BY
Yoganand Shrivastava
हिंदी साहित्य के वरिष्ठ और विशिष्ट लेखक, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार शाम निधन हो गया। उन्होंने रायपुर स्थित एक सरकारी अस्पताल में अंतिम सांस ली। परिवार के अनुसार, उनका निधन उम्र से जुड़ी बीमारियों के कारण हुआ। वह 89 वर्ष के थे।
सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें 2 दिसंबर को रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था। उनके पुत्र शाश्वत शुक्ल ने बताया कि मंगलवार शाम 4 बजकर 48 मिनट पर उनका देहांत हुआ।
विनोद कुमार शुक्ल अपने पीछे पत्नी, एक पुत्र शाश्वत और एक पुत्री को छोड़ गए हैं। परिवार के अनुसार, उनका पार्थिव शरीर पहले रायपुर स्थित उनके निवास पर ले जाया जाएगा, जिसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी साझा की जाएगी।
इससे पहले अक्टूबर माह में भी सांस संबंधी परेशानी के चलते उन्हें रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। स्वास्थ्य में सुधार के बाद उन्हें घर भेज दिया गया था और वहीं उपचार चल रहा था। लेकिन 2 दिसंबर को अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें एम्स रायपुर में भर्ती कराना पड़ा।
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अलग पहचान रखने वाली आवाज़ माने जाते थे। उनके प्रमुख उपन्यासों में नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी और एक चुप्पी जगह शामिल हैं।
उनकी लेखन शैली सरल होते हुए भी गहरी संवेदनाओं और अनुभवों से भरपूर थी। आम जीवन की सूक्ष्म अनुभूतियों को उन्होंने अपनी रचनाओं में विशेष संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया।
हिंदी साहित्य में उनके अतुलनीय योगदान और रचनात्मक विशिष्टता के लिए उन्हें इसी वर्ष 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। 21 नवंबर को यह सम्मान उनके रायपुर स्थित निवास पर आयोजित समारोह में दिया गया। वह छत्तीसगढ़ से ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले पहले लेखक थे, जो राज्य और हिंदी साहित्य दोनों के लिए गर्व का विषय है।
इससे पहले 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके परिवार से बातचीत कर उनके स्वास्थ्य की जानकारी भी ली थी।विनोद कुमार शुक्ल के निधन से हिंदी साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। उनकी रचनाएं और विचार आने वाली पीढ़ियों को लंबे समय तक प्रेरित करते रहेंगे।





