बांग्लादेश की अंतरिम यूनुस सरकार ने प्रधानमंत्री को ‘सर’ कहने की पुरानी परंपरा को समाप्त कर दिया है। यह फैसला केवल शिष्टाचार में बदलाव नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री की शक्तियों को सीमित करने की एक बड़ी प्रक्रिया का हिस्सा है।
इस बदलाव को बांग्लादेश में सत्ता संतुलन को दोबारा स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
क्या था पहले का प्रोटोकॉल?
- साल 2009 में शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद, सभी अधिकारियों को प्रधानमंत्री को ‘सर’ कहकर संबोधित करने का आदेश दिया गया था।
- यहां तक कि उच्च पदों पर कार्यरत महिला अधिकारियों के लिए भी ‘सर’ शब्द अनिवार्य कर दिया गया था।
- इस परंपरा को सरकारी प्रोटोकॉल का हिस्सा बना दिया गया था।
अब क्या बदलेगा?
यूनुस सरकार ने स्पष्ट किया है कि:
- अब किसी भी अधिकारी को प्रधानमंत्री को ‘सर’ कहने की आवश्यकता नहीं है।
- सभी पूर्व प्रोटोकॉल की समीक्षा की जा रही है, ताकि असामान्य या अनुचित परंपराओं को हटाया जा सके।
- प्रधानमंत्री के लिए अब “Mr. Prime Minister” जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों से मेल खाते संबोधन अपनाने की संभावना है।
प्रधानमंत्री की शक्तियों में कटौती की तैयारी
प्रधानमंत्री के अधिकारों को सीमित करने की दिशा में सरकार कई बड़े कदम उठा रही है:
1. कार्यकाल की अधिकतम सीमा
- पहले प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर कोई सीमा नहीं थी।
- अब नए प्रस्ताव के तहत अधिकतम कार्यकाल 10 वर्ष करने पर विचार हो रहा है।
2. आपातकाल लगाने का अधिकार छीना जा सकता है
- यूनुस सरकार आपातकाल लगाने का अधिकार प्रधानमंत्री से लेकर, एक साझा समिति को सौंपने की योजना बना रही है।
3. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का गठन
- प्रस्तावित काउंसिल में होंगे:
- प्रधानमंत्री
- राष्ट्रपति
- सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस
- यह समिति बड़े फैसलों की अंतिम प्राधिकरण होगी।
सरकारी बदलाव का उद्देश्य क्या है?
यूनुस सरकार का लक्ष्य केवल सत्ता में संतुलन बनाना नहीं, बल्कि शेख हसीना शासन की व्यक्तिगत केंद्रीकरण वाली नीतियों को खत्म करना भी है।
इन कदमों से लोकतंत्र की बहाली और संस्थाओं की स्वतंत्रता को मजबूती मिलने की उम्मीद है।
क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य?
- अमेरिका में राष्ट्रपति को “Mr. President” कहकर संबोधित किया जाता है।
- यूनुस सरकार भी इसी तरह का संबोधन बांग्लादेश में अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
लोकतंत्र की ओर एक बड़ा कदम
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का यह फैसला केवल एक उपाधि बदलने तक सीमित नहीं है। यह शासन के स्वरूप में बदलाव की ओर एक मजबूत संकेत है। प्रधानमंत्री के लिए ‘सर’ जैसे औपनिवेशिक टोन को हटाना, लोकतंत्र की सादगी और पारदर्शिता की ओर वापसी का संकेत देता है।