BY: Yoganand Shrivastva
जबलपुर, मध्य प्रदेश – मध्य प्रदेश को ‘एमपी’ या ‘मप्र’ कहने और लिखने पर रोक लगाने की अजीबोगरीब मांग को लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका (PIL) को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संक्षेप में नाम लेना दुनिया भर में आम है और इससे किसी स्थान की पहचान पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
क्या थी याचिका में मांग?
भोपाल निवासी वरिंदर कुमार ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा कि संविधान में प्रदेश का नाम “मध्य प्रदेश” दर्ज है, लेकिन आम जनता, सरकारी विभाग, मीडिया और सोशल मीडिया पर इसे अक्सर ‘MP’ या ‘मप्र’ के रूप में लिखा और बोला जाता है। याचिका में दावा किया गया कि इससे प्रदेश की गरिमा को ठेस पहुंचती है और इसका इस्तेमाल बंद किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा:
“दुनिया भर में संक्षिप्त नामों का उपयोग बातचीत और कार्यप्रणाली में सहजता लाने के लिए किया जाता है। यह परंपरा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनाई जाती है। यह किसी राज्य या क्षेत्र की पहचान को नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि संवाद को सरल बनाती है।”
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी सवाल पूछा कि “इस याचिका में जनहित की कौन सी बात है?” लेकिन याचिकाकर्ता कोई ठोस तर्क नहीं दे सका।
याचिका क्यों हुई खारिज?
चूंकि याचिकाकर्ता यह नहीं समझा सका कि यह मुद्दा जनहित से कैसे जुड़ा है, इसलिए कोर्ट ने याचिका को जनहित याचिका मानने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।
विश्लेषण: क्या वास्तव में ‘MP’ कहना गलत है?
- देश के कई राज्यों के नामों को संक्षेप में बोला जाता है:
- उत्तर प्रदेश → UP
- राजस्थान → RJ
- महाराष्ट्र → MH
- तमिलनाडु → TN
- और खुद भारत → IN या BHARAT (अंतरराष्ट्रीय कोड)
- यह सिर्फ बातचीत या संप्रेषण को आसान बनाने का तरीका है, न कि किसी राज्य की गरिमा को ठेस पहुंचाने की कोशिश।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह फैसला तर्क और व्यावहारिकता पर आधारित है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि जनहित याचिकाएं उन मुद्दों पर होनी चाहिए, जिनका सीधा संबंध जनता के कल्याण, अधिकारों या किसी बड़ी सामाजिक समस्या से हो—not semantics या निजी विचारों पर।