इंदौर की कलेक्ट्रेट जनसुनवाई में जो हुआ, वह न केवल प्रशासनिक संवेदनशीलता पर सवाल उठाता है, बल्कि हमारी व्यवस्था की जड़ता को भी बेनकाब करता है। एक 65 वर्षीय बुजुर्ग, करन सिंह, जिन्होंने एक साल से अपनी जमीन पर कब्जा पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाईं, आखिरकार थक हार कर ज़हर पी गए। और मौत के बाद ही प्रशासन जागा।
मुख्य बिंदु (Highlights):
- करन सिंह एक साल से जमीन के लिए प्रशासन के चक्कर काट रहे थे
- जनसुनवाई के दौरान उन्होंने बाथरूम क्लीनर पी लिया
- उनकी मौत के बाद स्वजनों को जमीन का कब्जा दिलाया गया
- इंदौर-बेतमा हाईवे पर हुआ चक्काजाम
- प्रशासन ने जांच के आदेश दिए, दो दिन में रिपोर्ट मांगी गई
कैसे हुई घटना: जनसुनवाई बनी आखिरी उम्मीद
मंगलवार को इंदौर कलेक्ट्रेट में जनसुनवाई के दौरान करन सिंह ने अचानक जहरीला पदार्थ पी लिया। कुछ घंटों बाद उनकी मौत हो गई। वह ग्राम ललेंडीपुरा स्थित दो बीघा जमीन पर हो रहे अतिक्रमण से परेशान थे। कई बार सीमांकन और कब्जा दिलाने की गुहार लगाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई।
मौत के बाद मिली जमीन, मगर इंसाफ अभी अधूरा
बुधवार को करन सिंह के स्वजन और समाज के लोगों ने आक्रोश में आकर इंदौर-बेतमा हाईवे पर चक्काजाम कर दिया। लगभग डेढ़ घंटे तक रास्ता बंद रहा। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और पुलिस बल की मौजूदगी में ललेंडीपुरा स्थित जमीन से अवैध कब्जा हटवाया गया।
आरोप किस पर?
- इमरान पिता नवाब
- नवाब पिता घिसा
- मांगू सरपंच सहित अन्य ग्रामवासी
इन पर करन सिंह की जमीन पर अतिक्रमण का आरोप लगा है।
प्रशासन का जवाब: अब हो रही जांच
देपालपुर SDM राकेश मोहन त्रिपाठी ने बताया कि खसरा नंबर 75 पर 40 के करीब पट्टे हैं। करन सिंह ने 20 मई को सीमांकन के बाद कब्जे का आवेदन दिया था, जिसकी सुनवाई चल रही थी।
अपर कलेक्टर राजेंद्र रघुवंशी को जांच का जिम्मा सौंपा गया है। दो दिन में यह रिपोर्ट मांगी गई है:
- प्रकरण की स्थिति
- सीएम हेल्पलाइन में की गई शिकायतों का निपटारा
- मौके की स्थिति
प्रशासन की लापरवाही बनी मौत की वजह?
करन सिंह की आत्महत्या ने सिस्टम की असंवेदनशीलता की पोल खोल दी। यह मामला सिर्फ जमीन के एक टुकड़े का नहीं है, यह उस भरोसे का भी अंत है जो आम आदमी प्रशासन पर करता है।
क्या कहता है समाज?
स्वजन और समाजजन का कहना है कि यदि समय पर कार्रवाई होती, तो करन सिंह की जान बचाई जा सकती थी।
पुलिस और प्रशासन का संयुक्त एक्शन
एडिशनल एसपी रूपेश द्विवेदी ने बताया कि:
- चक्काजाम के बाद प्रशासन ने फौरन सीमांकन कराया
- पुलिस बल की मौजूदगी में कब्जा हटवाया गया
क्या सीख मिलती है इस घटना से?
इस दर्दनाक घटना से साफ होता है कि:
- जनसुनवाई में वास्तविक समाधान की बजाय औपचारिकता होती है।
- आवेदनकर्ता की सुनवाई समय पर नहीं होती, जिससे तनाव चरम पर पहुंच जाता है।
- प्रशासन को प्रो-एक्टिव होने की जरूरत है, रिएक्टिव नहीं।
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निष्कर्ष: एक मौत, एक सवाल – क्या इंसाफ मरने के बाद ही मिलेगा?
करन सिंह की आत्महत्या ने प्रशासनिक व्यवस्था के खोखलेपन को उजागर कर दिया है। सवाल यह नहीं कि जमीन का कब्जा मिला या नहीं, सवाल यह है कि क्या इसके लिए किसी को अपनी जान देनी पड़ेगी?
सरकार और प्रशासन को अब आत्ममंथन की जरूरत है। व्यवस्था तब तक सफल नहीं मानी जा सकती जब तक कोई करन सिंह सिस्टम से हारकर जिंदगी को ही अलविदा कह देता है।