BY: Yoganand Shrivastva
पालघर (महाराष्ट्र)। महाराष्ट्र में भाषा को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता दिखाई दे रहा है। पालघर जिले में एक ऑटो-रिक्शा चालक को केवल हिंदी बोलने की जिद के चलते कथित तौर पर मारपीट का सामना करना पड़ा। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें कुछ लोगों द्वारा चालक के साथ अभद्रता करते और मारपीट करते हुए देखा जा सकता है।
इससे पहले भी, मुंबई के उपनगरीय क्षेत्र विरार स्टेशन पर इसी प्रकार की घटना सामने आई थी, जहां एक प्रवासी युवक और रिक्शा चालक के बीच मराठी भाषा को लेकर तीखी बहस हो गई थी।
वीडियो में क्या दिखा?
वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि जब एक व्यक्ति ने रिक्शा चालक से मराठी में बात करने को कहा, तो चालक ने जवाब दिया –
“मैं हिंदी बोलूंगा, भोजपुरी भी बोलूंगा।”
इस उत्तर से नाराज लोगों का एक समूह, जिसमें शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के कथित समर्थक शामिल बताए जा रहे हैं, चालक को रोककर उस पर थप्पड़ों की बारिश कर देते हैं। कुछ महिलाएं भी मारपीट में शामिल दिखती हैं।
माफी मांगने को किया गया मजबूर
घटना यहीं नहीं रुकी। मारपीट के बाद कथित तौर पर चालक को पब्लिकली माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया। उसे महाराष्ट्र, मराठी भाषा और “मराठी मानुष” से संबंधित कथित अपमानजनक टिप्पणियों के लिए सार्वजनिक रूप से खेद प्रकट करना पड़ा।
शिवसेना (यूबीटी) का पक्ष: “मराठी स्वाभिमान का अपमान नहीं सहेंगे”
शिवसेना (यूबीटी) के विरार शहर प्रमुख श्री जाधव ने मीडिया से बातचीत में स्वीकार किया कि पार्टी कार्यकर्ता वहां मौजूद थे। उन्होंने कहा –
“जिसने मराठी भाषा और महाराष्ट्र का अपमान करने की कोशिश की, उसे शिवसेना की शैली में करारा जवाब मिला। हम अपने राज्य, भाषा और संस्कृति के सम्मान से समझौता नहीं करेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि रिक्शा चालक को इसलिए सबक सिखाया गया क्योंकि उसने सार्वजनिक रूप से मराठी की अवहेलना की।
पुलिस कार्रवाई नहीं, जांच जारी
पालघर जिला पुलिस के मुताबिक, वीडियो का संज्ञान ले लिया गया है। हालांकि, अभी तक किसी भी पक्ष की ओर से कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है।
पुलिस अधिकारी ने कहा –
“हम वायरल वीडियो की जांच कर रहे हैं और तथ्यों की पुष्टि की जा रही है। अभी तक दोनों पक्षों की ओर से कोई लिखित आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है।”
भाषा का सवाल या सामाजिक तनाव?
महाराष्ट्र में क्षेत्रीय भाषाओं की गरिमा बनाए रखने की आवाज़ें समय-समय पर उठती रही हैं, लेकिन पालघर और विरार की घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि यह संवेदनशील मुद्दा अब टकराव में बदल रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिक को भारतीय संविधान द्वारा भाषाई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, लेकिन जब बात क्षेत्रीय अस्मिता से टकराती है, तो सामाजिक तनाव उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
ज़रूरत सहिष्णुता और संवाद की
पालघर की घटना एक बार फिर इस बात की याद दिलाती है कि भाषाई विविधता भारत की ताकत है, लेकिन जब यही विविधता संघर्ष में बदल जाती है, तो कानून, नागरिक अधिकार और सामाजिक एकता – सब कुछ दांव पर लग जाता है।
अब यह देखना अहम होगा कि प्रशासन इस पर क्या कार्रवाई करता है और क्या आने वाले दिनों में ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।