर थे। उनकी विदेश नीति में भी सनातन संस्कृति की यही वैश्विक दृष्टि झलकती है। पड़ोसी देशों से संवाद, शांति और सहयोग पर उनका जोर इस बात का प्रमाण है कि वे भारत को विश्व-गुरु नहीं, बल्कि विश्व-मित्र के रूप में स्थापित करना चाहते थे। उनके अनुसार भारत की सांस्कृतिक शक्ति तलवार से नहीं, विचार से प्रसारित होती है।
उनकी कविताओं और भाषणों में सनातन चेतना की गहरी छाप मिलती है। वे अतीत का गौरवगान करते हुए भविष्य की ओर देखते थे। उनके लिए राम, कृष्ण, बुद्ध और विवेकानंद केवल ऐतिहासिक या धार्मिक प्रतीक नहीं थे, बल्कि नैतिक आदर्श थे—मर्यादा, करुणा, कर्म और आत्मविश्वास के प्रतीक। वे मानते थे कि सनातन संस्कृति व्यक्ति को आत्मसंयम और समाज को समरसता सिखाती है।

अटल जी की दृष्टि में राष्ट्र निर्माण केवल भौतिक विकास से संभव नहीं है। सड़कें, उद्योग और तकनीक आवश्यक हैं, किंतु इनके साथ सांस्कृतिक चेतना और नैतिक मूल्य अनिवार्य हैं। यही कारण है कि वे शिक्षा में भारतीयता, भाषा में आत्मगौरव और समाज में संवाद को महत्व देते थे। उनका भारत आधुनिक भी हो और अपनी जड़ों से जुड़ा भी—यही सनातन दृष्टि का सार था।

अंततः कहा जा सकता है कि पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी की दृष्टि में सनातन संस्कृति कोई जड़ परंपरा नहीं, बल्कि सतत प्रवाहमान जीवन-दर्शन थी। यह दृष्टि व्यक्ति को उदार, राष्ट्र को समरस और विश्व को मानवतावादी बनाती है। आज के अस्थिर और विभाजित होते वैश्विक परिदृश्य में अटल जी की यह सांस्कृतिक सोच और भी प्रासंगिक हो जाती है—क्योंकि यही सनातन संस्कृति की सच्ची, अटल और कालजयी पहचान है।

सनातन संस्कृति की दृष्टि पर झलकतीं पूर्व प्रधानमंत्री पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी की योजनाएँ:

पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी केवल एक सफल प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि भारतीय चेतना के संवाहक थे। उनकी राजनीति का मूल स्रोत सनातन संस्कृति की वही शाश्वत दृष्टि थी, जो मानवता, समरसता, कर्तव्य और राष्ट्रबोध को केंद्र में रखती है। वे मानते थे कि भारत का वास्तविक विकास केवल आर्थिक प्रगति से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण से संभव है। इसी दृष्टिकोण के अनुरूप उनकी अनेक योजनाएँ और पहलें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सनातन संस्कृति को सुदृढ़ करने वाली रहीं।

