18 राष्ट्रीय पुरस्कार, पद्मश्री-पद्मभूषण और राज्यसभा तक का प्रेरक सफर
BY
Yoganand Shrivastava
Bollywood news: भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं, जिन्होंने फिल्म को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का माध्यम बनाया। ऐसे ही विरले फिल्मकार थे श्याम बेनेगल, जिन्होंने अपनी 90 वर्षों की जीवन यात्रा में भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी।
सामाजिक सरोकारों वाला सिनेमा
जब हिंदी फिल्मों में गीत-संगीत और व्यावसायिकता का बोलबाला था, उस दौर में श्याम बेनेगल ने समाज की जमीनी सच्चाइयों को पर्दे पर उतारा। उनकी फिल्मों में गांव, किसान, श्रमिक, स्त्री संघर्ष, सत्ता और व्यवस्था के सवाल प्रमुखता से उभरे। उन्होंने लाभ से अधिक विचार और जिम्मेदारी को प्राथमिकता दी।
शुरुआती जीवन और फिल्मी सफर
पश्चिम बंगाल में जन्मे श्याम बेनेगल 1959 में मुंबई पहुंचे। यहां उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपीराइटर के रूप में काम किया और शॉर्ट फिल्मों व डॉक्यूमेंट्री निर्माण से अपने रचनात्मक सफर की शुरुआत की। करीब एक दशक तक उन्होंने वृत्तचित्र बनाए, जिससे उनकी सिनेमा दृष्टि और अधिक परिपक्व हुई।
‘अंकुर’ से समानांतर सिनेमा की पहचान
1970 के दशक में आई फिल्म ‘अंकुर’ ने भारतीय सिनेमा में समानांतर सिनेमा की मजबूत नींव रखी। यह फिल्म न सिर्फ भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराही गई। इसके बाद उन्होंने लगातार ऐसी फिल्में बनाईं, जो समय के साथ और अधिक प्रासंगिक होती चली गईं।
कलाकारों की पूरी पीढ़ी को दी पहचान
श्याम बेनेगल ने अपने सिनेमा से ओम पुरी, शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह जैसे सशक्त कलाकारों को मंच दिया। इन कलाकारों ने अभिनय की परिभाषा को नया आयाम दिया और भारतीय सिनेमा की विश्वसनीयता को मजबूत किया।
पुरस्कारों और सम्मानों की लंबी सूची
श्याम बेनेगल ने अपने करियर में 18 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते। उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी नवाजा गया। इसके अलावा वे वर्ष 2006 से 2012 तक राज्यसभा सांसद भी रहे।
सिनेमा और टेलीविजन में ऐतिहासिक योगदान
उन्होंने ‘निशांत’, ‘मंथन’, ‘भूमिका’, ‘जुनून’, ‘कलयुग’ जैसी कालजयी फिल्में बनाईं। टेलीविजन पर उनका धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ देश के पांच हजार वर्षों के इतिहास को दर्शाता है, जिसने दर्शकों को अपनी जड़ों से जोड़ा।
बांग्लादेश पर बनी आखिरी फिल्म
श्याम बेनेगल की अंतिम फिल्म ‘मुजीब: द मैन ऑफ द नेशन’ बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान के जीवन और देश के निर्माण की कहानी पर आधारित थी। इस फिल्म में बांग्लादेश के राजनीतिक संघर्ष और विभाजन की जटिलताओं को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया गया।
सिनेमा जगत की अमूल्य विरासत
वर्ष 2024 में 90 वर्ष की आयु में श्याम बेनेगल का निधन हो गया, लेकिन उनका सिनेमा आज भी जीवित है। अमरीश पुरी जैसे दिग्गज कलाकारों का कहना था कि श्याम बेनेगल से संवाद करना किसी ज्ञानग्रंथ को पढ़ने जैसा होता था।
आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
श्याम बेनेगल ने भारतीय सिनेमा को विचार, संवेदना और साहस का ऐसा खजाना दिया है, जिसे आने वाली पीढ़ियां लंबे समय तक याद रखेंगी। वे सिर्फ एक निर्देशक नहीं, बल्कि एक युग थे।





