दिल्ली की विकास गाथा के साए में उजड़ते सपने
दिल्ली में एक तरफ नई-नई इमारतें बन रही हैं, दूसरी तरफ हजारों गरीबों के सिर से छत छीन ली गई है। वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया के पास रेलवे लाइन पर बसे झुग्गीवासियों के लिए 16 जून, 2025 का दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं था। प्रशासन ने बुलडोजर चलवा दिए और देखते ही देखते हजारों लोगों के आशियाने मलबे में तब्दील हो गए।
जहां बच्चे कभी खेलते थे, वहां अब मलबा, टूटी दीवारें और टूटी उम्मीदें हैं। कई परिवार मलबे से लोहा लकड़ी निकालकर उसे बेचने को मजबूर हैं ताकि बच्चों का पेट भर सकें।
क्या है विवाद की जड़?
रेलवे ने 5 जून को नोटिस जारी किया कि रेलवे सेफ्टी जोन में बनी झुग्गियां और दो मंजिला मकान सिग्नल देखने में बाधा बन रहे हैं, इसलिए इन्हें हटाना ज़रूरी है। दिल्ली सरकार ने भी इसे सुरक्षा के लिहाज से सही ठहराया।
लेकिन प्रभावित परिवारों का कहना है कि:
✅ उनके पास वोटर आईडी, राशन कार्ड, आधार कार्ड सब कुछ है
✅ चुनाव के दौरान नेता उनके घर आते हैं, वोट मांगते हैं
✅ यदि उनकी झुग्गी अवैध है तो फिर उनके दस्तावेज़ कैसे वैध हैं?
✅ पुनर्वास की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई
50 साल से रह रहे लोग, लेकिन अब अवैध?
वजीरपुर में रहने वाले कई परिवार पिछले 40-50 वर्षों से यहां बसे हैं। 1990 में वीपी सिंह सरकार ने उन्हें एक कार्ड भी जारी किया था, जिसमें पुनर्वास का भरोसा दिया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि आज भी ये लोग ठोस पुनर्वास की आस लगाए बैठे हैं।
एक परिवार की महिला ने बताया:
“सरकार ने हमारे घर का बाकायदा नंबर भी दिया, आधार कार्ड पर यही पता दर्ज है। अब कह रहे हैं कि ये सब अवैध है।”
टूटी झुग्गियों के बीच टूटी उम्मीदें
बुलडोजर चलने के बाद:
- कुछ लोग मलबे पर ही सोने को मजबूर हैं
- कई परिवारों के पास किराए पर घर लेने के पैसे नहीं हैं
- बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे
- महिलाएं बच्चों को लेकर सुरक्षित स्थान की तलाश में हैं
- मलबे से निकलने वाले लोहा-लकड़ी बेचकर गुजारा चल रहा है
एक युवती ने कहा:
“मैं नीट क्लियर कर डॉक्टर बनना चाहती थी, अब ना घर रहा, ना पढ़ाई का ज़रिया।”
पुनर्वास की हकीकत: कहीं फ्लैट, कहीं खाली वादे
सरकार ने कुछ प्रभावितों को अशोक विहार में फ्लैट अलॉट किए, लेकिन वहां भी हालात बेहतर नहीं हैं:
✅ लिफ्ट खराब
✅ पीने का पानी नहीं
✅ शौचालयों में पानी नहीं
✅ बिजली-पानी सप्लाई में बाधा
वहीं, जिन लोगों ने कोर्ट से स्टे लिया है, उनके यहां बिजली-पानी काट दिया गया है। पुनर्वास योजना अधूरी और अव्यवस्थित नजर आ रही है।
झुग्गीवासियों के सवाल और नेताओं की राजनीति
लोगों का सीधा आरोप है:
- कांग्रेस ने पहले बसाया
- आम आदमी पार्टी ने ठोस पुनर्वास नहीं दिया
- बीजेपी सरकार हटाने में लगी, पुनर्वास की चिंता नहीं
राजनीतिक बयानबाजी जारी है, लेकिन गरीब बेघर हो रहे हैं। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा:
“हमने 52,000 फ्लैट्स बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन राजनीतिक रस्साकशी में सब अटका रह गया।”
वहीं आम आदमी पार्टी प्रवक्ता संजीव झा ने केंद्र सरकार की पॉलिसी बाधाओं का हवाला दिया।
क्या कहते हैं कानून?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सुपंत ने साफ कहा:
✅ सरकार बिना पुनर्वास के किसी को नहीं हटा सकती
✅ यह संविधान के आर्टिकल 21 (राइट टू लाइफ) का उल्लंघन है
✅ 7 दिन का नोटिस देकर हटाना गैरकानूनी है
✅ सुनवाई का मौका दिए बिना कार्रवाई गलत है
जिम्मेदारी कौन लेगा?
- चुनाव के वक्त झुग्गीवासियों से वादे होते हैं
- बाद में अवैध बताकर उजाड़ा जाता है
- फ्लैट बने हैं, लेकिन अलॉटमेंट नहीं
- अदालत में स्टे लेने के बावजूद जीवन दुश्वार
- बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित
निष्कर्ष: क्या समाधान है?
दिल्ली की बढ़ती आबादी, रोजगार की तलाश और आवास की कमी ने झुग्गी संस्कृति को जन्म दिया। अगर सरकारें वाकई समाधान चाहती हैं तो:
✅ बने हुए फ्लैट्स का पारदर्शी तरीके से अलॉटमेंट करें
✅ पुनर्वास योजनाओं में राजनीति से ऊपर उठें
✅ झुग्गीवासियों को कानूनी संरक्षण दें
✅ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाएं
✅ राजनीतिक दल चुनावी लाभ के लिए इन गरीबों का इस्तेमाल बंद करें
आपकी राय क्या है?
क्या झुग्गीवासियों को बिना पुनर्वास उजाड़ना सही है? क्या राजनीतिक दल वाकई उनके हितों की परवाह करते हैं? अपने विचार नीचे कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएं।
दिल्ली की हर बड़ी खबर, गहराई से जानने के लिए जुड़े रहिए।