  1. सर्व शिक्षा अभियान: ज्ञान को संस्कार से जोड़ने का प्रयास
    अटल जी के कार्यकाल में सर्व शिक्षा अभियान को गति मिली। यह केवल साक्षरता बढ़ाने की योजना नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य समग्र शिक्षा था—जिसमें ज्ञान के साथ संस्कार भी हों। भारतीय शिक्षा परंपरा सदैव गुरु-शिष्य परंपरा, नैतिक मूल्यों और जीवनोपयोगी शिक्षा पर आधारित रही है। सर्व शिक्षा अभियान ने शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाकर सनातन संस्कृति के उस मूल मंत्र को साकार किया—“सा विद्या या विमुक्तये”, अर्थात् वही विद्या जो मुक्त करे।
  2. राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना– तीर्थ और संस्कृति का पुनःसंयोजन स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और अन्य राष्ट्रीय राजमार्ग योजनाओं ने देश को भौगोलिक ही नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी जोड़ा। भारत के प्रमुख तीर्थस्थल, ऐतिहासिक नगर और सांस्कृतिक केंद्र बेहतर संपर्क में आए। सनातन संस्कृति में यात्रा केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी मानी जाती है—चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ आदि। अटल जी की सड़क योजनाओं ने इस सांस्कृतिक प्रवाह को आधुनिक साधनों से सशक्त किया।
  3. ग्राम सड़क योजना: – ग्राम संस्कृति और आत्मनिर्भरता का संरक्षण
    प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने ग्रामीण भारत को मुख्यधारा से जोड़ा। गाँव भारतीय सनातन संस्कृति की जीवित प्रयोगशाला हैं, जहाँ परंपराएँ, लोककला, संस्कार और सामुदायिक जीवन आज भी जीवंत हैं। इस योजना से ग्रामीण अर्थव्यवस्था सशक्त हुई और पारंपरिक जीवन-पद्धति को नई ऊर्जा मिली। यह “ग्रामोदय से भारत उदय” की सनातन अवधारणा का आधुनिक रूप था।
  4. संस्कृति और विरासत संरक्षण के लिए संस्थागत समर्थन:
    अटल जी के समय भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला को प्रोत्साहन देने वाली संस्थाओं को मजबूती मिली। साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी जैसे मंचों को सक्रिय समर्थन मिला। वे स्वयं कवि थे और मानते थे कि साहित्य व कला राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्त करते हैं। यह दृष्टि सनातन संस्कृति की उस परंपरा से जुड़ी है, जहाँ कला को साधना माना गया है।
  5. योग, आयुर्वेद और भारतीय ज्ञान परंपरा का सम्मान:
    यद्यपि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बाद के काल में घोषित हुआ, किंतु अटल जी के समय योग और आयुर्वेद को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहन मिला। पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को वैज्ञानिक दृष्टि से सुदृढ़ करने के प्रयास हुए। यह सनातन संस्कृति के उस सिद्धांत का विस्तार था, जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर बल देता है।
  6. विदेश नीति में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना:
    अटल जी की विदेश नीति सनातन संस्कृति की वैश्विक दृष्टि से प्रेरित थी। पड़ोसी देशों से संवाद, शांति प्रयास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान उनकी प्राथमिकता रहे। लाहौर बस यात्रा इसका प्रतीकात्मक उदाहरण है। यह पहल दर्शाती है कि वे भारत की सांस्कृतिक शक्ति को विश्व-कल्याण के लिए उपयोग करना चाहते थे, न कि केवल राजनीतिक प्रभाव के लिए।
  7. राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक आत्मविश्वास:
    पोखरण परमाणु परीक्षण जैसे निर्णयों के माध्यम से अटल जी ने भारत को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। यह निर्णय भी सनातन संस्कृति के “स्वाभिमान” और “स्वावलंबन” के सिद्धांत से जुड़ा था—जहाँ राष्ट्र अपनी सुरक्षा और सम्मान स्वयं सुनिश्चित करता है।
    पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी की योजनाएँ केवल प्रशासनिक या आर्थिक नहीं थीं; वे एक सांस्कृतिक राष्ट्रनिर्माण का माध्यम थीं। शिक्षा, सड़क, गाँव, संस्कृति, स्वास्थ्य और विदेश नीति—हर क्षेत्र में उनकी सोच सनातन संस्कृति के मूल तत्वों से अनुप्राणित थी। उन्होंने यह सिद्ध किया कि आधुनिकता और सनातनता परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। आज जब भारत पुनः अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौट रहा है, तब अटल जी की नीतियाँ और योजनाएँ एक प्रेरक प्रकाशस्तंभ के रूप में हमारे सामने खड़ी हैं।

आज उनकी जयंती पर उनकी पंक्तियों को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं:

देखो हम बढ़ते ही जाते॥
उज्वलतर उज्वलतम होती है
महासंगठन की ज्वाला
प्रतिपल बढ़ती ही जाती है
चंडी के मुंडों की माला
यह नागपुर से लगी आग
ज्योतित भारत मां का सुहाग
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
दिश दिश गूंजा संगठन राग
केशव के जीवन का पराग
अंतस्थल की अवरुद्ध आग
भगवा ध्वज का संदेश त्याग
वन विजनकान्त नगरीय शान्त
पंजाब सिंधु संयुक्त प्रांत
केरल कर्नाटक और बिहार
कर पार चला संगठन राग
हिन्दु हिन्दु मिलते जाते
देखो हम बढ़ते ही जाते ॥

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